विचार / लेख

...मिलने का एकमात्र स्थान
06-Apr-2021 3:53 PM
...मिलने का एकमात्र स्थान

-द्वारिका प्रसाद अग्रवाल

बात दूकानों में लगे बोर्ड से शुरू हुई थी इसलिए वहीं ख़त्म की जाए। ‘एक मात्र दूकान’ होने का दावा उनका थोथा दावा होता है क्योंकि वैसी दूकानें और भी होती हैं। ऐसा लिखने के पीछे आशय यह होता है कि ग्राहक इधर-उधर न देखे, सीधे उनकी दूकान में घुस जाए और अपनी जेब ढीली कर दे।

पूरे देश में भ्रमण के दौरान मैंने दूकानों में लगे विज्ञापन बोर्डों पर अक्सर यह लिखा पाया, ‘...मिलने का एकमात्र स्थान।’

यद्यपि वह सामान आसपास की अनेक दूकानों में उपलब्ध रहता है लेकिन हर किसी का दावा होता है कि कथित सामान का एक मात्र विक्रेता वही है।

दावा करना हमारी आदत में शामिल है। जो भी हम कहते हैं वो दावे के साथ कहते हैं। दावा करने का अर्थ है, अपनी बात की सत्यता को स्थापित करना और अपनी बात पर टिके रहना।

बच्चे के जन्म से दावा करना आरम्भ होता है। बच्चे के पिता का दावा होता है कि बच्चा ‘उसका’ है जबकि असलियत केवल बच्चे की मां जानती है। बच्चे को देखकर अनुमान लगाया जाता है कि वह किस पर गया है? यदि मां सामने होगी तो वह मां पर गया होता है और यदि बाप सामने होता है तो वह बाप पर गया, ऐसा दावा किया जाता है। जब दोनों सामने हों तो चतुर लोग चुप्पी साध लेते हैं कि कौन झंझट में पड़े।

इसके बाद बच्चा बड़ा होता है। यदि शांत स्वभाव का है तो दोनों खुद को ‘क्रेडिट’ देते हैं और अगर उद्दंड होता है तो मां पिता को श्रेय देती है वहीँ पर पिता मां को। यह सिलसिला बच्चे के गुण-अवगुण के आधार पर निरंतर चलता रहता है। दोनों एक-दूसरे पर मजबूती से अपने दावे प्रस्तुत करते हैं और बहस चलती रहती है।

यह दावों का खेल पति-पत्नी के बीच भी चलते रहता है। पत्नी का दावा रहता है कि पूरे परिवार का भार वह उठा रही है जबकि पति को यह ग़लतफ़हमी रहती है कि भार उसके मत्थे पर है। सही बात तो यह है कि दोनों मिलकर इस भार को उठाते हैं लेकिन जब दोनों के बीच किसी वज़ह से बहस छिड़ जाती है तो दोनों एक-दूसरे को नाचीज़ सिद्ध करने में आमादा हो जाते हैं। पत्नी का दावा होता है कि दिन भर घर में वह रहती है, बच्चों की देखरेख करती है, तीन समय का भोजन तैयार करती है लेकिन पति क्या करता है? उसे बच्चों से कोई मतलब नहीं, उसे किचन से कोई लेना-देना नहीं, उसे घर से कोई सरोकार नहीं। गौर से देखा जाए तो पत्नी की दावों में दम है और पति इन दावों के सामने बेदम नजऱ आएगा।

इसी प्रकार की स्थिति राजनीतिक दलों में भी होती है। हर दल इस बात का दावा करता है कि वही देश को रास्ते में लाने में सक्षम है जबकि उनके सत्ता पर आसीन होते ही असलियत सामने आने लगती है। यह बात किसी से छुपी हुई नहीं है कि इन दलों के नेताओं से खुद अपना घर नहीं संभलता जबकि ये इतने बड़े देश को सँभालने का दावा करते हैं। इन सबकी नजऱ में दूसरा अयोग्य है लेकिन अपनी अयोग्यता इन्हें नजऱ नहीं आती।

खैर, बात दूकानों में लगे बोर्ड से शुरू हुई थी इसलिए वहीं ख़त्म की जाए। ‘एक मात्र दूकान’ होने का दावा उनका थोथा दावा होता है क्योंकि वैसी दूकानें और भी होती हैं। ऐसा लिखने के पीछे आशय यह होता है कि ग्राहक इधर-उधर न देखे, सीधे उनकी दूकान में घुस जाए और अपनी जेब ढीली कर दे। बिल्कुल उसी प्रकार, जिस प्रकार से घर में पति आत्मसमर्पण करते हैं, मतदाता अपना वोट देकर मूर्ख बनते हैं और ग्राहक कथित दूकानदार से सामान खरीदने के बाद अपना सिर धुनते हैं।

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