बलौदा बाजार

जहां गलती की सजा थी पेड़ लगाना, अब वहां खलिहानों ने ले ली जगह
28-Apr-2025 4:48 PM
जहां गलती की सजा थी पेड़ लगाना,  अब वहां खलिहानों ने ले ली जगह

पेड़ लगाने की परंपरा खत्म होने की कगार पर

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बलौदाबाजार, 28 अप्रैल।
बलौदाबाजार जिले के पलारी ब्लॉक का गांव देवसुंद्रा जो अपनी हरियाली और पेड़ लगाने की परंपरा के लिए मशहूर था, आज अतिक्रमणकारियों के चलते संकट में है। गांव के सडक़ किनारे लगे पीपल और अन्य बड़े-पेड़ों पर अवैध कब्जा कर उसके आसपास खलिहान बना लिया गया है,  जिससे न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है बल्कि सडक़ सुरक्षा भी प्रभावित हुई हैं।  खलिहान की दीवारें सडक़ तक फैल गई है, जिससे राहगीरों और बड़े वाहनों के लिए मुश्किलें पैदा हो रही हैं। 

देवसुंद्रा गांव में पुराने समय में एक अनूठी प्रथा थी। गलती करने वालों को सजा देने सजा के तौर पर पेड़ लगाने को कहा जाता था। इसी वजह से गांव की सडक़ों के दोनों और सैकड़ों पेड़ लगे थे, जो हरियाली और ठंडी हवा देते थे। समय के साथ यह पेड़ काम होते गए और अब केवल दर्जन भर ही बच गए हैं। इसमें से सभी कई पेड़ों पर अतिक्रमणकारियों ने कब्जा कर लिया हैं। जिससे गांव की पहचान मिटती जा रही हैं।

गांव के सरपंच अभिराम साहू, उपसरपंच नूतन वर्मा, हुलास, ढाकेश्वरी वर्मा, और अमर साहू ने बताया कि देवसुंद्रा की हरियाली यहां के लोगों के लिए गर्व की बात थी। उन्होंने कहा -हमारे पूर्वजों ने पेड़ लगाने की जो परंपरा शुरू की थी। आज भी युवा पीढ़ी उसे जारी रखे हुए हैं। पहले गलती की सजा के तौर पर पेड़ लगाए जाते थे, लेकिन अब हम पर्यावरण संरक्षण के लिए ऐसा करते हैं। हाल ही में मुक्तिधाम में पौधारोपण भी किया गया। हालांकि अतिक्रमणकारियों ने की वजह से गांव की यह विरासत खतरे में पड़ गई हैं।

 

ग्रामीणों का कहना है कि प्रशासन को इस मामले में तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए, ताकि सडक़ किनारे के पेड़ों को बचाया जा सके और अवैध कब्जे हटाए जा सके। स्थानीय लोगों का आरोप है कि प्रशासन की उदासीनता के कारण अतिक्रमणकारी बेखौफ होकर जमीन और पेड़ों पर कब्जा जमा रहे हैं।

शिकायत के बाद भी नहीं हुई कार्रवाई 
ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने कई बार शिकायत की, लेकिन अभी तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। अगर जल्द ही इस और ध्यान नहीं दिया गया तो गांव की हरियाली और सडक़ की चौड़ाई दोनों ही खत्म हो जाएगी। देवसुंद्रा गांव की पेड़ लगाने की परंपरा न सिर्फ पर्यावरण के लिए अच्छी थी बल्कि यह समाज में अनुशासन का एक अनूठा तरीका भी था। अतिक्रमण कार्यों की वजह से अब यह विरासत खतरे में है प्रशासन को चाहिए कि वह तुरंत कदम उठाए और गांव की हरियाली तथा सडक़ सुरक्षा को बचाने के लिए कार्रवाई करें।

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