विचार / लेख
-कृष्ण कांत
सुशांत सिंह राजपूत केस भारत के इतिहास में शायद सबसे खौफनाक केस के तौर पर दर्ज होगा। जांच प्रक्रिया का ये नमूना बेहद अद्भुत है जहां बाढ़ और महामारी में फंसे पूरे भारत को छोडक़र, मीडिया के लोग गिद्धों के झुंड की तरह एक आरोपी पर टूट पड़े हैं।
सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या के केस ने उस खौफनाक मॉब लिंचिंग का विस्तार कर डाला जो अब तक कुछ लफंगे समूहों तक सीमित थी। अब सभ्य समाज भी इसमें शामिल है। सभ्य समाज कभी डंडा और चापड़ लेकर नहीं निकलता। उसके अंदर का जहर भी सभ्य रास्ते अख्तियार करता है। वह कभी लिंच मॉब को माला पहनाता है तो कभी संगसारी का समर्थन करता है, कभी दंगे को ‘राष्ट्र की सेवा’ कह डालता है।
आपको उस चैनल से डरना चाहिए जो स्पष्ट तौर पर आरोपी युवती को ‘हत्यारिन’ लिख सकता है।
आरोप क्या है, अभी ये भी तय नहीं है। आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप बनेगा या हत्या का, ये अभी जांच एजेंसी भी नहीं जानती। आरोपी दोषी है या निर्दोष, ट्रायल से पहले ये अदालत भी नहीं जानती। लेकिन शक के आधार रिया चक्रवर्ती से घृणा करने वाले उन्हें ये सलाह दे रहे हैं कि
‘तुम मर क्यों नहीं जातीं’, ‘तुम भी आत्महत्या कर लो’, ‘तुम्हें मरने से कौन रोक रहा है’, ‘हमें तो इंतजार है’, ‘सुसाइड लेटर छोडऩा मत भूलना’ वगैरह-वगैरह। ये जुमले इन्हें लिखने वाले के बारे में क्या कहते हैं? क्या ये सच में न्याय चाहने वाले लोग हैं?
अगर आप लोकतंत्र की न्यायिक प्रक्रिया की सामान्य समझ रखते हैं तो भारतीय मीडिया को देखकर आप डर जाएंगे। अगर नहीं डर रहे हैं तो आपको डरना चाहिए।
रिया चक्रवर्ती के बचाव का कोई कारण मौजूद नहीं है, ठीक उसी तरह उसे निर्दोष मानने का कोई कारण मौजूद नहीं है। फिर भी, मीडिया औ कथित सिविल समाज का एक हिस्सा मिलकर किसी को दोषी ठहरा रहा है और उसके ‘मर जाने’ या ‘आत्महत्या कर लेने’ की कामना कर रहा है।
क्या सच में हमारा समाज अब किसी पर आरोप लगते ही उसे दोषी मान लेगा और आरोपी के मरने की कामना करेगा? क्या हम खून के इतने प्यासे हो रहे हैं कि हमसे जांच प्रक्रिया और अदालती कार्यवाही तक का इंतजार नहीं हो रहा है? क्या हम आंख के बदले आंख मांगने निकले हैं, जहां कोई भी आंख वाला न बचे?
एक चैनल पर आरोपी रिया ने अपनी बात कही तो एंकर और आरोपी दोनों ट्रोल हो रहे हैं। हमारा सभ्य समाज न्याय नहीं चाहता। हमारे लोग साफ सुथरी न्यायिक प्रक्रिया नहीं चाहते। उन्हें देखकर लगता है कि यह गिद्धों का झुंड है जो सिर्फ खून का प्यासा है।
भारत की अदालतों में लटके केस का अब ऐसा ही ट्रायल होगा? एजेंसी के आगे आगे चैनल ट्रायल चलाएंगे और एजेंसियां उन्हें फॉलो करेंगी?
हम ऐसे समाज में तब्दील हो गए हैं जहां लोग महामारी में या अपराध में भी नफरत पैदा कर सकते हैं!


