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ट्रंप ने ‘ईगो’ की वजह से भारत पर लगाया टैरिफ, रघुराम राजन के इस बयान पर क्या कह रहे विश्लेषक
11-Dec-2025 8:26 PM
ट्रंप ने ‘ईगो’ की वजह से भारत पर लगाया टैरिफ,  रघुराम राजन के इस बयान पर क्या कह रहे विश्लेषक

-दिलनवाज पाशा

भारतीय रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर और चर्चित अर्थशास्त्री रघुराम राजन ने भारत-अमेरिका के रिश्तों और अमेरिका के भारत पर लगाए गए टैरिफ को लेकर कहा है कि ट्रंप के टैरिफ के केंद्र में भारत का रूस से तेल आयात करना नहीं बल्कि व्यक्तित्वों का टकराव है। बीते सप्ताह स्विट्जऱलैंड के ज्यूरिख में एक बातचीत के दौरान की गई रघुराम राजन की यह टिप्पणी चर्चा और विवाद के केंद्र में है।

रघुराम राजन ने बीते सप्ताह कहा कि अमेरिका ने भारत पर जो टैरिफ़ लगाया है उसके केंद्र में रूस से तेल खरीदना नहीं बल्कि इसकी मूल वजह भारत का ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान संघर्ष-विराम के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप को श्रेय ना देना है।

ट्रंप ने 30 जुलाई 2025 को भारत से आयातित सामानों पर 25 फ़ीसदी टैरिफ लगाने की घोषणा की थी। इसके बाद उन्होंने भारत पर रूस से तेल खरीदने का आरोप लगाते हुए 25 फ़ीसदी अतिरिक्त पेनल्टी टैरिफ लगाने की घोषणा की जो इस साल 27 अगस्त से लागू हो गया।

दवाइयों और स्मार्टफ़ोन जैसे कुछ उत्पादों को छोडक़र ये अधिकतर उत्पादों पर लागू है और इस टैरिफ़ से भारत के कपड़ा और कई उद्योग प्रभावित हैं।

रघुराम राजन ने क्या कहा है?

रघुराम राजन ने कहा है कि अमेरिका के भारत पर लगाए गए इस टैरिफ के पीछे मूल कारण रूस से भारत का तेल खरीदना नहीं बल्कि व्यक्तित्वों का टकराव है।

रघुराम राजन ने कहा, ‘मुझे नहीं लगता है कि रूस से भारत का तेल खरीदना केंद्रीय मुद्दा था, मुझे लगता है कि यहां मुद्दा व्यक्तित्वों का टकराव है।’

रघुराम राजन ने कहा कि डोनाल्ड ट्रंप भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव कम कराने का श्रेय लेना चाहते थे लेकिन भारत सरकार ने ट्रंप के दावे पर मुहर नहीं लगाई और इसकी वजह से व्हाइट हाउस भारत से नाराज हो गया।

रघुराम राजन ने कहा, ‘भारत ने ट्रंप के शांति स्थापित करने के दावे को स्वीकार नहीं किया और उसकी वजह से ही भारत पर सख़्त टैरिफ लगे।’

अपनी टिप्पणी में राजन ने ये भी कहा कि पाकिस्तान ने उस स्थिति में ट्रंप के नैरेटिव को स्वीकार कर अपने लिए सही किया और इसका नतीजा ये हुआ कि पाकिस्तान पर भारत से कम टैरिफ लगे। अमेरिका ने पाकिस्तान के उत्पादों पर 19 फीसदी टैरिफ लगाया है जो भारत के मुकाबले काफी कम है।

ट्रंप ने दुनियाभर के देशों पर अलग-अलग दरों से कई टैरिफ घोषणाएं की हैं। 30 जुलाई को उन्होंने 69 देशों पर रेसिप्रोकल टैरिफ लगाया था। इस घोषणा के बाद से पाकिस्तान से अमेरिका को कपड़ा निर्यात 15 फीसदी तक बढ़ा है।

‘टैरिफ आर्थिक नहीं राजनीतिक मुद्दा’

