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इमरान खान से पहले पाकिस्तान में पूर्व पीएम को कब ‘राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा’घोषित किया गया था?
08-Dec-2025 10:12 PM
इमरान खान से पहले पाकिस्तान में पूर्व पीएम को कब ‘राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए  खतरा’घोषित किया गया था?

-अहमद एजाज

शुक्रवार को पाकिस्तानी सेना के इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस (आईएसपीआर) के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल अहमद शरीफ चौधरी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में पूर्व प्रधानमंत्री और वर्तमान में जेल में बंद इमरान खान की कड़ी आलोचना करते हुए उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताया।

आईएसपीआर के महानिदेशक का लहजा मामले की गंभीरता को दिखाता है। अहमद शरीफ चौधरी ने कहा, ‘उस व्यक्ति (इमरान खान) का बयान राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन गया है।’

पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता ने तो यहाँ तक कहा कि ‘इस आदमी में मानसिक बीमारी के भी लक्षण दिखाई दे रहे हैं।’

पूर्व प्रधानमंत्री को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा बताने वाली सैन्य प्रवक्ता की कड़ी भाषा गंभीर भी है और अर्थपूर्ण भी। लेकिन पाकिस्तानी राजनीतिक व्यवस्था और उसके इतिहास में यह कोई असामान्य घटना नहीं है।

हम यह देखने की कोशिश करते हैं कि पाकिस्तान में ‘राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा’ या ‘सुरक्षा जोखिम’ शब्द का इतिहास क्या है और अब तक कौन-कौन इसकी चपेट में आया है? साथ ही, ऐसे ‘राजनीतिक हथियार’ उस समय की राजनीति, व्यवस्था और राज्य के लिए किस हद तक घातक साबित हुए? और जिन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा घोषित किया गया, वे बाद में ‘देशभक्त’ कैसे बन गए?

‘पाकिस्तान के निर्माण के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा पैदा हुआ’

देश की स्थापना के बाद का पूरा दशक राजनेताओं और नागरिक एवं सैन्य नौकरशाही के बीच राजनीतिक संघर्ष में बीता।

नतीजतन, संवैधानिक, लोकतांत्रिक और राजनीतिक संस्थाएँ फल-फूल नहीं सकीं। नतीजा यह हुआ कि प्रधानमंत्री बदलते रहे, सरकारें गिरती रहीं और आखिरकार अयूब खान ने हालात और घटनाक्रम को भ्रष्ट बताते हुए सत्ता हथिया ली।

प्रधानमंत्रियों के अधिकार कई मायनों में सीमित थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री हुसैन शहीद सुहरावर्दी, जो पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान के लोकप्रिय नेताओं में से एक थे, को नागरिक-सैन्य नौकरशाही ने इस शर्त पर प्रधानमंत्री के रूप में स्वीकार किया था कि वे पश्चिम समर्थक विदेश नीति जारी रखेंगे और सेना के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे।

कय्यूम निजामी अपनी पुस्तक ‘जनरल्स एंड पॉलिटिशियन इन द कोर्ट ऑफ हिस्ट्री’ में लिखते हैं कि पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना को नागरिक सेना के अधिकारियों के बारे में चिंता थी और तब इसके गवाह बने जब अयूब ख़ान को शरणार्थियों के पुनर्वास में सरदार अब्दुल रब निश्तार की सहायता करने की जि़म्मेदारी सौंपी गई थी।

अब्दुल रब निश्तार ने मोहम्मद अली जिन्ना को सौंपी अपनी रिपोर्ट में कहा कि अयूब ख़ान ने अपने कर्तव्य के प्रति पेशेवर रवैया नहीं अपनाया। इस पर पाकिस्तान के संस्थापक ने ये शब्द कहे थे- ‘मैं इस सैन्य अधिकारी को जानता हूँ। उसे सैन्य मामलों से ज़्यादा राजनीति में दिलचस्पी है।’ जनरल अयूब ने सत्ता पर कब्जा करने के बाद अपने पहले भाषण में राजनेताओं के बारे में विशेष रूप से कठोर शब्दों का प्रयोग किया था।

उन्होंने कहा था, ‘उपद्रवियों, राजनीतिक अवसरवादियों, तस्करों, फेरीवालों और अन्य सामाजिक कीटों, शार्क और जोंकों के लिए कुछ शब्द: सेना और लोग आपकी उपस्थिति से घृणा करते हैं। अब एक नए युग की शुरुआत करना और अपने तरीके बदलना आपके हित में है, अन्यथा बदला निश्चित और तत्काल होगा।’

