बालोद

हादसे में बुझी रोशनी, पर उम्मीदों ने चमकाया जीवन
10-Sep-2022 4:26 PM
हादसे में बुझी रोशनी, पर उम्मीदों ने चमकाया जीवन

शिव जायसवाल

(‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)

बालोद, 10 सितंबर । बालोद शहर से 4 किलोमीटर की दूरी पर झलमला तिराहा पर रहने वाले एक चर्मकार ने आज पूरे जिले सहित प्रदेश में अपनी अलग पहचान बनाई है। पहचान इसलिए कि उसने कभी अपनी कमियों को बहाना नहीं बनाया और जीने के लिए उसी राह में चलते रहे जिस राह में भी बचपन से चल रहे हैं।

दरअसल गंगानगर झलमला में रहने वाले चंद्रिका प्रसाद बचपन से जूते बनाने सिलने रंगने तैयारी का काम कर रहे थे, दल्ली राजहरा की एक फैक्ट्री में जूते सिलने के दौरान एक औजार उनकी आंखों में चुभ गया और रोशनी चली गई। रोशनी आंखों से तो गई, परंतु उन्होंने उम्मीदों का दिया जलाए रखा और आज इन्हीं उम्मीदों के लिए से वह बिना आंखों के भी बड़ी बखूबी से जूते चप्पल सिलने रंगने व बनाने का काम कर रहे हैं।

परिवार आता है छोडऩे
चंद्रिका प्रसाद एक छोटी सी गुमटी में चौक किनारे अपना दुकान संचालित कर रहे हैं, सुबह ही अपने घर में नित्य क्रिया के बाद तैयार होते हैं, उसके बाद उनकी बेटी सुनीता उन्हें उनके दुकान तक छोड़ देने के लिए जाती है, उसके बाद दिन भर भी दुकान में मेहनत करते हैं और शाम को उसकी बेटी पुन: उन्हें लाने के लिए जाती है पैदल ही दोनों आना-जाना करते हैं और इसी तरह उनका जीवन यापन चल रहा है।

परिवार का एक मात्र सहारा
चंद्रिका प्रसाद के परिवार में 8 सदस्य हैं, जिनमें उनका बेटा व बहू दूसरी जगह काम करते हैं और अपने परिवार का लालन पालन करते हैं परंतु उनकी एक बूढ़ी मां, दो बेटियां और पत्नी की जिम्मेदारी उन्हीं के कंधों पर है। बेटी सुनीता ने बताया कि उन्हें गर्व है कि उनके पिता ने कभी भी उनके लिए कोई कमी नहीं होने दी और आंख ना होने के बावजूद भी आज परिवार की जिम्मेदारी वे बखूबी निभा रहे हैं।

कला के लोग हैं कायल
आसपास के लोगों से जब हमने बात की तो उन्होंने बताया कि इनकी कला के कायल लोग हर तरफ हैं जो भी यहां से गुजरता है इस दृष्टिबाधित चर्मकार से काम जरूर लेता है एक व्यक्ति ने बताया कि वह जूता हो चप्पल हो सब को उनके पास लाते हैं और उन्हें कभी इनसे कोई शिकायत नहीं हुई है वह आंखों से तो अंधे हैं परंतु उनके जज्बे हर काम को आसान बना देते हैं चाहे जूते सिलने का काम हो जूते रंगने का काम हो या फिर चप्पलों की सिलाई का वह बिना देखे ही हर काम को बखूबी कर रहे हैं।

रंगों को पहचानने की कला
यह बात बड़ी अचंभित है परंतु सत्य है यह अपने जूते रंगने के डिब्बों को क्रमवार रखते हैं ताकि इन्हें कोई समस्या ना हो परंतु बिना ग्राहक के बताए ही उनके जूते का रंग यह परख लेते हैं अपने हाथों से उन रंगों को महसूस करते हैं और वह वही रंग उसमें लगाते हैं जो जूते में पहले से ही लगे होते हैं।

पहले खुले आसमान के नीचे करते थे काम
ज्ञात हो कि चंद्रिका प्रसाद जग नायक पहले खुले आसमान के नीचे झलमला चौक में ही अपना दुकान लगाते थे उन्हें शासन की ओर से एक छोटी सी बेटी मिली हुई थी इसके बाद उन्होंने बताया कि स्थानी कलेक्टर समाज कल्याण विभाग और स्थानीय पंचायत विभाग के माध्यम से उन्हें आज व्यवस्थित गुमटी दी गई है और उसी गुमटी में बैठकर वह अपना जीवन यापन कर रहे हैं।

बेटियों की शादी की चिंता
चंद्रिका प्रसाद इतना तो कमा लेते हैं कि उनका घर चल जा रहा है। उन्होंने बताया कि सरकार चावल देती है और सब्जी इत्यादि के लिए वे पैसा कमा ही लेते हैं, परंतु उनकी दो बेटियां हैं जिनके हाथ पीले करने की चिंता उन्हें सता रही है और उन्हें शासन से उम्मीद है कि उनकी बेटियों के लिए भी शासन और प्रशासन आगे आकर कुछ जरूर करेगी, वहीं उनकी बेटी सुनीता ने बताया कि वह जिस जगह पर रहते हैं उस जगह का पता नहीं है। उन्होंने सरकार से स्थाई पट्टे की मांग की है।


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