राजन की टिप्पणी का संकेत था कि भारत और अमेरिका के बीच टैरिफ आर्थिक नहीं बल्कि राजनीतिक मुद्दा है और इसके पीछे ‘नैरेटिव’ और ‘ईगो’ है।

रघुराम राजन ने कहा, ‘भारत ने यह तर्क देने की कोशिश की कि दोनों देशों (भारत और पाकिस्तान) के बीच ट्रंप की भूमिका के बिना ही एक समझ बन गई थीज् सच शायद दोनों बातों के बीच कहीं हैज् लेकिन अंतिम नतीजा यह हुआ कि भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगा और पाकिस्तान पर 19 प्रतिशत।’

राजन ने कहा, ‘मुझे पता है कि स्विट्जरलैंड में आपके नेता ने ट्रंप को टैरिफ़ समझाने की कोशिश की थी, इस बारे में कुछ कमेंट किया गया था और वह ठीक नहीं हुआ। इसलिए हमें नहीं पता कि भारत और अमेरिका के बीच असल में क्या हुआ, लेकिन उम्मीद है कि लंबे समय में सभी पक्षों में समझदारी बनी रहेगी और हम सभी सही डील पर पहुंचेंगे।’

राजन ने अपनी टिप्पणी में स्विट्जरलैंड के किसी नेता का नाम नहीं लिया है। स्विट्जरलैंड के भारत और अमेरिका दोनों से ही बेहतर कारोबारी रिश्ते हैं और स्विट्जरलैंड ट्रंप से टैरिफ हटाने की वकालत करता रहा है। रिपोर्टों के मुताबिक, ट्रंप के टैरिफ लगाने के कुछ समय बाद ही स्विस राष्ट्रपति केरिन केलर सटर के बीच वार्ता हुई थी लेकिन इसके नतीजे सकारात्मक नहीं रहे थे।

भारत-पाकिस्तान संघर्ष

इस साल मई में कश्मीर के पहलगाम में चरमपंथी हमले में कई भारतीय नागरिकों की मौत के बाद भारत ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत पाकिस्तान में कई ठिकानों पर हमला किया था।

इस सीमित संघर्ष में भारत और पाकिस्तान दोनों ही ने एक दूसरे को हुए नुकसान को लेकर अलग-अलग दावे किए थे।

भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष जब चरम पर था तब 10 मई को संघर्ष-विराम की घोषणा हुई थी।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस संघर्ष को रोकने की घोषणा की थी और दावा किया था कि संघर्ष ना रोकने की स्थिति में उन्होंने अधिक टैरिफ लगाने की चेतावनी दी थी।

राष्ट्रपति ट्रंप ने कई बार ये दावा किया है। पाकिस्तान ने इसे खुले तौर पर स्वीकार किया है लेकिन भारत ने इसे लेकर कोई टिप्पणी नहीं की है।

पाकिस्तान ने इस संघर्ष को रोकने का श्रेय अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप को देते हुए उन्हें नोबल शांति पुरस्कार के लिए भी नामित किया था।

राष्ट्रपति ट्रंप और पीएम मोदी के रिश्ते

ट्रंप और पीएम नरेंद्र मोदी सार्वजनिक बयानों और भाषणों में एक दूसरे को अच्छा दोस्त और मजबूत नेता बताते रहे हैं।

2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सम्मान में अमेरिका के ह्यूस्टन में हुए ‘हाउडी मोदी’ कार्यक्रम में राष्ट्रपति ट्रंप शामिल हुए थे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों के दौरान ट्रंप के लिए ‘अबकी बार ट्रंप सरकार’ का नारा दिया था।

फरवरी 2020 अहमदाबाद में हुई ‘नमस्ते ट्रंप’ रैली में ट्रंप ने ‘अमेरिका लव्स इंडिया’ कहा था। मोदी और ट्रंप दोनों ने ही बार-बार एक-दूसरे के लिए मॉय फ्रेंड संबोधन का इस्तेमाल किया।

