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नीति आयोग विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियों के प्रवक्ता जैसा-कैट
31-Aug-2021 2:32 PM
नीति आयोग विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियों के प्रवक्ता जैसा-कैट

रायपुर, 31 अगस्त। कैट राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अमर पारवानी, चेयरमेन मगेलाल मालू, अमर गिदवानी, प्रदेश अध्यक्ष जितेन्द्र दोशी, कार्यकारी अध्यक्ष विक्रम सिंहदेव, परमानन्द जैन, वाशु माखीजा, महामंत्री सुरिन्द्रर सिंह, कार्यकारी महामंत्री भरत जैन, कोषाध्यक्ष अजय अग्रवाल एवं मीड़िया प्रभारी संजय चौबे ने बताया कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत ई-कॉमर्स नियमों के मसौदे पर नीति आयोग द्वारा की गई अनावश्यक टिप्पणियाँ उन उद्देश्यों के विपरीत हैं जिनके लिए नीति आयोग का गठन किया गया है।

श्री पारवानी ने बताया कि देश के 8 करोड़ व्यापारियों के दृष्टिकोण नीति आयोग एक निरर्थक संस्था है क्योंकि इसने देश में व्यापारिक समुदाय के विकास या डिजिटलीकरण के बारे में एक भी अवधारणा या योजना नोट नहीं निकाला है न ही उस दिशा में आज तक कोई कार्य किया है। ई-कामर्स नियमों पर आयोग की टिप्पणी सीधे सरकार के अधिकार क्षेत्र को एक चुनौती है और कैट ऐसे प्रवचनों पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करता है।

श्री पारवानी और श्री दोशी ने बताया कि नीति आयोग का उद्देश्य संघीय ढांचे को मजबूत करना और राष्ट्र के विकास के लिए समग्र योजना तैयार करना है। अन्य प्रमुख उद्देश्य देश में उद्यमिता विकास में योगदान देना है। उसके चार्टर में वॉचडॉग के रूप में कार्य करने का कोई अधिकार नहीं दिया गया है। ई-कॉमर्स नियमों पर टिप्पणी कर नीति आयोग ने अपने अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन किया है जो अवांछनीय है। स्वयं में कोई सरकार नहीं बल्कि सरकार द्वारा बनाई गई एक संस्था है। यह बेहद खेदजनक है कि नीति आयोग की टिप्पणियों ने उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय की क्षमता और बुद्धिमत्ता पर सवाल उठाया है।

श्री पारवानी और श्री दोशी ने बताया कि भारत के ई-कॉमर्स व्यवसाय को आसमान स्तर की प्रतिस्पर्धा लाने और सरकार के लिए बाधाओं को बढ़ाने एक सोची समझी चाल के अलावा और कुछ नहीं है। ऐसे समय में जब विदेशी वित्त पोषित ई-कॉमर्स कंपनियां लागत से भी कम मुक्त पर माल बेच रही है, गहरी छूट, इन्वेंट्री के मालिक और तरजीही विक्रेता प्रणाली का संचालन करके छोटे व्यवसायों को कुचलने के लिए कानून या नियमों का उल्लंघन कर रही हैं, तब नीति आयोग चुप रहा और एक भी शब्द नहीं बोला।

श्री पारवानी और श्री दोशी ने बताया कि इन कंपनियों को क़ानून का पालन करने के लिए कभी नहीं कहा, लेकिन अब जब सरकार कुछ अति वांछित नियम लाने की कोशिश कर रही है, तो अचानक नीति आयोग ने ब्रह्म अवतार की भूमिका को अपनाया और चुनी हुई सरकार के लिए तर्कहीन बयान दिए कि सरकार क्या करें और क्या न करें? यह एक महत्वपूर्ण सवाल उठा रहा है कि निर्वाचित सरकार सर्वोच्च है या निर्वाचित सरकार द्वारा बनाई गई निकाय सर्वोच्च है?

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