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भारत के बिना दुनिया का कोरोना वैक्सीन का सपना पूरा क्यों नहीं हो पाएगा?
10-Sep-2020 7:34 PM
भारत के बिना दुनिया का कोरोना वैक्सीन का सपना पूरा क्यों नहीं हो पाएगा?

प्रशांत चाहल

रूस की सरकार अपने यहाँ बनी कोरोना वैक्सीन ‘स्पूतनिक-5’ के उत्पादन में तेज़ी लाने के लिए भारत के साथ चर्चा में है।

रूसी चाहते हैं कि अपनी वैक्सीन के ज़्यादा से ज़्यादा उत्पादन के लिए वो भारत की औद्योगिक सुविधाओं और क्षमताओं का पूरा इस्तेमाल करें। वहीं भारत को भी यह ’सिफऱ् फ़ायदे‘ की ही बात लग रही है।

भारत में कोविड-19 वैक्सीन संबंधी राष्ट्रीय विशेषज्ञ समूह के प्रमुख और नीति आयोग के सदस्य (स्वास्थ्य) डॉक्टर वी के पॉल ने कहा है कि भारत बड़ी मात्रा में उस (स्पूतनिक-5) वैक्सीन का उत्पादन कर सकता है जो रूस के लिए तो बढिय़ा होगा ही, साथ ही भारत के लिए भी यह एक ज़बरदस्त मौक़ा होगा। साथ ही दुनिया को भी हम वैक्सीन उपलब्ध करा पायेंगे।

उन्होंने जानकारी दी है कि ‘रूस ने अपने कोविड-19 वैक्सीन ‘स्पूतनिक-5’ के तीसरे चरण के परीक्षण और भारतीय कंपनियों द्वारा इसके विनिर्माण के लिए उचित माध्यमों के ज़रिये भारत सरकार से बात शुरू की, और अच्छी बात ये है कि दोनों पक्षों के बीच इसे लेकर सकारात्मक विमर्श हो रहा है।’ उन्होंने बताया कि ‘भारतीय वैज्ञानिक स्पूतनिक-5 के पहले के दो ट्रायल्स के डेटा का अध्ययन कर रहे हैं जिसके बाद जरूरत के आधार पर तीसरे चरण के ट्रायल की कार्यवाही शुरू की जायेगी।’

भारतीय दवा कंपनियों से सहयोग की उम्मीद

रूस ने स्पूतनिक-5 को बाजार में लाने के लिए ‘फ़ास्ट-ट्रैक’ तरीका आजमाया है जिसके तहत पुतिन प्रशासन ने इस वैक्सीन को कुछ आपातकालीन स्वीकृतियाँ दी हैं। हालांकि लेंसेट हेल्थ जर्नल में छपी रिपोर्ट के अनुसार, स्पूतनिक-5 के नतीज़े कोरोना से लडऩे में बढिय़ा पाये गए हैं।

रूस चाहता है कि इस वैक्सीन को जल्द से जल्द सभी स्वीकृतियाँ दिलाकर बाजार में लाया जाये, मगर फिर भी रूस के सामने जो एक बड़ी चुनौती बचती है, वो इस वैक्सीन के उत्पादन की है और इसी के लिए रूस की सरकार ने भारत सरकार के ज़रिये भारतीय दवा कंपनियों से सहयोग माँगा है। डॉक्टर पॉल के अनुसार, ‘भारत सरकार ने कई भारतीय कंपनियों से पूछा है कि कौन-कौन इस रूसी वैक्सीन को तैयार करने की इच्छुक हैं? तो तीन भारतीय कंपनियाँ अब तक सामने आयी हैं जिन्होंने इसकी इच्छा जाहिर की है। कई कंपनियाँ रूस सरकार के प्रस्ताव का अध्ययन कर रही हैं और कई अपनी रूसी समकक्षों से इस बारे में चर्चा कर रही हैं।’

सबकी निगाहें कोरोना वायरस की वैक्सीन पर

दुनिया भर में अब तक कोरोना संक्रमण के 2 करोड़ 75 लाख से ज़्यादा मामले दर्ज हो चुके हैं और कऱीब नौ लाख लोगों की कोविड-19 से मौत हो गई है।

संक्रमण के मामले में अब ब्राज़ील को पीछे छोड़, भारत दूसरे स्थान पर आ गया है। ऐसी स्थिति में जाहिर है कि सबकी निगाहें कोरोना वायरस की वैक्सीन पर हैं जिसे भारत समेत कई देश बनाने की कोशिश में हैं।

दुनिया भर में कोरोना वैक्सीन के दर्जनों क्लीनिकल ट्रायल हो रहे हैं और कुछ देशों में अब तीसरे फ़ेज के ट्रायल शुरू करने की बात हो रही है। वैक्सीन के इंतजार के बीच यह काफ़ी हद तक स्पष्ट हुआ है कि महज़ वैक्सीन बन जाने से लोगों की मुश्किलें रातों-रात ख़त्म नहीं हो जायेंगी क्योंकि आम लोगों तक इसे पहुँचाने की एक लंबी और जटिल प्रक्रिया होती है।

ग्लोबल इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट (वैश्विक बौद्धिक संपदा अधिकार) के तहत वैक्सीन बनानेवाले को 14 साल तक डिज़ाइन और 20 साल तक पेटेंट का अधिकार मिलता है, लेकिन इस अप्रत्याशित महामारी के प्रकोप को देखते हुए सरकारें 'अनिवार्य लाइसेंसिंग' का ज़रिया भी अपना रही हैं ताकि कोई थर्ड-पार्टी इसे बना सके। यानी कोरोना महामारी से जूझ रहे किसी देश की सरकार कुछ दवा कंपनियों को इसके निर्माण की इजाज़त दे सकती हैं। (बाकी पेज 8 पर)

कितना बड़ा है भारत का वैक्सीन बाज़ार?

