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फिलीस्तीनियों पर दशकों से चले आ रहे इजराइली फौजी जुल्म साल भर पहले इसी हफ्ते इजराइल पर फिलीस्तीनी हथियारबंद हमले की शक्ल में सामने आए, जिसमें हजार से कुछ अधिक नागरिकों को मार डाला गया, और सौ दो सौ इजराइलियों का अपहरण करके उन्हें फिलीस्तीनी ले जाया गया। इसके जवाब में इजराइल के फौजी हमलों ने फिलीस्तीन के गाजा शहर के मलबे में तब्दील कर दिया है, और 40 हजार से अधिक फिलीस्तीनियों को मार डाला है। जिन्हें इतिहास की न समझ है, और न उसमें दिलचस्पी है, वे इस मौजूदा टकराव को साल भर पहले शुरू हुआ मान रहे हैं, दूसरी तरफ इतिहास के जानकार लोग इसे पौन सदी पुराना इजराइली जुल्म जानते हैं जो कि फिलीस्तीनियों की जमीन पर अवैध कब्जे से शुरू हुआ, और अब फिलीस्तीन को दुनिया की सबसे बड़ी खुली जेल बनाकर इजराइली फौज उसे चारों तरफ से बंद करके बैठी है। आज फिलीस्तीनियों के हक की लड़ाई में भारत जैसा उसका परंपरागत दोस्त रहा देश दूर चले गया है, और उसकी सारी भागीदारी इजराइल से कारोबारी लेन-देन की वजह से इजराइल तक सीमित रह गई है। हालत यह है कि पिछले एक बरस में जब इजराइल को मजदूरों की भयानक कमी पड़ी, तो भारत सरकार ने देश के कुछ प्रदेशों में अभियान चलाकर इजराइल के लिए भारतीय कामगार जुटाए, और उन्हें जंग के दौर से गुजरते हुए देश में भेजा, जबकि आमतौर पर लड़ाई के खतरे से घिरे हुए देश से अपने नागरिकों को निकाला जाता है। यह तो खाड़ी के कुछ मुस्लिम देशों से, और ईरान से भारत का कई किस्म का मतलब जुड़ा हुआ है, इसलिए हिन्दुस्तान खुलकर इजराइल के साथ खड़ा हुआ नहीं है, लेकिन वह फिलीस्तीन को दवाईयां और राहत सामग्री भेजने से परे किसी भी तरह से फिलीस्तीन के हक के साथ नहीं है।
फिलीस्तीन के बगल में लेबनान में मौजूद फिलीस्तीन के हिमायती, और ईरान से फौजी मदद पाने वाले एक मुस्लिम हथियारबंद संगठन हिजबुल्ला के साथ इजराइल का एक नया मोर्चा खुल गया है, और हिजबुल्ला पर हमले के लिए इजराइल ने लेबनान पर फौजी चढ़ाई कर दी है। फिर ईरान और इजराइल के बीच अभी प्रतीकात्मक हमले हो रहे हैं, लेकिन एक खतरा यह दिख रहा है कि क्या यह मध्य-पूर्व में एक व्यापक जंग में तब्दील हो सकता है? पहले भी इस इलाके में हुए अलग-अलग जंग में आसपास के आधा दर्जन से अधिक देश काफी बर्बादी झेल चुके हैं, और इस बार एक खतरा यह दिखता है कि ईरान परमाणु हथियार बनाने के करीब पहुंचा हुआ देश है, और ऐसी आशंका से इजराइल उसके परमाणु ठिकानों को खत्म करने पर लंबे समय से आमादा है, और अगर ईरान पर इतना बड़ा इजराइली हमला होता है, तो आसपास के देश किसी न किसी तरफ से इसमें शामिल हो सकते हैं। अब दुनिया में सवाल यह उठ रहा है कि इजराइल की फौजी गुंडागर्दी के पीछे कौन जिम्मेदार है?
