विचार / लेख

सुधा भारद्वाज, अन्य राजनीतिक बंदी रिहा करें
28-Aug-2020 5:55 PM
सुधा भारद्वाज, अन्य राजनीतिक बंदी रिहा करें

-आलोक शुक्ला
सुधा भारद्वाज और अन्य 11 लोगों पर भीमा कोरेगांव की हिंसा का फर्जी आरोप लगाकर एफआईआर दर्ज कर उन्हें हिरासत में लिया गया है। जो हिंसा 1 जनवरी 2018 को पुणे शहर के पास भीमा कोरेगांव में भडक़ी थी उसके असली गुनहगारों मिलिंद एकबोटे और संभाजी भिड़े को छोडक़र यह मामला मानव अधिकार कार्यकर्ताओं, जनपक्षधर वकीलों, लेखकों और प्रोफेसरों को फर्जी केस में फंसाकर हिरासत में लेने की साजिश में तब्दील हो गया है। भीमा कोरेगांव का कार्यक्रम जो दलित अस्मिता का प्रतीक है उसे हिंसक मोड़ देने और उसका आरोप इन कार्यकर्ताओं, वकीलों, लेखकों, प्रोफेसर और सांस्कृतिक कर्मियों पर लगाना 

सत्ता के द्वारा विरोध के स्वरों को दबाने व भय का माहौल खड़ा करने की गहरी साजिश है।
गिरफ्तार सभी साथी कई दशकों से इंसाफ व न्याय की लड़ाई लड़ रहे हैं। ये बेहद चिंताजनक है कि जो लोग संविधान और कानून के पालन और शोषण के खिलाफ एक समतापूर्ण समाज के निर्माण के लिए अपना जीवन, श्रम और संसाधनों को निस्वार्थ अर्पित कर रहे हैं, उन्हें देशद्रोही बताकर फर्जी केसों में फंसाया जा रहा है। ये केवल उन लोगों पर एक व्यक्तिगत हमला नहीं है बल्कि सभी जन-संघर्ष, मज़दूर आंदोलन, जल-जंगल-ज़मीन की लड़ाई व मनुवादी-फांसीवादी ताकतों के खिलाफ चल रहे दलित बहुजन आदिवासी आंदोलनों पर भी प्रहार है। दरअसल मोदी सरकार देश में लोकतांत्रिक अधिकारों को निलंबित कर अघोषित आपातकाल लागू कर रही हैं जिसका प्रमुख उद्देश्य देश के समस्त प्राकृतिक संसाधनों और सार्वजनिक उपक्रमों को बेशर्मी के साथ कार्पोरेट को सौंपना।
छत्तीसगढ़ के संदर्भ में वकील सुधा भारद्वाज ने अपने जीवन का तीन दशक से ज्य़ादा समय मज़दूरों व किसानों के हकों की लड़ाई कोर्ट में और एक ट्रेड यूनियन की नेत्री के बतौर कंधे से कंधा मिलाकर लडऩे में दिया है। राजनांदगांव में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ किसानों के हक में, बस्तर में मानव अधिकार के हनन के खिलाफ, रायगढ़ व सरगुजा में औद्योगिक घरानों की लूट के खिलाफ जन-जंगल-ज़मीन की लड़ाई में, भिलाई में सीमेंट कारखानों के मज़दूरों की न्यूनतम मज़दूरी के लिए, भिलाई, रायपुर व विलासपुर में बस्तियों के तोड़े जाने के खिलाफ उनके हक के लिए हाईकोर्ट में लडऩा - ये सब लड़ाइयां सुधा भारद्वाज ने लड़ी हैं। और उनकी इस फर्जी केस पर गिरफ्तारी से सभी जन-आंदोलन एवं मजदूर-किसान संगठन बेहद आक्रोशित हैं। हम ये बात समझ रहे हैं कि ये छत्तीसगढ़ में चल रही जल-जंगल-ज़मीन की लड़ाइयों, मजदूर-किसानों के संघर्ष को दबाने पर सीधा हमला है।

