बलौदा बाजार

औपचारिकता ही ग्रामीण अंचलों में शेष
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
कसडोल, 8 अगस्त। छत्तीसगढ़ के प्रमुख त्योहारों में हरियाली की किसान वर्ग में प्रमुख मान्यता रही है ।पूरे भारत वर्ष में हरियाली त्योहार कृषि प्रधान होने के कारण इसकी महत्ता है ।किंतु आर्य सनातन धर्म और आस्था को धीरे धीरे पश्चिमी सभ्यता अपनी आगोश में लेता जा रहा ।इसमें किसी अन्यों का नहीं हम स्वयं दोषी हैं ।
छ:त्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है । यहां 75 प्रतिशत लोग कृषि पर आधारित वयवसाय करते हैं ।यही वजह है कि हरियाली दिवस को एक त्यौहार के रूप में लोग सदियों से परम्परा के रूप में मनाते आ रहे हैं ।इस दिन किसान खेती किसानी के काम से निबृत्त होकर त्यौहार को विधिवत मनाते हैं ।जिसमें बैल भैसा को तथा गौ को परिवार के सदस्य के रूप में मान्यता रखते हैं ।इसकी वजह भी है कि इसी के भरोसे पूरे परिवार का पालन पोषण अन्न पैदा कर करते हैं
हरियाली त्यौहार की सदियों से माँन्यता के अनुसार प्रात: सभी मवेशियों को अंडा पान की नमक पोटली बनाकर खिलाते हैं ।पशुओं के सहित कृषि औजार को धोकर आंगन में स्थापित कर पूजा करते हैं ।प्रत्येक कृषक मीठा चीला रोट बबरा बनाकर भोग लगा सर्व प्रथम मवेशियों को प्रसाद खि़लाख सपरिवार खाते हैं ।कृषि का आज वैज्ञानिकता ने जकड़ लिया है ।किसान बैल भैंसा हल से खेती करनें के बजाय ट्रेक्टर हार्वेस्टर का उपयोग करने लगे हैं ।यही वजह है कि शहरी और ग्रामीण कस्बों में मवेशी की संख्या नहीं के बराबर हो गए हैं ।ग्रामीण अंचलों में भी 25 प्रतिशत किसान ही हलों का उपयोग करते हैं ।जो इस त्यौहार को संजो कर रखे हुए हैं । इन्ही सब कारणों से हरियाली त्यौहार की औपचारिकता ही रह गई है ।
हरियाली बच्चों का यादगार त्यौहार
इस दिन छोटे छोटे 10 से 15 साल के बच्चे गेंड़ी चढ़ते हैं ।इसकी भी अपनी प्राचीन माँन्यता यह है कि गेंड़ी चढऩे से साहस सन्तुलन निर्भीकता स्वावलम्बन की शिक्षा मिलती है ।जो आगे चलकर जीवन को संयमी बनाने की सीख मिलती है । गेड़ी प्रथा भी अब सिर्फ ग्रामीण इलाकों में सिमट कर रह गया ।जो यंत्र तत्र देखने को मिल जाता है ।