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रायपुर, 31 अगस्त। कैट ने उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय द्वारा प्रस्तावित ई-कॉमर्स नियमों में हस्तक्षेप करने के लिए आज नीति आयोग की कड़े शब्दों में निंदा करते हुए बताया कि नीति आयोग ने जिस प्रकार से ई कॉमर्स व्यापार में उपभोक्ता मंत्रालय द्वारा नियमों के प्रारूप पर जिन शब्दों का प्रयोग किया है उससे स्पष्ट रूप से नीति आयोग पर विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियों के दबाव और प्रभाव का नतीजा लगता है।
कैट ने बताया कि ऐसा प्रतीत होता है कि नीति आयोग देश के ई-कॉमर्स क्षेत्र में बहुप्रतीक्षित सुधार को पटरी से उतारने के लिए कटिबद्ध है और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत के आह्वान को लेकर गंभीर नही है। यह अत्यंत खेद की बात है कि अपने अस्तित्व के 8 वर्षों के बाद भी, नीति आयोग अपनी औपनिवेशिक मानसिकता से उबर नहीं पाया है।
कैट के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अमर पारवानी एवं प्रदेश अध्यक्ष जितेन्द्र दोशी ने नीति आयोग पर कड़ा प्रहार किया और कहा कि यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि पिछले सात वर्षों में नीति आयोग ने अपनी स्थापना के बाद से भारत के 8 करोड़ व्यापारियों का समर्थन करने के लिए कुछ भी नहीं किया है और अब जब सरकार देश के व्यापारियों को ई कॉमर्स में एक मजबूत ज़मीन देने का प्रयास कर रही है।
उन्होंने बताया कि नीती आयोग के इस तरह का कठोर और उदासीन रवैया बहुत चौंकाने वाला है। नीति आयोग पिछले आठ वर्षों से मूक दर्शक बन कर विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा भारत के ई-कॉमर्स व्यापार के चीयर हरण को देश रहा था। जब विदेशी ई-कॉमर्स दिग्गजों ने एफडीआई नीति के हर नियम को दरकिनार कर दिया है और देश के खुदरा और ई-कॉमर्स परिदृश्य का स्पष्ट रूप से उल्लंघन किया और नष्ट कर दिया तो ऐसे में अचानक नीति आयोग अब नींद से जाग गया और सरकार के ई कॉमर्स में सुधार लाने के क़दमों का खुला विरोध शुरू कर दिया।


