विचार / लेख
- संजय श्रमण
सृष्टिकर्ता (या समझें ईश्वर) है या नहीं, इस पर जावेद अख्तर साहब और उनके प्रतिद्वंद्वी के बीच जो बहस हुई उसे ध्यान से देखिए। जावेद साहेब और उनके तर्कवादी साथियों ने एक खास तर्क को ठीक से नहीं छुआ, वरना बहस वहीं ख़त्म हो जाती। वो ख़ास तर्क था कि ईश्वर टेस्ट ले रहा है। इसके पहले ईश्वरवादी सज्जन कंटिनजेंसी लॉजिक की बात कह रहे थे इस शब्द का अंदाज़ा जावेद साहब को नहीं था।
ईश्वरवादी साहब बार बार ईश्वर के लिए कंटिंजेंसी तर्क का इस्तेमाल कर रहे थे। यानि कि ऐसी कोई सत्ता होनी चाहिए जो अपना कारण आप हो या बिना कारण के हो। सीधे कहें तो अगर कोई कार्य या वस्तु ऐसी है है जिसका कोई कारण या निर्माता है तो वो ईश्वर नहीं हो सकता।
कंटिंजेंसी तर्क कहता है कि अगर कोई निर्मित चीज या कहें कि नम्बर एक चीज है तो उसको बनाने वाला नम्बर दो होगा, आप पूछेंगे कि नंबर दो को किसने बनाया तो जवाब आयेगा कि नम्बर तीन ने बनाया, फिर पूछिये कि नंबर तीन को किसने बनाया तो जवाब आयेगा कि नम्बर चार ने बनाया। इस तरह ये अनंत तक जाएगा।
इसीलिए ईश्वर को मानने वाले कहते हैं कि ये तर्क ग़लत है। कहीं ना कहीं रुकना ही होगा। इसलिए वे ईश्वर पर रुकना चाहते हैं। लेकिन सवाल ये है कि आप ईश्वर पर क्यों रुकते हो? जगत या कायनात पर ही रुकने में क्या दिक्कत है? जगत या कायनात को ही अपना कारण आप मानने में क्या दिक्कत है? अगर ईश्वर अपना कर्ता या करण आप हो सकता है तो जगत भी अपना सृष्टा आप क्यों नहीं हो सकता?
यही बौद्ध और जैन लॉजिक है।
अब्राहमिक और ब्राह्मणिक लॉजिक हमेशा सृष्टिकर्ता (यहोवा अल्लाह या ब्रह्म) की बात करते हैं। बौद्ध और जैन इसीलिए सृष्टिकर्ता ईश्वर को पहले ही पायदान पे धक्के मारके निकाल बाहर करते हैं।
तो असल मुद्दा यही है। बात बस इतनी सी है कि अब जगत/कायनात (यूनिवर्स) पर ही क्यों नहीं रुक जाते? जो कि नजऱ आ रहा है, महसूस भी होता है। आप जैसे ही दृश्यमान जगत का कारण अदृश्य ईश्वर को बताते हैं, वैसे ही आप ख़ुद ये कह रहे हैं कि बिना कर्ता के कार्य या परिणाम नहीं हो सकता, तो भाई फिर इसी लॉजिक से ईश्वर का कर्ता या निर्माता भी बताइए कि वो क्या है या कौन है।
अब आइए टेस्ट या परीक्षा वाले लॉजिक पर।
बात निकली कि गाज़ा में जो बच्चे मारे जा रहे हैं वो किसकी मर्जी से मर रहे हैं, सृष्टिकर्ता अगर कोई है और वो न्यायपूर्ण और करुणावान है और सर्वशक्तिशाली भी है तो क्या वो इस हत्याकांड और तमाम पापों और दुष्टताओं को रोक सकता है? क्यों नहीं रोक रहा?
तो इसके जवाब में ईश्वरवादी लोग एक तर्क लाते हैं कि ये टेस्ट या परीक्षा है। जो लोग अच्छा कर रहे हैं वे पास होंगे उन्हें अनंत स्वर्ग मिलेगा, जो लोग बुरा कर रहे हैं वे फेल होंगे और उन्हें अनंत नर्क मिलेगा।
अब इस टेस्ट या परीक्षा को ध्यान से समझिए। यहीं ईश्वर की गाड़ी ठीक से पंचर होती है।
टेस्ट या परीक्षा क्यों ली जाती है? टेस्ट या परीक्षा तब ली जाती है जबकि पढ़ाने/सिखाने वाला अपनी शिक्षा को सौ प्रतिशत शुद्धता और क्षमता के साथ सीखने वाले को ट्रांसफर ना कर सके, टेस्ट तब ली जाती है जबकि कोई संसाधन या अवसर सीमित है और आपको योग्यतम लोगों को चुनकर बाक़ी को बाहर करके उन्हें वो सीमित संसाधन और अवसर चुनिंदा लोगों को देना हो। टेस्ट तब ली जाती है जबकि टेस्ट लेने वाले को टेस्ट का रिजल्ट या अपने शागिर्द या शिष्य की क्षमता का अंदाज़ा ना हो, वो इस अंदाज़े के लिए उसे कठिन प्रश्न या कठिन परिस्थिति देता है।
इस उदाहरण को ध्यान रखिएगा, थोड़ी देर में यह एक उदाहरण ईश्वर के सारे गुणों को ख़त्म कर देगा है।
अब आइए ईश्वर के गुणों पर। कहा जाता है कि ईश्वर सर्वज्ञाता (सब जानने वाला), सर्वशक्तिशाली (जो चाहे वो कर सकता है) और सर्वव्यापी (सब जगह मौजूद) है।
अगर ईश्वर सर्वशक्तिमान है तो उसे अपने बनाये इंसान में सारे अच्छे गुण और शिक्षाएं एक ही झटके में ट्रांसफर करने में क्या दिक्कत है, ताकि उसके सारे शागिर्द या शिष्य या इंसान टेस्ट में पास हो जाये? वो किसी को पास किसी को फेल क्यों करना चाहता है?
