विचार / लेख
नयी दिल्ली स्थित 10 राजाजी मार्ग पर फैली खामोशी tv बता रही है कि भारतीय राजनीति का सूरज महाकाल के अनंत विस्तार में समा गया| राजनीति के पुरोधा और माँ दुर्गा के अनन्य उपासक भारत रत्न प्रणब मुख़र्जी चिरनिद्रा में लीन हो गए| प्रणब दा के विशाल अनुभव एवं याददाश्त का सम्मान उनके राजनीतिक विरोधी भी करते थे| उन्हें राजनीति में संकटमोचक के तौर पर देखा जाता था और समस्याओं का समाधान निकालने में माहिर माने जाते थे| राष्ट्रहित के प्रति समर्पित भाव रखते हुए सार्वजनिक जीवन में शायद ही ऐसी कोई महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी हो जिसे उन्होंने न सम्हाला हो|
विश्व के प्रसिद्ध 5 वित्त मंत्रीयो में से एक होने का गौरव प्राप्त करने वाले स्वर्गीय प्रणब दा का जन्म 11 दिसम्बर 1935 को पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के मिरती नामक स्थान पर हुआ| अपनी वकालत की पढ़ाई पूर्ण करने के पश्चात उन्होंने सक्रिय राजीति में कदम रखा| देश सेवा का जज्बा उनके संस्कारों में था| यह प्रणब दा के असाधारण व्यक्तित्व का ही जादू ही था कि 34 वर्ष की अल्पायु में ही उन्हें भारतीय लोकतंत्र के उच्च सदन का सदस्य बनाया गया। इसके पश्चात मुख़र्जी दा ने भारतीय राजनीति में विकास की नयी इबारत लिखी जो आज एक कीर्तिमान है| वर्ष 1975, 1981, 1993 और 1999 के लगातार वर्षों में उन्होंने भारतीय संसद के उच्च सदन में कांग्रेस का प्रतिनिधित्व किया| इस दौरान जब भारत की अर्थव्यवस्था पटरी से लडख़ड़ा रही थी, तो वर्ष 1982-84 में भारत के वित्त मंत्री के रूप में उनकी कुशलता एवं अनुभव को सम्पूर्ण देश ने सराहा | इसी कार्यकाल के दौरान डॉ. मनमोहन सिंह को भारतीय रिज़र्व बैंक का गवर्नर बनाया गया और देश विकसित होने की राह पर चल पड़ा। वर्ष 1991 में उन्हें योजना आयोग का उपाध्यक्ष बनाया गया| प्रणब दा को नरसिंह राव मंत्रिमंडल में 1995 से 1996 तक विदेश मन्त्री के रूप में कार्य करने का मौका मिला किया।
वर्ष 1993 -2003 के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल में मेरे ससुर स्वर्गीय अजय मुश्रान ने मध्य प्रदेश के वित्त मंत्री के रूप में कार्य किया| मुश्रान साहेब के प्रणब दा से आत्मीय सम्बन्ध रहे| इस दौरान एक युवा अधिवक्ता एवं वर्ष 2000 -2003 के दौरान जब मध्य प्रदेश अपने छत्तीसगढ़ विभाजन के कठिन दौर से गुजर रहा था, उस समय मध्य प्रदेश का महाधिवक्ता होने से प्रथम बार मेरा प्रणब दा से मिलना हुआ| उनके शांत स्वभाव और गंभीर छवि ने मुझे हमेशा ही आकर्षित किया| उनका व्यक्तित्व विद्वता और शालीनता के लिए याद किया जाएगा.|
प्रणब मुखर्जी जी ने ही श्रीमती सोनिया गांधी जी को सक्रिय राजनीति में आने के लिए मनाया था | 2004 से 2012 वर्षों के दौरान उन्होंने कांग्रेस के नेतृत्व वाली यू.पी.ए. गठबंधन सरकार के कुशल सञ्चालन में महत्वपूर्ण रोल अदा किया| देश के वित्तमंत्री के रूप में उन्हें वर्ष 2009, 2010 और सन 2011 में देश का वार्षिक बजट प्रस्तुत करने का गौरव हासिल हुआ| लड़कियों की साक्षरता और स्वास्थ्य जैसे सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं के लिए और जवाहरलाल नेहरु राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन सहित सहित कई अन्य सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं के लिए धन की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करना उनकी प्राथमिकताओं में शामिल रहा| भारत रत्न स्वर्गीय राजीव गाँधी की स्वप्न योजना राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (नरेगा) जिसे बाद में मनरेगा नाम दिया गया, को डॉ. मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रित्व काल में लागू करने में प्रणब दा की ही दूरदृष्टि थी जो आज कोरोना संक्रमण के कठिन दौर में देश के मजदूरों एवं अन्य श्रमिक वर्ग के जीवन यापन का सहारा बन रही है|
सरकारी कामकाज की प्रक्रियाओं और संविधान की बारीकियों की बेहतरीन समझ रखने वाले प्रणब दा ने जुलाई 2012 में भारत के तेरहवें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली| अपने कार्यकाल के दौरान संविधान के अनुच्छेद 72 के अंतर्गत उनके समक्ष लायी गयी दया याचिकाओं के मामले में वे एक कठोर प्रशासक साबित हुए| सात दया याचिकाओं को क्रूरतम अपराध की संज्ञा देते हुए रद्द करते हुए प्रणब मुखर्जी देश के दूसरे ऐसे राष्ट्रपति बन गए जिन्होंने अपने कार्यकाल में सबसे ज्यादा दया याचिकाएं खारिज कीं| उनके निर्णय ने अपराधियों के मन में भय एवं देश के आम जनों में न्याय व्यवस्था में विश्वास को सुदृण किया|
उन्होंने असीम अनुभव को अपनी लेखनी से कागज़ के पन्नो पर उतारा और राजनीति पर गहरी समझ एवं नीतिगत मुद्दों पर अनुभव को देश की नाव के लगभग सभी खेवनहारों से साझा किया| प्रणब दा का मानना था कि पुस्तकें हमारे जीवन की सबसे अच्छी दोस्त होती है और ये ही भविष्य में होने वाले युद्ध में हमारा हथियार होंगी| उन्होंने कई कितावें भी लिखी जिनमे ऑफ द ट्रैक- सागा ऑफ स्ट्रगल एंड सैक्रिफाइस, इमर्जिंग डाइमेंशन्स ऑफ इंडियन इकोनॉमी, तथा चैलेंज बिफोर द नेशन प्रमुख हैं| संसद भवन के गलियारे कठोर अनुभवों के पथ पर चले उनके पदचिन्हों के गवाह रहेंगे|
प्रणब दा जैसे व्यक्तित्त्व को कलम की परिधि में बांधना संभव नहीं| वे अजातशत्रु, अनूठे व्यक्तित्त्व थे जिनके कृतित्व का प्रकाश सदैव हमारा मार्गदर्शन करता रहेगा।
सादर नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि
(विवेक के. तन्खा) [लेखक सर्वोच्च न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता
एवं मध्य प्रदेश से राज्य सभा सांसद हैं]


