बलौदा बाजार

40 साल पहले रानीजरौद महुआ पेड़ों का जंगल था
11-Jul-2021 5:41 PM
40 साल पहले रानीजरौद महुआ पेड़ों का जंगल था

अब गिट्टी खदानों के लिए जाना जाता है, भरा पानी, हादसे की आशंका

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बलौदा बाज़ार, 11 जुलाई।
चालीस साल पहले रानीजरौद महुआ पेड़ का जंगल था, अब गिट्टी खदानों के लिए जाना जाता है। खदान मालिकों की मनमानी के कारण सुहेला परिक्षेत्र में पर्यावरण को नुकसान हो रहा है। धूल, गिट्टी के कणों से कृषि भूमि बंजर हो रही है।

खदानों में काम खत्म होने के बाद संचालकों द्वारा पाटने का नियम है, परंतु आज तक जितने भी खदानें खोदी गई हैं, उसे पाटा नहीं गया है जिसमें मवेशियों व लोगों के गिरने का खतरा बना हुआ है। इधर विगत दिनों हुई बारिश के बाद क्षेत्र में स्थित सभी पत्थर खदानों में पानी भर चुका है। 

प्राय: सभी खदान संचालक रिजेक्ट मटेरियल रखी जाने वाली भूमि से नियम विपरीत, बेधडक़ और अवैध रूप से पत्थर निकाल रहे हैं। खदान संचालकों द्वारा पर्यावरण और मजदूरों की सुरक्षा के प्रति भी ध्यान नहीं दिया जाता है। इसके अलावा अप्रशिक्षित मजदूरों से ब्लास्टिंग के लिए ड्रिल मशीन से पत्थरों में होल कराया जाता है। इसके अलावा 20 से 25 पत्थर खदानों के लिए महज दो से तीन ब्लास्टर ही रखे गए हैं। बेतरतीब ढंग से पड़े भारी भरकम बोल्डरों के बीच काम कर रहे किसी भी मजदूर के पैरों में न तो सेफ्टी शू था, न सिर में हेलमेट और न ही आंखों में चश्मा था। 

खदान नियमों के तहत परत दर परत पत्थर निकाला जाता है और जब तक एक परत का टूटा हुआ पत्थर निकाल कर पूरी तरह साफ नहीं किया जाता, तब तक उसके नीचे अथवा अन्य स्थानों को नहीं खोदा जा सकता, परंतु खदान संचालकों द्वारा आनन-फानन खोदे जाने के कारण फेस में पत्थरों का अंबार पड़ा हुआ है, जिसके कारण खदानों के भीतर कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है और काम करने वाले मजदूर गंभीर रूप से चोटिल हो सकते हैं।

खदानों में नहीं लगाए गए पौधे 
 पर्यावरण के संतुलन के लिए खदान व स्टोन क्रेशर के आसपास पेड़ लगाने का नियम है, परंतु किसी भी खदानों में कभी भी पेड़ पौधे नहीं लगाए गए हैं। वहीं कुछ क्रेशर में ही इक्का-दुक्का पेड़ लगाए गए हैं। इसके विपरीत पहले से लगे काफी पेड़ों को काट दिया गया है। आज से चालीस साल पहले रानीजरौद गांव के भाठा में महुआ पेड़ों का जंगल था, जो पत्थर खदानों का रूप ले चुका है। 

पिछले दिनों हुई बारिश के बाद क्षेत्र में स्थित सभी पत्थर खदानों में पानी भर चुका है परंतु प्राय: सभी खदान संचालक राजस्व और माइनिंग विभाग की आंखों में धूल झोंकते हुए रिजेक्ट मटेरियल रखी जाने वाली भूमि से नियम विपरीत, बेधडक़ और अवैध रूप से पत्थर निकाल रहे हैं।

खदानों में मवेशियों और लोगों के गिरने का खतरा 
खदानों में काम खत्म होने के बाद संचालकों द्वारा पाटने का नियम है, परंतु आज तक जितने भी खदानें खोदी गई हैं उसे पाटा नहीं गया है जिसमें मवेशियों व लोगों के गिरने का खतरा बना हुआ है। 

इधर सडक़ किनारे लगे स्टोन क्रेशर पर चौबीसों घंटे पत्थरों के पीसने से उडऩे वाली धूल के आंखों में पडऩे से सुहेला भाटापारा मुख्य मार्ग, शिकारी केसली और रानी जरौद आमाकोनी, टेकारी जाने वाले मुसाफिर परेशान होते हैं बल्कि पत्थरों के कणों के जमीन पर पडऩे से उपजाऊ जमीन बंजर होते जा रहा है। 
आमाकोनी के कुंज राम यदु, टेकारी के गज्जू वर्मा, शिकारी केसली के महाचंद्र धुर्वे सहित ग्रामीणों ने बताया कि स्टोन क्रेशर संचालकों से बरसात के अलावा बाकी मौसम में सडक़ पर पानी डालने के लिए सैकड़ों बार बोला जा चुका है, परंतु अनदेखी की जा रही है।
 


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