विचार / लेख
अपूर्व गर्ग
लोकतंत्र बार-बार मौके देता है तानाशाही सोचने का भी मौका नहीं देती। लोकतंत्र कतार में खड़े अंतिम व्यक्ति को भी सारे अधिकार देते हुए देश का प्रथम व्यक्ति बनने का अवसर देती है। तानाशाही अंतिम व्यक्ति तो दूर प्रथम व्यक्ति को भी सूली पर चढ़ाकर सारे अधिकार कुचल डालती है। इसलिए लोकतंत्र पर होने वाले हर हमले को कभी हलके में न लेकर सजग-सचेत रहकर एकजुटता से लडऩा चाहिए।
तानाशाही की सूली पर चढऩे वाले ज़ुल्फिकार अली भुट्टो ने भी गलती की थी। जनरल जिया का चुनाव भुट्टो ने यह जानते हुए किया कि उसके कट्टर पंथी संगठन से रिश्ते हैं, उन्हें यह भी बताया गया वह लालची, भ्रष्ट किस्म का है फिर भी जिया का चुनाव करते हुए भुट्टो ने कहा ‘सरकार को फौज के मामले में दखल नहीं देना चाहिए’।
भुट्टो ने सेना को हमेशा हल्के में लिया
बांग्लादेश के बँटवारे से पहले 20 मार्च 1971 को जब शेख मुजीब और भुट्टो कि ढाका में मुलाकात हुई तो शेख मुजीब ने भुट्टो को चेताया ‘सेना पर भरोसा मत करना नहीं तो यह हम दोनों को नष्ट कर देगी।, इस पर भुट्टो ने अपने ढंग का उत्तर दिया-‘मैं इतिहास द्वारा नष्ट किए जाने कि बजाय सेना के हाथो मरना पसंद करूँगा’।
इन दोनों के बीच हुई इस चर्चा को भुट्टो के भारतीय बचपन के दोस्त रूसी मोदी ने भुट्टो के प्रधान मंत्री रहते हुई अपनी किताब ‘मेरा दोस्त जुल्फी’ (1973 ) में इसका उल्लेख भी किया। पर भुट्टो को सेना पर भरोसा था, उधर शेख मुजीब की भविष्यवाणी सच साबित हुई बांग्लादेश बनने के बाद उनकी सेना ने उनकी हत्या कर दी और इधर जनरल जिया ने प्रधान मंत्री भुट्टो और उनके परिवार के साथ जानवरों से भी बुरा सलूक कर भुट्टो को फाँसी पर चढ़ा दिया।
इसके बाद जनरल जिया के रहते भुट्टो परिवार लगातार प्रताडि़त किया जाता रहा, इन्हें मुक्ति तब मिली जब कुछ लोकतंत्र की बहाली हुई और इसी लोकतंत्र के लिए बेनजीर को जेल से लेकर सडक़ तक लडऩा पड़ा और लोकतंत्र ने ही उन्हें प्रधानमंत्री भी बनाया।
...तो तानाशाही ने किसी को नहीं बख्शा न भुट्टो की लापरवाही को न ख़ुद तानाशाह जिय़ा को। जबकि लोकतंत्र आसिफ़ जऱदारी बिलावल भुट्टो तक को मौके पे मौका दे रही। लोकतंत्र अधिकार ही नहीं पूरे मौके देती है और तानाशाही सब कुछ छीन लेती है, समझिये।