सुधा भारद्वाज व अन्य 4 लोगों को 28 अगस्त 2018 में गिरफ्तार किया गया था। दो साल होने को हैं पर अभी तक उनके केस की न्यायिक कार्यवाही भी ठीक से आगे नहीं बढ़ी है। और अभी हाल ही में एक और गिरफ्तारी की गई। इसके अलावा, ऐसा प्रतीत होता है कि ज़मानत की सुनवाइयों में भी जानबूझकर और बिना वजह की देरी की जा रही है। अब जब कोविड के काल में सब तरफ जेलों को खाली करने की बात की जा रही है तब भी इस केस से जुड़े लोगों की ज़मानत की सुनवाई को टाला जा रहा है।

सुधाजी की 23 जुलाई को कोर्ट से मिली जेल की मेडिकल रिपोर्ट चिन्ताजनक थी। रिपोर्ट में बताया गया है कि सुधा भारद्वाज ‘इस्केमिक हार्ट डिजीज’ से पीडि़त हैं, जो हृदय की धमनियों के संकुचित होने के कारण होती है जिससे हृदय की मांसपेशियों में रक्त के प्रवाह की कम होती है और जिससे दिल का दौरा पड़ सकता है। यह बेहद चिंताजनक है क्योंकि 27 अक्टूबर, 2018 को हिरासत में लिए जाने से पहले सुधा भारद्वाज को दिल से जुड़ी कोई शिकायत नहीं थी, ऐसा उनकी बेटी मायशा ने बताया।

मायशा ने बताया कि उसकी माँ के दिल की बिगड़ती स्थिति स्पष्ट रूप से दो साल से कारागर में परिरुद्ध होने के तनाव के कारण ही पैदा हुई है, और अभी भी विचारण शुरू होने के कोई लक्षण नजऱ नहीं आ रहे हैं। चिकित्सकीय डॉक्टरों ने हृदय की ऐसी स्थिति को गंभीर बताया, जिससे दिल का दौरा पड़ सकता है। जेल से प्राप्त चिकित्सा रिपोर्ट यह स्पष्ट नहीं करती है कि इस स्थिति का निदान कब किया गया था, न ही इस निदान का आधार बताती है। इस अनिश्चितता और पूर्ण चिकित्सा इतिहास के प्रकटीकरण की कमी के कारण सुधाजी के सभी विस्तारित परिवार और करीबी सहयोगियों को गहरी चिंता है।

सुधा भारद्वाज की दिल की बीमारी की खबर नई है, पर पहले से ही उनको मधुमेह और रक्तचाप है, और कुछ सालों पहले तपेदिक भी था, जिस कारण उनको कोविद के संक्रमण से सामान्य से अधिक खतरा है। इस तरह की महामारी के समय, किसी असुरक्षित, भीड़-भाड़ वाली जगह पर ऐसे व्यक्ति का एक दिन भी व्यतीत करना उनको अनावश्यक जोखिम में डालना होता है। न्यायिक प्रक्रिया में इस तरह की देरी अति दु:खदायी है।

अत : हम सब मांग करते हैं कि, सुधा भारद्वाज और उनके साथ भीमा कोरेगांव मांमले में बंद सभी की रिहाई के लिए सुनवाई जल्द हो और इस फर्जी केस को रद्द किया जाय।

सभी को, खासकर सुधाजी और उनके साथ बंद वरिष्ठ एवं स्वास्थ्य-पीडि़त बंदियों को कोविड-19 को ध्?यान में रखते हुए स्वास्थ्य के आधार पर अंतरिम ज़मानत तुरंत दी जाए।

भीमा कोरेगांव केस की सही रूप में जांच की जाय और उसके असली गुनहगारों - मिलिंद एकबोटे व संभाजी भिड़े को तुरंत गिरफ्तार किया जाय।

न्याय व मानवाधिकारों के लिए लडऩे वाले मानव अधिकार कार्यकर्ता, दलित बहुजन के हकों की लड़ाई लडऩे वाले कार्यकर्ता, आदिवासी हक की बात करने वाले वकील एवं कार्यकर्ता और महिलाओं की आवाज़ बुलंद करने वाले प्रोफेसरों, लेखकों व वकीलों पर दमन बंद किया जाय।


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