अमरीका को दूसरे देशों पर फौजी हमले करने की पुरानी लत लगी हुई है। उसने एक-एक करके दुनिया के कितने ही देशों पर फौजी हमले किए, वहां की सरकारें बदलीं, इराक जैसे देश पर उसने सीआईए के गढ़े हुए झूठे सुबूतों का हवाला देते हुए हमला किया था कि वहां पर जनसंहार के हथियार मौजूद हैं जिनमें रासायनिक हथियार भी शामिल हैं, लेकिन पूरे देश पर कब्जा कर लेने के बाद अमरीका को वहां एक धेले जितना सुबूत भी नहीं मिला, और बाद में अमरीकी पत्रकारों ने ही यह भांडाफोड़ किया कि राष्ट्रपति बुश ने सुबूतों का झूठा हवाला देते हुए यह हमला किया था। ऐसा अमरीका इजराइल की पीठ पर हाथ रखकर, उसे फौजी ताकत से लैस करके, मध्य-पूर्व में अपना मवाली बनाकर तबाही फैला रहा है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कुल पांच देशों के पास किसी भी प्रस्ताव और फैसले को वीटो करने का अधिकार है, और अमरीका में शायद अपने इतिहास के 89 वीटो में से 47 बार के वीटो का इस्तेमाल महज इजराइल की गुंडागर्दी, और उसके जुर्म को बचाने के लिए किया है। दुनिया के अधिकतर देश मिलकर भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में इजराइल का कुछ नहीं बिगाड़ सके क्योंकि अमरीका उसे अपनी गोद में बिठाकर रखता है। आज भी अमरीका एक तरफ फिलीस्तीनियों के लिए राहत भेजने का नाटक कर रहा है, और दूसरी तरफ वह इजराइल को लगातार बम भेज रहा है जिन्हें बेकसूर फिलीस्तीनियों पर थोक में बरसाया जा रहा है। बमों की यह सप्लाई गाजा में अब तक 41 हजार से अधिक लोगों को मार चुकी है जिनमें 18 हजार से अधिक तो महिलाएं और बच्चे हैं।
अमरीका सीरिया से लेकर अफगानिस्तान, और इराक तक अपनी सीधी फौजी दखल रख रहा है, और इन देशों में वह जितने लोगों को चाहे, उतने लोगों को मार रहा है, सरकारें पलट रहा है, वहां अपने पिट्ठू बिठा रहा है। ऐसे में फिलीस्तीन उसकी आंखों की किरकिरी बना हुआ है जो कि अपनी जमीन पर अमरीका के लठैत-गुंडे इजराइल को कब्जा करने के खिलाफ अब तक अड़ा हुआ है। आज मध्य-पूर्व और बाकी जगहों के मुस्लिम देश भी फिलीस्तीनियों का साथ देने के लिए नहीं खड़े हैं, क्योंकि अधिकतर पर अमरीका का किसी न किसी किस्म का दबदबा रहता है। और बहुत से मुस्लिम देश तो अमरीका की जेब में हैं, जो कि दिखावे के लिए भी फिलीस्तीनी जनाजों और कब्र के बगल से बिना रूके निकल जाते हैं। इसलिए जैसा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने अमरीकी वीटो बताता है, अमरीका इजराइल की शक्ल में अपने भाड़े के हत्यारे को हथियार देकर उसे मध्य-पूर्व को काबू में करने के लिए इस्तेमाल कर रहा है। अपने शूटर का घर बसाने के लिए अमरीका को बेकसूर फिलीस्तीनियों को उनके अपने घरों से बेदखल करने में कुछ भी दुविधा नहीं हो रही, और इजराइल की हत्यारी साजिशों को बचाने के लिए अमरीका कहीं वीटो लेकर खड़ा है, तो कहीं अपने सांभा और कालिया की तरह के ब्रिटेन जैसे कुछ देशों का साथ भी जुटा लेता है। इस तरह आज इजराइल दुनिया के सबसे बड़े गुंडे, और माफिया सरदार का चहेता कातिल बना हुआ है, और मुस्लिम देशों के बीच का तथाकथित भाईचारा भी किसी को इजराइल के खिलाफ खड़े नहीं होने दे रहा। आज मध्य-पूर्व में जो नौबत आई है, उसके लिए अमरीका और इजराइल की यह गिरोहबंदी ही जिम्मेदार है, जो कि लाखों बेकसूरों को मारकर भी तेल के कुओं वाले इस इलाके पर कब्जा और एकाधिकार चाहती है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के वीटो के प्रावधान को एक बार फिर तौलना चाहिए कि आज इससे अधिक अलोकतांत्रिक, और दुनिया के लिए घातक और कोई बात रह गई है क्या?
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