गौरतलब है कि अयूब ख़ान ने राजनेताओं को राजनीति से दूर रखने के लिए ‘हेब्दो’ कानून बनाया था। इस क़ानून के तहत, प्रमुख राजनेताओं को राजनीति में भाग लेने से अयोग्य घोषित कर दिया गया था। ‘हेब्दो’ कानून दरअसल एक राजनीतिक बदले की भावना से बनाया गया था, जिसका स्पष्ट उद्देश्य राजनेताओं को जनता की नजर में कमतर दिखाना था।

फातिमा जिन्ना और बेनजीर

पहला मार्शल लॉ लागू होने के बाद, यह एक आम संस्कृति बन गई कि जो राजनेता सरकार विरोधी खेमे में थे, उन्हें विदेशी षड्यंत्रों का हिस्सा माना जाता था।

जब अयूब खान और फातिमा जिन्ना के बीच राष्ट्रपति पद का चुनाव हुआ, तो फातिमा जिन्ना को ‘देशद्रोही’ तक कहा गया। उनके चरित्र पर हमला किया गया और अयूब खान और उनके समर्थकों द्वारा बाँटे गए पर्चों में फातिमा जिन्ना पर देश तोडऩे की साजि़श रचने का आरोप भी लगाया गया।

हामिद खान ने अपनी किताब ‘पाकिस्तान का संवैधानिक और राजनीतिक इतिहास’ में लिखा है, ‘अयूब खान सरकार ने फातिमा जिन्ना के खिलाफ देशद्रोह और राष्ट्र-विरोधी भावना पैदा की।’

पाकिस्तान का संविधान बनाने वाले जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी दे दी गई, जबकि उनकी बेटी बेनजीर भुट्टो पर भी देशद्रोह का आरोप लगाया गया।

कय्यूम निज़ामी अपनी किताब में लिखते हैं कि ‘भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने दिसंबर 1988 और जुलाई 1989 में पाकिस्तान का दौरा किया था। राजीव और बेनज़ीर दोनों ही युवा नेता थे। उनके बारे में आम धारणा यही थी कि दोनों अतीत की नफऱत को भुलाकर एक नए युग की शुरुआत करेंगे।’

‘पाकिस्तान और भारत के बीच एक-दूसरे के परमाणु प्रतिष्ठानों पर हमला न करने का समझौता हुआ। राजीव गांधी ने सियाचिन ग्लेशियर पर सकारात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त की। खुफिया एजेंसियों ने दोनों नेताओं की बैठकों पर नजर रखी और निष्कर्ष निकाला कि बेनजीर पर राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में भरोसा नहीं किया जा सकता।’

सामाजिक कार्यकर्ता और इतिहास के शिक्षक अम्मार अली जान कहते हैं, ‘यह त्रासदी है कि कभी सभी बंगालियों को राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा घोषित कर दिया गया, कभी जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी दे दी गई, तो कभी फातिमा जिन्ना और बेनजीर को सुरक्षा के लिए ख़तरा घोषित कर दिया गया।’

नवाज शरीफ और इमरान खान

हमें अक्तूबर 2020 में मियां नवाज शरीफ के उस भाषण को याद रखना होगा, जो उन्होंने विपक्षी दलों की पहली बैठक में वीडियो लिंक के जरिए दिया था। उन्होंने कहा था कि ‘देश का संविधान तोडऩे वाले देशभक्त हैं और इस बैठक में मौजूद देश का राजनीतिक नेतृत्व देशद्रोही है।’

तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, ‘आपको नवाज शरीफ को देशद्रोही कहना है, बिल्कुल कहिए। लेकिन नवाज शरीफ लोगों से उनके वोट का सम्मान करवाएंगे।’

अक्तूबर में लाहौर में मियां नवाज शरीफ के खिलाफ देशद्रोह और राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया था, जिस पर उनकी पार्टी ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी।

इसी तरह, मार्च 2021 में, मियां नवाज शरीफ ने लंदन से एक वीडियो संदेश जारी किया जिसमें उन्होंने कहा, ‘पहले आपने कराची में होटल के कमरे का दरवाजा तोड़ दिया जहां मरियम ठहरी हुई थीं और अब आप उन्हें धमकी दे रहे हैं।’