मोदी और ट्रंप की व्यक्तिगत केमिस्ट्री को ही दोनों देशों की रणनीतिक साझेदारी का चेहरा मान लिया गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राष्ट्रपति ट्रंप के दोबारा सत्ता में आने के बाद इस साल फरवरी में अमेरिका की यात्रा पर गए थे। इस यात्रा के दौरान मोदी और ट्रंप ने भारत-अमेरिकी कारोबार को आगे बढ़ाने के लिए वार्ता की थी और साल 2030 तक दोनों देशों के बीच कारोबार को 500 अरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा था।

हालांकि, भारत पाकिस्तान संघर्ष के बाद से, अमेरिका और भारत के रिश्तों में तनाव देखा गया है, बावजूद इसके ट्रंप ने मोदी के लिए ‘माय फ्रेंड’ और ‘ग्रेट लीडर’ जैसे ही संबोधन इस्तेमाल किए हैं।

चीन क्या ट्रेड वॉर में अमेरिका से जीत रहा है?

भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन के ताजा बयान को विश्लेषक बहुत तरजीह नहीं दे रहे हैं हालांकि ये जरूर स्वीकार कर रहे हैं कि अमेरिका और भारत के रिश्ते नई तरह से परिभाषित हो रहे हैं।

अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार और विश्लेषक अभिजीत अयर मित्रा मानते हैं कि रघुराम राजन के बयान को बहुत अधिक तरजीह इसलिए नहीं दी जानी चाहिए क्योंकि वो एक अर्थशास्त्री की तरह नहीं बल्कि एक राजनेता की तरह बयान दे रहे हैं।

मित्रा कहते हैं, ‘एक अर्थशास्त्री रघुराम राजन हैं और एक रघुराम राजन हैं जो राजनेता बनने की कोशिश कर रहे हैं, ये दो अलग-अलग चीजें हैं। राजन भारत के मौजूदा प्रशासन में किसी के भी करीब नहीं हैं, तो उनके पास कोई विशेष अंदरूनी जानकारी होगी ये मान लेना तर्क के खिलाफ है।’

मित्रा कहते हैं कि दोनों देशों के रिश्तों में उतार-चढ़ाव के बावजूद ट्रंप और मोदी दोनों ही एक-दूसरे के लिए अभी भी ग्रेट फ्रेंड जैसे संबोधन का इस्तेमाल करते हैं।

मित्रा कहते हैं, ‘अगर आप देखें तो ट्रंप आज भी मोदी को ‘ग्रेट फ्रेंड, ग्रेट लीडर’ वगैरह कहकर ही याद करते हैं, तो यहां कोई पर्सनालिटी क्लैश नहीं है।’

वहीं अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार रॉबिन्दर सचदेव भी मानते है कि भारत पर ट्रंप के टैरिफ लगाने की मूल वजह कोई व्यक्तिगत क्लेश नहीं है।

सचदेव कहते हैं, ‘रूस की तेल से कमाई को कम करने के लिए अमेरिका निरंतर प्रयास कर रहा था, और इस संदर्भ में इंडिया एक ‘सॉफ्ट टारगेट’ था, चीन की तुलना में। राष्ट्रपति ट्रंप अपने देश के लोगों को दिखाने चाहते थे कि वो रूस से तेल की आपूर्ति को लेकर सख़्त हैं, ऐसे में टैरिफ लगाने के लिए उन्होंने भारत को ही चुना।’

रॉबिन्दर सचदेव ये ज़रूर मानते हैं भारत और अमेरिका के बीच जो मौजूदा स्थिति है उसमें भारत-पाकिस्तान संघर्ष की भूमिका ज़रूर रही है।

रॉबिन्दर सचदेव कहते हैं, ‘ऑपरेशन सिंदूर और भारत-पाकिस्तान संघर्ष ने वर्तमान स्थिति में योगदान दिया, लेकिन ये फैसला कि युद्ध कब रोकना है, भारत ने अपने हिसाब से लिया।’

विश्लेषक ये भी मान रहे हैं कि तमाम घटनाक्रमों के बावजूद कई क्षेत्रों में अमेरिका-भारत सहयोग कायम है।

मित्रा कहते हैं, ‘समग्र रूप से देखें तो राजनीतिक रिश्ते, राजनीतिक भरोसा, सुरक्षा भरोसा और विदेश नीति भरोसा, ये सब कुछ कायम है, भारत अमेरिका के बीच कारोबार को लेकर जो टकराव है वो नया नहीं है और सिर्फ कारोबार ही दो देशों के रिश्तों को परिभाषित नहीं करता है।’

