-नीरज सहाय
बिहार में 'सुशासन बाबू' के नाम से मशहूर नीतीश कुमार के राज में पिछले कुछ दिनों से आपराधिक घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं. इन घटनाओं से ऐसा लग रहा है कि राज्य का सुशासन से दूर का रिश्ता है.
राजधानी पटना से सटे भोजपुर ज़िले के कोइलवर थाना के तहत सोन नदी के किनारे पंचरुखिया घाट पर शुक्रवार को दिनदहाड़े लगभग दो घंटों तक गोलीबारी होती रही. इस गोलीबारी में दो लोगों की मौत हो गई.
पंचरुखिया घाट की बंदोबस्ती होने के बाद कामेश्वर राय पूजा करने शुक्रवार को सोन नदी के किनारे गए हुए थे. उनके साथ उनके कई साझेदार और दोस्त भी थे.
लेकिन जैसे ही घाट पर पूजा शुरू हुई राइफ़ल की गोलियों और बम के धमाकों से पूरा इलाका थर्रा उठा. ये गोलीबारी लगभग दो घंटों तक चलती रही. घाट की पूजा करने गए लोगों में इससे भगदड़ मच गई. लोग किसी तरह जान बचाकर वहां से भागे.
घटनास्थल पर मौजूद दीपक सिंह बताते हैं, "अवैध खनन करने वालों ने हमें रोकने और भयभीत करने की मंशा से गोलीबारी की. हमलोग किसी तरह वहां से जान बचाकर निकले. थाने पहुंचने पर हम लोगों ने पुलिस से कहा कि हमारे दो-तीन लोग लापता हैं. इसके बाद पुलिस ने घटनास्थल से दो शव बरामद किए. इनमें एक दुर्गेश शर्मा भी थे, जो गोल्ड लोन की एक निजी कंपनी में मैनेजर थे."
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के महाराजगंज ज़िले के बेलवरिया गांव के रहने वाले दुर्गेश के बड़े भाई विनोद शर्मा को इस घटना की सूचना पुलिस ने दी. वे कहते हैं, "दोपहर एक बजे उससे बात हुई थी. उसने बताया था कि दोस्तों के साथ वह घाट पर गया हुआ है."
पटना से सटे ज़िले में हुई इस घटना ने राज्य के सरकारी तंत्र को सवालों को घेरे में ला खड़ा किया है. पुलिस ने इस मामले में 26 लोगों के खिलाफ एफ़आईआर दर्ज़ करते हुए दो लोगों को गिरफ़्तार किया है.
इससे पहले, राजधानी पटना में बीते गुरुवार को पटना की सबसे बड़ी सर्राफ़ा मंडी बाकरगंज में अब तक की सबसे बड़ी लूट हुई. इसमें 14 करोड़ रुपये के ज़ेवर केवल 15 मिनट में लूट लिए गए. सोमवार को इस मामले में पटना पुलिस ने 5 अपराधियों को गिरफ़्तार करने का दावा किया है.
पटना में ही राजीव नगर मुहल्ले में एक अन्य सर्राफ़ा कारोबारी की दुकान में घुसकर हमलावरों ने उन्हें गोली मार दी.
उधर रविवार को राज्य के उत्तरी-पश्चिमी ज़िले पश्चिमी चंपारण में नीतीश सरकार के पर्यटन मंत्री नारायण प्रसाद के बेटे द्वारा बच्चों की पिटाई करने और उन्हें बंदूक़ से डराने की घटना का वीडियो सामने आया.
नारायण प्रसाद बेतिया के नौतन से बीजेपी के विधायक हैं. हालांकि पुलिस ने उनके बेटे के ख़िलाफ़ सोमवार को मुक़दमा दर्ज़ कर लिया, लेकिन अब तक इस मामले में कोई कार्रवाई होने की सूचना नहीं है.
इसके अलावा, दो दिन पहले मुज़फ़्फ़रपुर में एक पेट्रोल पंप को लूटने के इरादे से कई अपराधियों के हमला करने की भी ख़बर आई. हालांकि पहले से मिली सूचना के चलते पुलिस की कार्रवाई में कई बदमाशों को गोली लगी और उनके साथ चार और बदमाशों को मौक़े पर ही पकड़ लिया गया.
