‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
महासमुंद,19 जनवरी। पूर्व संसदीय सचिव व महासमुंद के पूर्व विधायक विनोद सेवन लाल चंद्राकर ने जारी विज्ञप्ति में कहा कि 1 साल के कार्यकाल में भाजपा अब तक एक भी नई योजना नहीं बना पाई और ना ही कोई बड़ी घोषण की। एक साल में राज्य सरकार की कोई उपलब्धि नहीं है। बल्कि अपनी पूर्व घोषणा को यह सरकार पूरा नहीं कर पा रही है।
उन्होंने विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि किसानों को एकमुश्त धान का 3100 रुपए भुगतान न कर साय सरकार उनके साथ पहले ही धोखेबाजी कर चुकी है। सरकार ने धान खरीदी देर से शुरू की।ताकि सुनियोजित तरीके से किसानों को धान बेचने से वंचित किया जा सके। 31 जनवरी तक धान खरीदी की अंतिम तिथि है। जिले में 1 लाख 62 हजार किसान धान बेचने के लिए पंजीकृत हैं। जिसमें से अब तक 1 लाख 45 हजार किसानों से कुल 9 लाख 79 हजार 142 एमटी धान खरीदी हुई है। छुट्टियां काटकर केवल अब 8 दिन का समय ही धान खरीदी के लिए बचता है। ऐसे में शेष 17 हजार किसानों से खरीदी कर पाना संभव नहीं दिखता।
इसके अलावा सरकार खरीदी केंद्रों से धान का उठाव नहीं कर पा रहा है। 9.79 एमटी धान में से 5.16 लाख एमटी धान समितियों में जाम पड़ा है। यह भी एक प्रमुख कारण है। बफर लिमिट से अधिक धान होने के कारण समिति प्रभारी धान खरीदी करने से हाथ खड़े कर रहे हैं। सोसायटी में धान जाम होता जा रहा है। खरीदी शुरू होने के बाद से जाम की वजह से कई बार धान खरीदी बंद किया जा चुका है। किसानों को टोकनए बारदाना को लेकर भी काफी मुश्किलें हुई है।
श्री चंद्राकर ने कहा कि अब तक कोई नई नीति व योजना बना पाने में विफल भाजपा सरकार ने 1 साल के कार्यकाल में ही कर्ज लेने का इतिहास रच डाला है। जिस हिसाब से कर्ज लिया गया। सरकार को जनता को बताना चाहिए कि हजारों करोड़ का कर्ज किस प्रयोजन से लिया गया और रूपए कहां गए। ना तो किसानों को धान का भुगतान हो रहा है, ना ही युवाओं को भत्ता दिया जा रहा, ना महिलाओं को 500 में गैस सिलेंडर दिया गया और ना ही निराश्रितों का पेंशन 1500 रुपए किया गया। भाजपा ने हर वर्ग को ठगा। यहां तक कांग्रेस सरकार की पुरानी योजनाएं राजीव युवा मितान क्लब, बेरोजगारी भत्ता, भूमिहीन कृषि न्याय योजना, गोधन न्याय योजना बंद कर दी गई। आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक काम बंद हो गए है। मनमाना बिजली बिल आ रहा है। स्मार्ट मीटर से बिल और बढ़ गया है। कोदो, कुटकी, रागी, सब्जी बाड़ी लगाने वाले किसानों को 10 हजार रुपए प्रति एकड़ मदद मिलती थी।
लेकिन ये योजना भी बंद है।