बिलासपुर
-प्राण चड्ढा
आखिर क्या बात है जो वन्यजीवों की बढ़ोतरी जैसी छतीसगढ़ के बारनवापारा सेंचुरी में हो रही है, वैसी अचानकमार टाइगर रिजर्व में नहीं हो रही। अब कुछ कारण साफ हो गए हैं।
बारनवापारा में जून के इन दिनों जब तप कर नवतपा चला गया, चीतल और सांभर के लिये घास पर्याप्त है। यह सूखी जरूर लगती है, लेकिन कुदरती है और पौष्टिक भी। बीते प्रवास में इसी ऊंची घास में यहां से ब्लैक बक का झुंड मिला था। इस बात इस घास में बाइसन का झुंड मिला। सभी मजबूत देहयष्टि के कारण आकर्षक भी थे। इनमें एक विशालकाय मादा बाइसन का सींग सामने की तरफ बेहद खतरनाक लग रहा था। आक्रमण के दौरान जानलेवा भी।
अब बात अचानकमार टाइगर रिजर्व की करें। यहां साल याने सरई का जंगल है। पतझड़ में झरे साल के पत्ते का एक रेड कार्पेट अभी तक बिछा है। बरसात में ये पत्ते गलकर जैविक खाद बनेंगे, तब नीचे कहीं से घास उगेगा। यहां बाइसन अन्य पेड़, वनस्पति और बांस से पेट भर लेता है लेकिन चीतल को चारे की किल्लत का लगातार सामना करना पड़ता है। इस वजह से यहां के चीतल कद काठी और सेहत में कमतर हैं।
प्राकृतिक पानी की अचानकमार में कमी है। मानव निर्मित जलाशय में पानी है। पक्षी विहार में मछलीमार प्रवासी बाज आस्पे, गर्मी में भी नहीं गया है। पक्षी विहार में मत्स्य आखेट करते आज 2 जून को रिकॉर्ड किया गया। क्या वह यहीं रुका रहेगा ?
अचानकमार में मानव निर्मित ‘जल कुंड’ अक्ल की बेचारगी के नमूने हैं। ये किसी मानक आकार या फिर आवश्यकता से कम के लगते हैं, जबकि अन्य पार्क में टाइगर इनमें नहाते रिकॉर्ड होते हैं।
अचानकमार में लावारिस मवेशी चीतल-सांभर के हिस्से का चारा चर जाते हैं, जबकि बार में ऐसा दृश्य नहीं दिखता। बारनवापारा के वन्य जीवों का विश्वास आदमी ने जीत लिया है। नर मोर तो अब जंगल की शोभा हैं। बार में वन्यजीव मानव को देख डरना छोड़ रहे हैं। यानी फोटोग्राफी के बेहतर मौके और सस्ती जिप्सी सवारी।
बार की कमी-
-मोबाइल नेटवर्क नहीं है। जबकि पर्यटन आवास एरिया में एक अदद राऊटर लगाया जा सकता है जैसा उसके सामने वन विभाग के दफ्तर में है।
-आवासीय सुविधा-कुछ महंगी है। साफ़ सफाई और केंटीन के खाने के स्तर में सुधार।
-आवासीय सुविधा का शुल्क 25 सौ लिया गया। पर वापसी तक रसीद नहीं दी जाती।