एक ओर, रेत माफ़िया कोइलवर जैसी घटना को अंजाम दे रहे हैं. वहीं हत्या, जबरन वसूली, लूटपाट, डकैती और चोरी की ख़बरें भी रोज़ अख़बारों की सुर्ख़ी बन रही हैं. संगठित आपराधिक गिरोह लगातार राज्य के सर्राफ़ा कारोबारियों, बैंकों और एटीएम आदि को निशाना बना रहे हैं.
साथ ही, शराबबंदी होने के बाद भी शराब माफ़िया के संरक्षण में राज्य में नकली शराब का धंधा फल-फूल रहा है. इसकी वजह से बेतिया, मुज़फ़्फ़रपुर, गोपालगंज और मुख्यमंत्री के गृह ज़िले नालंदा तक से ज़हरीली शराब से मरने की घटनाएं लगातार सामने आई हैं.
लेकिन अपराध की इन तमाम घटनाओं को लेकर बिहार पुलिस के आला अधिकारी चुप्पी साधे हुए हैं. हालांकि इन सभी घटनाओं की ज़िम्मेदारी केवल पुलिस पर डालना उचित नहीं है, बल्कि पुलिस को नियंत्रित करने वाली राजनीतिक सत्ता की जवाबदेही कहीं ज़्यादा है.
ऐसे में 'सुशासन बाबू' के नाम से जाने जाने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अब राज्य में गिरती क़ानून-व्यवस्था को लेकर कटघरे में खड़ा किया जा रहा है.
जगदानंद सिंह कहते हैं, ''लोगों को केवल भ्रम था कि वे 'सुशासन बाबू' हैं. ये तो प्रचारित अभियान की तरह था. ऐसा लालू प्रसाद के कार्यकाल को ग़लत साबित करने के लिए किया गया था. सुशासन तो वही दे सकता है, जो स्वयं सुशासित हो.''
उन्होंने आगे कहा, "लालू प्रसाद के कार्यकाल के दौरान कमज़ोर लोगों के मन में अपनी प्रतिष्ठा और सम्मान को लेकर जो एक उफ़ान था, उस प्रतिरोध से चिढ़े हुए लोगों ने इन्हें यह नाम दिया था. जो समाजवाद के नाम पर सत्ता में आए और सांप्रदायिक लोगों से हाथ मिला ले, उससे सुशासन की कैसी उम्मीद की जाए?"
जगदानंद सिंह आक्रामक अंदाज़ में कहते हैं, "शासन वही कर सकता है जिसमें सिद्धांत और आदर्श की नीति हो. इसके ठीक उल्टा काम करने वाले को सुशासन-सुशासन कहा जाता रहा. सुशासन का मतलब पूरी आबादी के लिए शासन होता है. विशेष अधिकार प्राप्त वर्ग के लिए शासन चलाने वाला सुशासन कैसे दे सकता है."
नीतीश कुमार 2005 में जब बिहार के मुख्यमंत्री बने, तो 'सुशासन बाबू' की उनकी छवि कई वजहों से बनी थी.
एक तो विकास योजनाओं के कार्यान्वयन की तारीफ़ हुई, वहीं वे जातिगत समीकरणों के परे जाकर क़ानून-व्यवस्था और अमन-चैन का राज क़ायम करने में सफल रहे.
उनके पहले कार्यकाल के दौरान, राज्य में क़रीब 70 हज़ार छोटे-बड़े अपराधियों को जेल में डाला गया था. इससे क़ानून-व्यवस्था पर काफ़ी सकारात्मक असर पड़ा था.
लेकिन जानकारों की नज़र में नीतीश कुमार के पिछले और मौजूदा कार्यकाल में बिहार में क़ानून और व्यवस्था का वो इक़बाल नहीं दिख रहा है, जो उनके पहले और दूसरे कार्यकाल में था. आख़िर इसका कारण क्या हो सकता है
कुछ जानकार मानते हैं कि 2020 में नीतीश कुमार जब मुख्यमंत्री बने तो उनकी अपनी पार्टी जदयू राज्य में तीसरे नंबर पर थी. उनकी सहयोगी बीजेपी की सीटें जदयू से ज़्यादा थीं.
