ऑनलाइन बौद्धिक संपदा संरक्षण कार्यशाला
कोंडागांव, 26 जून। राजीव गांधी राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा प्रबंधन संस्थान, नागपुर के द्वारा छात्रों, अध्यापकों तथा शोधकर्ताओं में बौद्धिक संपदा के प्रति जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। इसी अभियान के तहत शासकीय गुंडाधुर स्नातकोत्तर महाविद्यालय कोण्डागाँव में एक दिवसीय ऑनलाइन बौद्धिक संपदा संरक्षण कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिसमें मुख्य वक्ता पूजा विशाल माउलिकर रहीं जो राजीव गांधी राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा प्रबंधन संस्थान, नागपुर में पेटेंट तथा डिजाइन परीक्षक के पद पर नियुक्त हैं।
कार्यक्रम की शुरुआत प्राचार्य डॉ. चेतन राम पटेल के स्वागत उद्बोधन से हुई, जिसमें उन्होंने इस प्रकार के आयोजनों को समय की मांग बताया, साथ ही उन्होंने कहा कि बौद्धिक संपदा के बारे में सभी छात्रों प्राध्यापकों और शोधकर्ताओं को ज्ञान होना चाहिए, जिससे वे आगे अपनी कृतियों, कलाओं या अन्य बौद्धिक संपदा का उचित संरक्षण कर सकें।
कार्यक्रम की वक्ता पूजा विशाल माउलिकर ने पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन के द्वारा दिए गए अपने व्याख्यान में शुरू में बताया कि प्रतिवर्ष विश्व में लाखों पेटेंट होते हैं, जिनमें गत वर्ष भारत में केवल 12000 पेटेंट रजिस्टर किए गए और उनमें भी केवल 2000 पेटेंट ही अकादमिक संस्थाओं की ओर से होते हैं।
आगे उन्होंने बताया कि जैसे हमारी चल और अचल संपत्ति होती है, हम उन संपत्तियों का रजिस्ट्रेशन करवाते हैं ताकि इन पर कोई और अपना अधिकार ना जमा सके, इसी प्रकार बौद्धिक संपदा भी हमारी संपत्ति का ही एक भाग होता है। इसका भी पंजीयन आवश्यक है, ताकि कोई और इस पर अपना अधिकार ना दिखा सके। श्रीमती माउलिकर ने बताया कि बौद्धिक संपदा पांच प्रकार की होती है पहला- पेटेंट, जिसमें कोई विशेष उत्पाद या बनाने की कोई विशेष विधि आ सकती है।
दूसरा- डिजाइन, जो देखने में आकर्षक और अलग लगे वह डिजाइन के अंतर्गत आता है जैसे विभिन्न प्रकार के खिलौने, विभिन्न आभूषणों के डिजाइंस इत्यादि। तीसरा-ट्रेडमार्क जिसमें कोई नाम, शब्द या प्रतीक चिन्ह, जो कि किसी संस्था या व्यक्ति विशेष को दूसरों से पृथक करता है, इसके अंतर्गत आता है यह समाज में या विश्व में आप की विशिष्टता को दर्शाता है जैसे मैकडॉनल्ड का एम, प्यूमा का प्रतीक चिन्ह, एडिडास, नाइकी का प्रतीक चिन्ह कोका कोला की बोतल इत्यादि। चौथा- कॉपीराइट। लेखकों की कृतियां, चित्रकारों की चित्रकारी, आर्किटेक्चर या संगीतज्ञ के संगीत विशेष इत्यादि कॉपीराइट के अंतर्गत आते हैं। यह किसी दूसरे अनाधिकृत व्यक्ति को इसका प्रयोग करने से रोकते हैं। इसके अंतर्गत साहित्य कार्य, कलात्मक कार्य, नाट्यात्मक कार्य, संगीत कार्य, चलचित्र सभी आ सकते हैं। पांचवी बौद्धिक संपदा है ज्योग्राफिकल इंडिकेशन, यह किसी व्यक्ति विशेष के लिए नहीं वरन किसी स्थान विशेष में पाई जाने वाली विभिन्न वस्तुओं को विशेषता प्रदान करती है जैसे- मकराना मार्बल राजस्थान के मकराना में पाया जाता है, कांचीपुरम सिल्क, रतलामी सेव, दार्जिलिंग चाय, रत्नागिरी के आम, बिहार के शाही लीची, कश्मीरी जाफरान, मधुबनी पेंटिंग इत्यादि।
पूजा ने बताया कि किसी भी बौद्धिक संपदा को फैलाने या पब्लिश करने के पहले इसका रजिस्ट्रेशन करवाना अनिवार्य होता है । उन्होंने बहुत सारे फ्री और पेड ऑनलाइन प्लेटफार्म की जानकारी दी जहां पर विभिन्न बौद्धिक संपदा के पंजीकृत होने की जानकारी प्राप्त हो सकती है। उन्होंने सभी आईपी को फ़ाइल करने के लिए आवश्यक दस्तावेज, प्रक्रिया और सावधानियों के बारे में विस्तार से बताया।
कार्यक्रम का संचालन वाणिज्य विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. आकाश वासनीकर कर रहे थे तथा आभार प्रदर्शन रसायन शास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष नसीर अहमद ने किया जिसमें उन्होंने मुख्य वक्ता सहित कार्यक्रम से जुड़े कोण्डागाँव एवं छत्तीसगढ़ व अन्य राज्यों के महाविद्यालयो के समस्त प्राध्यापकों, छात्रों एवं शोधार्थियों का आभार प्रदर्शन किया। इस कार्यक्रम के अंत मे एक प्रतिभागी ने अपने प्रश्न में पूछा की क्या विभिन्न प्रकार की आवाज़ें निकालने की कला का कॉपीराइट लिया जा सकता है? जवाब में मुख्य वक्ता ने कहा कि कला का कॉपीराइट जज ले सकते, मगर अगर कोई विशेष प्रकार की रिकॉर्डिंग की गई है यो उसे कॉपीराइट करवाया जा सकता है चाहे उसमें विशेष आवाज़ें निकाली गई हो या मिमिक्री की गई हो।
इस आयोजन में शासकीय गुंडाधुर स्नातकोत्तर महाविद्यालय के अतिरिक्त छत्तीसगढ़ और अन्य राज्यो के महाविद्यालयों के दो सौ से अधिक प्राध्यापक, छात्र-छात्राएं एवं शोधकर्ता जुड़े रहे।