सभी इंसान जन्म के साथ ही दूध पीना/चूसना जानते हैं, सभी पक्षी बिना स्कूल कॉलेज जाये घोंसला/घरौंदा बनाना जानते हैं, ईश्वरवादी कहते हैं कि ये ईश्वर ने सिखाया है। तो इसी लॉजिक से आगे बढ़ें तो ईश्वर सभी इंसानों को सिर्फ अच्छा ही अच्छा करना क्यों नहीं सिखा देता? बुरा करना क्यों सिखाता है? या बुरा सिखाने वाली सत्ता को क्यों बनाता है?
किसी में पाप करने की और किसी में पुण्य करने की टेंडेंसी क्या ईश्वर के बावजूद आई या उसकी मर्जी से आई? सबको एक जैसी टेंडेंसी और गुण दे दीजिए। या कहें कि सभी शिष्यों को (जो आपने ख़ुद पैदा किए हैं) एक आदेश से परम नैतिक बना दीजिए आपको किसने रोका है ईश्वर जी?
दूसरी बात अगर ईश्वर सर्व ज्ञाता है, अतीत वर्तमान और भविष्य सब जानता है, तो उसे टेस्ट लेने की क्या जरूरत है? उसे टेस्ट लेने से पहले ही टेस्ट का रिजल्ट मालूम होना चाहिए। हम सब जानते हैं स्कूल कॉलेज में सारे शिक्षकों शिक्षकों को टेस्ट लेने से पहले ही पता होता है कि कौन छात्र/छात्रा पास हो सकता है कौन फेल होगा।
अब अगर टेस्ट लेनी ही है तो सबको एक जैसा क्वेश्चन पेपर और सिटिंग अरेंजमेंट और एग्जामिनेशन हाल में एक जैसी सुविधा दीजिए ना ईश्वर भाई। किसी को अमेरिका ब्रिटेन के हरे-भरे फाइव स्टार होटल जैसे घर में पैदा करके टेस्ट ले रहे हैं, किसी को गाज़ा और अफग़़ानिस्तान के रेतीले जंग के मैदान में पैदा करके टेस्ट ले रहे हैं। फाइव स्टार घर में जन्मे इंसान से आप आराम तलब माहौल में बड़े आसान सवाल पूछ रहे हैं। गाजा में जन्मे इंसान से बड़ी कठिन परिस्थिति में बड़े कठिन सवाल पूछे जा रहे हैं। अब कौन पास होगा कौन फेल होगा? ये कैसा लॉजिक है? कैसा टेस्ट है ईश्वर भाई?
तीसरी बात अगर टेस्ट लेने के बाद अनंत काल तक स्वर्ग और अनंत काल तक नर्क का इंतज़ाम किया जा सकता है तो उसका एक प्रतिशत से भी करोड़ों अंश कम इंतज़ाम इस धरती पर टेस्ट देने वालों की जि़न्दगी में क्यों नहीं कर देते हमारे ईश्वर भाई साहब?
अनंत स्वर्ग और अनंत नर्क के लिए कितना संसाधन चाहिए, अंदाज़ा लगाइए - अनंत पानी, अनंत आग, अनंत बिजली, अनंत संख्या में भवन, अनंत भोजन, गीत संगीत, शराब शहद कपड़े लत्ते, इलाज, दवाइयां, अप्सराएँ (पुरुषों हेतु) और अप्सरे (स्त्रियों हेतु, हालांकि ऐसा कोई शब्द नहीं है, ईश्वर स्त्रियों को स्वर्ग में सर्वांग बलिष्ठ पुरुष देता है या नहीं ये अभी तक ईश्वरवादियों को भी पता नहीं है)। ईश्वर जी इसका एक प्रतिशत का करोड़वां हिस्सा भी धरती पर सबको उनके जीवनकाल में देकर टेस्ट की या परीक्षा हाल की हालत ठीक क्यों नहीं कर देते?
और आखऱि में, जो ईश्वर दुनिया के सब इंसानों को सत्तर-अस्सी या सौ साल की छोटी सी जिंदगी के लिए एक जैसा घर, पानी, भोजन और इलाज इत्यादि इत्यादि नहीं दे सकता वो अनंत काल तक स्वर्ग और नर्क दे सकता है? कैसे? थोड़ी सी बुद्धि लगाइए।
कोई आदमी आपको कहे कि जीते जी मैं आपको एक घूँट पानी नहीं दे सकता लेकिन मरने के बाद आपके लिए दूध घी और शहद और शराब का समंदर दे दूँगा। क्या आप उसपर भरोसा करेंगे? क्यों करेंगे?
इसीलिए जैन और बौद्ध धर्म ईश्वर की कल्पना पर ही विराम लगा देते हैं। उनका सीधा कहना है कि ईश्वर को उसके हाल पर छोड़ो, आप अपने स्व या आत्म की चिंता करो। आपके जीवन में दुख है, अव्यवस्था है, कष्ट है उसे ठीक करने की तरकीब सीखो। अपने मन और अपने आसपास के समाज को बेहतर बनाइए, यही असली मुद्दा है।


