बलौदा बाजार
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बलौदाबाजार, 11 नवंबर। नगर के कई पुराने कुएं देखरेख और सफाई के अभाव में उपयोग से बाहर हो गए हैं। कुछ कुओं को लोहे की जाली लगाकर ढक दिया गया है, परंतु अधिकतर कुओं में कचरा जमा हो गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि इन कुओं की सफाई और रखरखाव योजनाबद्ध तरीके से कराया जाए तो यह जल संचयन और भूजल संरक्षण के लिए उपयोगी कदम साबित हो सकता है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि लगभग 25 से 30 वर्ष पहले तक नगर और ग्रामीण क्षेत्रों में कुएं पेयजल के प्रमुख स्रोत हुआ करते थे। बाद में हैंडपंप और नलों के चलन से कुओं का उपयोग कम हो गया। कई स्थानों पर लोगों ने कुओं में घर की गंदगी डालनी शुरू कर दी, जिससे वे धीरे-धीरे बंद होते चले गए।
नगर के पुराने बस स्टैंड, बेसिक शाला, पशु चिकित्सालय, सिंधी कॉलोनी, पुराना बिजली कार्यालय, शासकीय हाई स्कूल, 29 क्वार्टर, पुरानी बस्ती, जनपद पंचायत कार्यालय, पुरानी कृषि उपज मंडी और पुराना बीके कॉलेज सहित कई स्थानों पर कभी पेयजल के लिए कुएं थे। अब इनमें से कई कुएं पाट दिए गए हैं या कचरे से भर गए हैं।
कुछ नागरिकों का कहना है कि यदि जिला प्रशासन और सामाजिक संस्थाएं इन कुओं की सफाई और पुनर्जीवन के लिए अभियान चलाएं, तो इससे न केवल पुराने जलस्रोतों को संरक्षित किया जा सकेगा बल्कि वर्षा जल संचयन और भूजल रिचार्ज में भी मदद मिलेगी।
पुरानी मंडी स्थित कुएं का ऐतिहासिक महत्व
नगर की पुरानी कृषि उपज मंडी परिसर में स्थित एक कुएं का ऐतिहासिक महत्व बताया जाता है। जानकारी के अनुसार वर्ष 1935 में महात्मा गांधी ने मंडी परिसर में आयोजित एक सभा में भाग लिया था, जहां उन्होंने दलित उत्थान का संदेश देने के लिए एक दलित युवक के हाथों से पानी पिया था।
यह कुआं लंबे समय तक नगर के लोगों के लिए पेयजल का स्रोत रहा। वर्तमान में यह कुआं भी कचरे से भरा हुआ है। जिला प्रशासन ने इसके ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए आसपास सफाई कराई है, हालांकि न्यायालय परिसर और अन्य स्थानों के कुएं अब भी उपेक्षित हैं।