वहीं सत्तारूढ़ एनडीए गठबंधन में विभिन्न मुद्दों को लेकर चारों दलों में आपसी मतभेद भी हैं. जातिगत जनगणना के मुद्दे पर यह ज़ाहिर भी हो चुका है.
इससे जनता और प्रशासन, दोनों के बीच शायद ये संदेश गया है कि नीतीश कुमार अब उतने मज़बूत नहीं रहे.
इस बारे में, बिहार और झारखंड दोनों राज्यों के मुख्य सचिव रह चुके विजय शंकर दुबे ने बीबीसी हिंदी से बातचीत में माना कि नीतीश कुमार राजनीतिक तौर पर अब उतने प्रभावी नहीं रह गए हैं.
वीएस दुबे कहते हैं, "2020 के विधानसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की स्थिति राजनीतिक रूप से कमज़ोर हो गई है. चुनाव के पूर्व इनकी स्थिति मज़बूत थी, लेकिन अब वो बात नहीं है.''
राजनीतिक रूप से कमज़ोर होने के नुक़सान बताते हुए वो कहते हैं, ''राजनीतिक रूप से कमज़ोर होने पर ये हो सकता है कि वो दूसरों को अपने साथ रखने की मजबूरी की वजह से ट्रांसफ़र-पोस्टिंग में समझौता कर रहे हों. ऐसी स्थिति में अगर आप ख़राब या अच्छा प्रदर्शन न करने वाले अधिकारियों की पोस्टिंग करेंगे, तो इसका असर तुरंत दिखेगा. सबसे पहले इसका असर क़ानून-व्यवस्था पर ही पड़ता है."
वो आगे कहते हैं, "नीतीश कुमार पिछले क़रीब 16 साल से मुख्यमंत्री बने हुए हैं. वे जानते हैं कि अब ज़्यादा दिनों तक इस पद पर वे नहीं रह सकते. ज़ाहिर है ऐसी स्थिति में इंसान शिथिल हो जाता है. उनमें अब वो चमक और हनक नहीं रही, जो इनके पहले कार्यकाल में थी."
हालांकि सत्ताधारी जदयू के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा का मानना है कि नीतीश कुमार का व्यक्तित्व और नेतृत्व का क़द इतना बड़ा है कि संख्या बल से उस पर कोई असर नहीं पड़ता.
वे कहते हैं, "आपराधिक घटनाएं होती रहती हैं. कभी कम या ज़्यादा. सरकार की जो जवाबदेही है, उसका निर्वहन वो बख़ूबी कर रही है. सरकार के लिए सुशासन कल भी प्राथमिक एजेंडा था और आज भी है. किसी भी घटना का अवलोकन कीजिए, आप पाएंगे कि सरकार और पुलिस उस पर अच्छे से कार्रवाई कर रही है."
'शराबबंदी से बढ़ा क़ानून-व्यवस्था पर बोझ'
क़ानून और व्यवस्था के मोर्चे पर नीतीश सरकार के ढीले प्रदर्शन पर बीजेपी के पूर्व नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा ने बीबीसी हिंदी से बातचीत की.
यशवंत सिन्हा कहते हैं, "सुशासन का ठप्पा ही ग़लत लगा था. अब उनका सही चेहरा सामने आ रहा है. उन्होंने शराबबंदी करके बिल्कुल ग़लत काम किया. मैं देख रहा था कि इससे संबंधित तीन लाख से ज़्यादा मामले विभिन्न न्यायालयों में लंबित हैं. उनका क्या होगा, कब फ़ैसला होगा.''
उन्होंने बताया, ''शराबबंदी लागू कर उन्होंने सरकारी राजस्व को निजी फ़ायदे में बदल दिया. अब सरकारी राजस्व से ज़्यादा रिश्वत के रूप में बड़ी राशि सरकारी अधिकारियों को मिलती है. ऐसे में ये सोचना मुश्किल है कि इसमें राजनीतिक लोगों का हाथ नहीं हो सकता."
बहरहाल, राज्य के मौजूदा हालात को देखते हुए नीतीश कुमार के लिए क़ानून और व्यवस्था के मोर्चे पर पुराना प्रभाव हासिल कर पाना आसान नहीं है. फ़िलहाल तो वे और उनका शासन संगठित आपराधिक तंत्र के आगे बेबस ही नज़र आ रहे हैं. (bbc.com)