मियां नवाज शरीफ ने कहा, ‘अगर मरियम को कोई नुकसान पहुंचता है तो इसके लिए इमरान खान, सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा और डीजी आईएसआई जनरल फैज हमीद जिम्मेदार होंगे।’

यह ध्यान देने योग्य बात है कि यह वह समय था जब मियां नवाज़ शरीफ़, उनकी पार्टी और सत्ता प्रतिष्ठान के बीच तनाव बढ़ गया था और यह कहा जा रहा था कि दोनों पार्टियों के लिए वापसी का कोई रास्ता नहीं है। मई 2018 में तत्कालीन प्रधानमंत्री शाहिद खाकान अब्बासी ने संसद को संबोधित करते हुए कहा था कि ‘देश को अजेय बनाने वाले किसी व्यक्ति के बारे में देशद्रोह की बातें स्वीकार्य नहीं हैं।’

शाहिद खाकान अब्बासी के भाषण की पृष्ठभूमि यह थी कि मियां नवाज़ शरीफ़ ने एक अंग्रेजी दैनिक को दिए साक्षात्कार में कहा था कि ‘सैन्य संगठन सक्रिय हैं। उन्हें नॉन-स्टेट एक्टर्स कहा जाता है। क्या हम उन्हें सीमा पार करके मुंबई में 150 लोगों की हत्या करने की इजाजत दे सकते हैं?’

जब नवाज शरीफ को देशद्रोही घोषित किया गया तो उन्होंने कहा, ‘अगर मैं देशद्रोही हूं तो राष्ट्रीय आयोग बनाइए।’

यह ध्यान देने योग्य बात है कि 2013 में जब मियां नवाज शरीफ ने सत्ता संभाली थी, तब से लेकर उनसे प्रधानमंत्री पद छीने जाने तक और बाद में 2018 के चुनावों तक, सत्ता प्रतिष्ठान के साथ उनका टकराव अपने चरम पर था।

मियां नवाज शरीफ और सत्ता प्रतिष्ठान के बीच टकराव नब्बे के दशक में रुक-रुककर जारी रहा और 12 अक्तूबर 1999 को नवाज शरीफ को सत्ता से हटाए जाने के साथ ही ये खत्म हुआ।

जनरल परवेज मुशर्रफ के शासनकाल में नवाज़ शरीफ़ और उनके भाई पर विमान अपहरण की साजि़श रचने का मामला दर्ज हुआ था, ठीक वैसे ही जैसे मियाँ नवाज़ शरीफ़ का सत्ता प्रतिष्ठान से टकराव हुआ था और उन्हें आरोपों का सामना करना पड़ा था। इमरान ख़ान भी इस समय ऐसी ही स्थिति का सामना कर रहे हैं।

शुक्रवार को डीजी आईएसपीआर की प्रेस कॉन्फ्रेंस ने इस संदेह को मजबूत किया कि पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान, उनकी पार्टी और सैन्य प्रतिष्ठान के बीच तनाव अपने चरम पर पहुंच गया है और अब पीछे मुडऩे का कोई रास्ता नहीं है।

इमरान ख़ान और सत्ता प्रतिष्ठान के बीच तनाव की नींव 2022 में पीटीआई सरकार के पतन से कुछ समय पहले ही पड़ गई थी, लेकिन समय के साथ कुछ ऐसी घटनाएं हुईं जिनसे इसकी तीव्रता बढ़ गई।

इमरान खान ने अपनी सरकार के आखिरी दिनों में तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल क़मर जावेद बाजवा की आलोचना शुरू कर दी थी। मीर जाफऱ और मीर सादिक जैसे शब्दों के साथ-साथ तटस्थ शब्द और उनके पीछे छिपे अर्थ भी उभरकर सामने आए थे। जैसे-जैसे इमरान ख़ान को यह अहसास होने लगा कि अविश्वास प्रस्ताव सरकार के पतन का कारण बन सकता है, वे और अधिक आक्रामक होते गए।

सरकार गिरने के बाद तनाव बढ़ता ही गया और फिर 9 मई का दिन आ गया। यही वह लम्हा था जब द्विपक्षीय तनाव ने एक नया मोड़ ले लिया।

फिर, पीटीआई की असुरक्षा और अगले साल 8 फरवरी को हुए चुनावों के नतीजों पर प्रतिक्रिया ने तनाव को और बढ़ा दिया। इसके अलावा, 26 नवंबर, 2024 की घटना ने आग में घी डालने का काम किया।