भारत ने रूस से तेल खऱीद को अपने राष्ट्रीय हित में बताया है। हालांकि भारत रूस से तेल खरीद में कटौती करने को तैयार हुआ है।

मित्रा कहते हैं, ‘ट्रंप और मोदी दोनों ही नेता अपने-अपने राष्ट्रीय हितों पर जोर दे रहे हैं। अमेरिका और भारत के मौजूदा रिश्तों का सार यही है।’

वहीं रॉबिन्दर सचदेव कहते हैं कि अमेरिका ने कई बार भारत की बांह मरोडऩे की कोशिश की है और मौजूदा स्थिति ऐसे ही संदर्भों की याद दिलाती है।

रॉबिन्दर कहते हैं, ‘पिछले कुछ महीने भारत के लिए एक ‘वेक-अप कॉल’ हैं और अमेरिका के साथ रिश्तों में आर्म-ट्विस्टिंग और प्रेशर पॉलिटिक्स की यादें फिर ताजा हुई हैं। आने वाले सालों में इंडिया-अमेरिका रिश्ते ‘न्यू नॉर्मल’ में होंग-संबंध गहरे रहेंगे, लेकिन भारत समानांतर रूप से दूसरे पार्टनरशिप्स और सप्लाई चेन विकल्प भी मजबूत करेगा।’

सचदेव कहते हैं, ‘वैश्विक राजनीति और रिश्ते नई तरह से परिभाषित हो रहे हैं और भारत अपने राष्ट्रीय हितों को तरजीह दे रहा है। भारत और अमेरिका के रिश्ते में अब एक नया नॉर्मल होगा। दुनिया में एक नया ऑर्डर बन रहा है।’

ट्रेड डील को लेकर बातचीत

इस बीच, भारत और अमेरिका के बीच ट्रेड डील को लेकर बातचीत जारी है। अमेरिका का एक प्रतिनिधिमंडल भारत में है। इसी दौरान राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा है कि भारत अमेरिका में चावल डंप कर रहा है और अगर ऐसा ही चलता रहा तो अमेरिका भारतीय चावल पर अतिरिक्त टैरिफ लगा सकता है।

विश्लेषक इसे भी ट्रंप की भारत पर दबाव बनाने की रणनीति के रूप में देख रहे हैं।

अभिजीत अयर मित्रा कहते हैं, ‘वार्ता के बीच में जो चावल पर धमकी दी गई है, वह भी एक टैक्टिकल मूव है, नेगोशिएशन का हिस्सा है, इसे भारत को स्ट्रैटेजिक लेवल का संकट नहीं समझना चाहिए। ट्रंप का काम करने का तरीका ऐसा ही है।’

वहीं रोबिन्दर सचदेव कहते हैं, ‘ट्रेड डील को लेकर भारत की कुछ रेडलाइन हैं, जैसे कृषि क्षेत्र ना खोलना, जीएम (जेनेटिक मोडीफाइड) फूड प्रोडक्ट इंपोर्ट ना करना और डेटा लोकलाइजेशन, भारत इन्हें लेकर अडिग रहेगा। एक तरह से ये कहा जा सकता है कि ट्रंप ‘मोदी इज माय ग्रेट फ्रेंड’, और मोदी भी ट्रंप को दोस्त कहते हैं, लेकिन दोनों देशों की नीतियां एक-दूसरे से इंटरसेक्ट नहीं कर पा रही हैं।’

भारत और अमेरिका के बीच ट्रेड डील को लेकर जारी बातचीत बहुत हद तक ये स्पष्ट करेगी कि वैश्विक परिवर्तन के इस दौर में दोनों देशों के रिश्ते क्या दिशा लेते हैं। हालांकि विश्लेषक इस बात पर ज़ोर देते हैं कि दो नेताओं के बीच व्यक्तिगत रिश्ते विदेश नीति या राष्ट्रीय नीति को बहुत हद तक प्रभावित नहीं करते हैं। (bbc.com/hindi)


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