बात दवाओं की हो तो जेनेरिक दवाएं बनाने और उनके निर्यात के मामले में भारत टॉप के देशों में शामिल है। साल 2019 में भारत ने 201 देशों को जेनेरिक दवाईयाँ बेचीं और अरबों रुपये की कमाई की।

मगर इंटरनेशनल मार्केट एनालिसिस रिसर्च एंड कन्सल्टिंग (आईएमएआरसी) ग्रुप की रिपोर्ट के अनुसार, ‘भारत इस समय दुनिया में वैक्सीन उत्पादक और आपूर्तिकर्ता देशों की फ़ेहरिस्त में भी ‘सबसे अग्रणी देशों में से एक’ है जो अकेले ही यूनीसेफ़ को 60 प्रतिशत वैक्सीन बनाकर देता है।’

चूंकि भारत में क्लीनिकल ट्रायल का ख़र्च कम आता है और उत्पादन में लागत भी तुलनात्मक रूप से कम आती है, इसलिए अन्य विकसित और विकासशील देशों की तुलना में भारत को वैक्सीन के उत्पादन के लिहाज़ से सही जगह माना जाता है।

15 जुलाई 2020 को एक प्रेस वार्ता में ‘कोरोना वैक्सीन बनाने की दिशा में भारत के योगदान’ के सवाल पर आईसीएमआर के प्रमुख डॉक्टर बलराम भार्गव ने कहा था कि ‘कोरोना वैक्सीन भले ही दुनिया के किसी भी कोने में विकसित की जाये, मगर उसके व्यापक उत्पादन में भारत के सहयोग के बिना क़ामयाबी हासिल करना संभव नहीं होगा।’

60 फीसदी वैक्सीन का उत्पादक

भारतीय फ़ार्मा इंडस्ट्री की क्षमताओं और उम्मीदों पर बात करते हुए डॉक्टर भार्गव ने बताया था कि ‘भारत के फ़ार्मा क्षेत्र का दुनिया में नाम है। भारत दुनिया की 60 प्रतिशत वैक्सीन की आपूर्ति करता है, चाहे अफ्ऱीका, यूरोप, दक्षिण पूर्व एशिया या संसार का कोई और हिस्सा हो। सभी जगह भारत में बनी वैक्सीन की बड़ी सप्लाई है।’

उन्होंने कहा था कि ‘भारत कोरोना वैक्सीन के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक होने वाला है, इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।’

आईएमएआरसी की रिपोर्ट के मुताबिक़, बीते वर्षों में बेहतर तकनीक विकसित होने और कोल्ड स्टोरेज की बड़ी व्यवस्थाएं विकसित होने के कारण भारत की वैक्सीन उत्पादन क्षमता पहले से काफ़ी बढ़ी है।

इस समूह का आंकलन है कि भारत का वैक्सीन बाज़ार वर्ष 2025 तक 250 अरब रुपये से अधिक का हो जायेगा, जिसका आकार वर्ष 2019 में 94 अरब रुपये रहा था।

साल 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, ग्लेक्सो स्मिथ क्लाइन भारत के वैक्सीन बाजार में सबसे बड़ा खिलाड़ी था। उसके बाद सिनोफी एवेंटिस, फाइजर, नोवार्टिस और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया का नाम भारत के बड़े वैक्सीन उत्पादकों की लिस्ट में आता है।

काया पलट करने का मौक़ा

पूरी दुनिया में, कम से कम 140 कोरोना वैक्सीन पर काम चल रहा है जिनमें से 11 को ह्यूमन ट्रायल की अनुमति मिली है जो अलग-अलग लेवल पर हैं। इनमें से दो वैक्सीन भारतीय कंपनियों के हैं जो ह्यूमन ट्रायल के चरण में पहुँचे हैं और इनकी सफलता की उम्मीद की जा रही है।

जिन दो भारतीय कंपनियों ने कोरोना की संभावित वैक्सीन तैयार करने में सफलता हासिल की है, उनमें पहली कंपनी है हैदराबाद स्थित भारत बायोटेक इंटरनेशनल लिमिटेड जिसने आईसीएमआर और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ वायरोलॉजी के साथ मिलकर कोवाक्सिन नामक वैक्सीन तैयार की है। वहीं दूसरी दवा कंपनी है ज़ायडस कैडिला जिसकी वैक्सीन को हाल ही में ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया से ह्यूमन ट्रायल करने की अनुमति मिली है। दोनों ही कंपनियों की वैक्सीन दूसरे और तीसरे चरण के ट्रायल के लिए अनुमति प्राप्त कर चुकी हैं।

भारत बायोटेक कंपनी जिसने कोवाक्सिन तैयार की है, वो इससे पहले पोलियो, रोटा वायरस और जीका वायरस का टीका भी विकसित कर चुकी है।

माना जा रहा है कि अगर कोई भारतीय वैक्सीन 'सबसे शुरुआती वैक्सीन' के तौर पर बाज़ार में आ पाया तो उससे भारतीय वैक्सीन और फ़ार्मा इंडस्ट्री की काया पलट पूरी तरह से पलट जायेगी। (bbc.com/hind)


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