हाल के दिनों में, पूर्व प्रधानमंत्री और उनकी बहनों, कुछ पार्टी नेताओं और खैबर पख्तूनख्वाह के नए मुख्यमंत्री के बीच बैठकों के स्थगित होने की खबरें भी द्विपक्षीय तनाव को उजागर करती प्रतीत होती हैं। इसी संदर्भ में, सोशल नेटवर्किंग प्लेटफॉर्म एक्स पर पूर्व प्रधानमंत्री का बयान एक परिणति के रूप में सामने आया।

हाल के इतिहास में एक के बाद एक दो पूर्व प्रधानमंत्रियों को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा कहना क्या मायने रखता है? इस बारे में अम्मार अली जान कहते हैं,  देशभक्ति, देशद्रोही, राष्ट्र-विरोधी, भ्रष्टाचार ये सब ऐसे शब्द हैं जिनका इस्तेमाल दुष्प्रचार के लिए किया जाता है।

इसके अलावा, इन शब्दों का कोई महत्व नहीं है, केवल एक ही फिल्म है जिसे जनता को बार-बार दिखाया जाता है।

‘राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा घोषित करना केवल बयानबाजी तक सीमित नहीं है।’ एक ओर जहां राजनीतिक नेता एक-दूसरे पर इसी तरह के आरोप लगा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर सत्ता प्रतिष्ठान भी उन राजनीतिक दलों और नेताओं पर आरोप लगा रहा है, जिन्हें वह नापसंद करता है।

हालाँकि, जब सैन्य प्रतिष्ठान किसी राजनेता, खासकर देश के प्रधानमंत्री रहे किसी व्यक्ति को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा घोषित करता है, तो मामला सिर्फ राजनीतिक बयानबाज़ी तक सीमित नहीं रहता। इसके परिणाम निश्चित रूप से घरेलू राजनीति और समाज को प्रभावित करते हैं, क्योंकि प्रतिष्ठान और राजनीतिक दलों के बीच टकराव लंबा खिंच सकता है।

लेकिन, यह कैसा अजीब इतिहास है कि जिन पर देशद्रोह, विदेशी षडयंत्र और राष्ट्र-विरोध के आरोप लगे, उन्हें बाद में ‘देशभक्त’ घोषित कर दिया गया। हुसैन शहीद सुहरावर्दी, मौलाना भशानी को भी देशद्रोही घोषित कर दिया गया।

जब जुल्फिकार अली भुट्टो पर देश को विभाजित करने का आरोप लगाया गया, तो गुलाम इशाक खान के राष्ट्रपति काल के दौरान उनकी बेटी को ‘सुरक्षा जोखिम’ घोषित किया गया।

मियां नवाज शरीफ को भी देश का दुश्मन घोषित किया गया और अब इमरान ख़ान को सुरक्षा के लिए ख़तरा घोषित कर दिया गया है।

सवाल यह है कि जब राजनेता एक-दूसरे पर आरोप लगाते हैं, तो वास्तव में वे एक-दूसरे की राजनीति की आलोचना कर रहे होते हैं, लेकिन सत्ता प्रतिष्ठान, जो खुद को गैर-राजनीतिक कहता है और जिसने हाल ही में प्रेस कॉन्फ्रेंस में बार-बार कहा है कि सेना को राजनीति से दूर रखा जाना चाहिए, वह राजनेताओं पर ऐसे आरोप क्यों लगा रहा है?

अम्मार अली जान कहते हैं, ‘हमारा एक दुर्भाग्य यह है कि डीजी आईएसपीआर को यह निर्धारित करने का अधिकार दिया गया है कि कौन सुरक्षा के लिए खतरा है और कौन नहीं।’

‘जब हम राज्य और देशभक्ति की बात करते हैं, तो किसी एक संस्था या विभाग को यह निर्णय लेने का अधिकार नहीं होना चाहिए। हम सभी पाकिस्तानी हैं और अगर लोग किसी को वोट देते हैं, या उनका समर्थन करते हैं, या उनका विरोध करते हैं, तो यह लोगों का अधिकार है।’

उनके अनुसार, दिलचस्प बात यह है कि सत्ता प्रतिष्ठान ने सभी राजनेताओं का इस्तेमाल किया और बाद में उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा घोषित कर दिया, और इमरान ख़ान के साथ भी यही हुआ।

‘अगर वे इतने खतरनाक और दुष्ट थे, तो आपने उनका समर्थन क्यों किया? आप उन्हें सरकार में क्यों लाए?’ (bbc.com/hindi)


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