बलौदा बाजार

बलौदा बाजार के शिक्षा विभाग सरकारी स्कूलों मे 589 करोड़ खर्च मतलब एक बच्चे पर 23 हजार का खर्च
11-Dec-2021 6:38 PM
बलौदा बाजार के शिक्षा विभाग सरकारी स्कूलों मे 589 करोड़ खर्च मतलब एक बच्चे पर 23 हजार का खर्च

3री से 5वीं के बच्चों को नहीं आता 10 तक का पहाड़ा और बाराखड़ी इमला वर्णमाला

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बलौदाबाजार, 11 दिसंबर।
बलौदाबाजार सालाना बनने वाली एक्टिविटी रिपोर्ट में जिला पिछले 16 साल से टॉप-5 से भी बाहर है, इस बार उसकी रैंकिंग 9 आई है स्कूल शिक्षा विभाग के 2020-21 के खर्च का ब्योरा निकाला तो पाया कि खर्च किए बजट में इस साल शिक्षा विभाग व शासन ने जिले के शासकीय स्कूलों पर पहली से 12वीं से तक पढऩे वाले 2 लाख 56015 बच्चों पर 589 करोड़ 87 लाख 20038 रुपए खर्च किए हैं।

इस हिसाब से एक बच्चे पर पूरे साल में 23040 रुपए खर्च हुए जो बलौदाबाजार के अंबुजा विद्यापीठ, डीएवी जैसे बड़े निजी स्कूलों में पढऩे वाले बच्चों के खर्च के बराबर या उससे ज्यादा ही है। और नतीजा...बच्चों को न अक्षर का ज्ञान न अंकों की समझ। ऐसे में उनके लिए निबंध लिख पाना या गणित का कोई प्रश्न हल कर पाना संभव ही नहीं दिख रहा था।

यानी सरकारी रिपोर्ट ही आईना दिखा रही है और अफसर हैं कि कोरोना की आड़ में सब चलता है कि फेर में बजट-बजट खेल रहे हैं। बड़ा सवाल ये कि कोरोना में बजट तो कम हुआ नहीं, फिर शिक्षा का स्तर कैसे गिर गया? और गिर गया तो सुधारने का कोई प्रयास क्यों नहीं हो रहा, इसका कोई ब्ल्यू प्रिंट भी शिक्षा विभाग के पास मौजूद नहीं।

इस मामले में डीईओ सीएस धु्रव का कहना है कि कोरोना की वजह से सरकारी स्कूलों में शिक्षा व्यवस्था पटरी से उतरी है, जिसे शीघ्र ही सुधार लिया जाएगा। उन्होंने कहा कि स्कूलों में अनुशासन सुधारने के लिए कसावट लाई जाएगी।

8500 शिक्षकों को साल में 490 करोड़ का वेतन
इतनी फीस में सीबीएसई स्कूल के बच्चों को अंग्रेजी भाषा, कम्प्यूटर एजुकेशन, स्पोर्ट्स की ट्रेनिंग और ऐसी ही 10-12 एक्टिविटी सिखाई जाती है जबकि शासकीय स्कूलों में बच्चों की शिक्षा का स्तर ऐसा है कि 5वीं के बच्चों को न तो 10 तक का पहाड़ा आता है और न ही वर्णमाला का ज्ञान है जबकि जिले के 8500 शिक्षकों को एक साल में 490 करोड़ रुपए वेतन के रूप में सिर्फ पढ़ाने के लिए दिए जाते हैं।

प्राइवेट से दोगुनी यानी 30 से ज्यादा एक्टिविटीज
उल्लेखनीय है कि शिक्षा के क्षेत्र में सरकार शिक्षा व्यवस्था को सुधारने के लिए तमाम प्रयास कर रही है। सरकारी स्कूलों में शिक्षा के नाम पर करोड़ों खर्च किए जा रहे हैं लेकिन शिक्षा के बिगड़े हालात सुधरने का नाम नहीं ले हैं क्योंकि प्रयास नाकाफी हैं। कहने को तो सरकारी स्कूलों में प्राइवेट से दोगुनी यानी 30 से ज्यादा एक्टिविटीज हैं लेकिन टीचर इन्हें कराने की बजाय डाटा अपडेट करने में ही लगे रहते हैं।

स्कूल के बाहर जुए की फड़, स्कूल के अंदर बच्चे बातों में मशगूल
 बलौदाबाजार के ही आधा दर्जन से अधिक स्कूलों का सर्वे किया तो सभी सरकारी स्कूलों के हालात एक जैसे ही दिखे। तस्वीर बलौदाबाजार के महात्मा गांधी स्कूल की है, जहां स्कूल में प्रवेश करने के पहले बिल्डिंग के बाहर ही जुएं की अलग-अलग फड़ चल रही थे। वहीं स्कूल के अंदर एक क्लास के कमरे में 16 बच्चे थे जिसमें सभी आपस में बातें कर रहे थे। यहां पढऩे वाले 5वीं के अजय पटेल ने बताया कि उसे पहाड़ा तो 6 तक आता है मगर उसे क, ख, ग नहीं आता। यहीं पढऩे वाली उर्मिला कुर्रे, निशा मारकण्डेय ने भी यही बातें दोहराईं।

फूटी पाइपलाइन, छत से टपकते पानी के बीच क्लास
सदर रोड स्थित बेसिक स्कूल में तो शौचालयों में गंदगी का आलम था। 4थी क्लास में सिर्फ 10-12 बच्चे ही मौजूद थे, पास में ही फूटी पाइप लाइन की वजह से छत से लगातार पानी फर्श पर टपक रहा था। 3री में के छात्र सोमनाथ यादव, प्रियांशी यादव, आशीष, गजेन्द्र, काव्या कुर्रे या 5वीं के हिमांशु यादव, हिमांशु पटेल, पूर्णिमा पटेल किसी को भी 10 के उपर का पहाड़ा नहीं आता था, ना ही वे अ, आ, इ, ई जैसी वर्णमाला जानते थे।

10वीं-12वीं के नतीजों में जिला टॉप-10 से बाहर
रिपोर्ट के मुताबिक पिछले वर्ष 10वीं, 12वीं के नतीजों के आधार पर जिला प्रदेश में 12वें स्थान पर था। जिला बनने के 4 साल पहले ही 2008 में शैक्षणिक जिला बना बलौदाबाजार पिछले 13 सालों से 10वीं-12वीं जैसी मुख्य परीक्षाओं के नतीजों में टॉप-10 से बाहर है।
 


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