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अब एक साल की नौकरी पर ग्रेच्युटी के हकदार, नया लेबर कोड क्या है जिसका कई मजदूर संगठन कर रहे हैं विरोध
23-Nov-2025 8:39 PM
अब एक साल की नौकरी पर ग्रेच्युटी के हकदार, नया लेबर कोड क्या है जिसका कई मजदूर संगठन कर रहे हैं विरोध

-चंदन कुमार जजवाड़े

भारत में केंद्र सरकार ने पुराने लेबर लॉ की जगह चार नए लेबर कोड लागू कर दिए हैं। सरकार इस कोड को कर्मचारियों और मजदूरों के हित में बता रही है, जबकि कई मजदूर संगठनों ने इसे मज़दूर विरोधी और उद्योगपतियों के हित में बताया है।

पीएम मोदी ने शुक्रवार को सोशल मीडिया एक्स पर लिखा, ‘आज, हमारी सरकार ने चार लेबर कोड लागू कर दिए हैं। यह आजादी के बाद मजदूरों के लिए सबसे बड़े और प्रगतिशील सुधारों में से एक है।’

उनके मुताबिक, ‘यह हमारे कामगारों को बहुत ताकतवर बनाता है। इससे कम्प्लायंस भी काफी आसान हो जाएगा और यह ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ को बढ़ावा देने वाला है।

हालाँकि कई मज़दूर संगठनों का मानना है कि इससे कामगारों का शोषण बढ़ेगा और इसे पूंजीपतियों के दबाव में तैयार किया गया है।

लेबर कोड के ख़िलाफ़ इंटक, एटक, एचएमएस, सीआईटीयू, एआईयूटीयूसी, टीयूसीसी, एईडब्लूए, एआईसीसीटीयू, एलपीएफ़ और यूटीयूसी जैसे मज़दूर संगठनों ने 26 नवंबर को देशभर में विरोध प्रदर्शन का फ़ैसला भी किया है।

विपक्ष का विरोध

हालाँकि कांग्रेस ने सरकार के इस फ़ैसले पर तंज़ किया है।

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा, ‘मजदूरों से जुड़े 29 मौजूदा कानूनों को 4 कोड में री-पैकेज किया गया है। इसका किसी क्रांतिकारी सुधार के तौर पर प्रचार किया जा रहा है, जबकि इसके नियम अभी तक नोटिफाई भी नहीं हुए हैं।’

उन्होंने सवाल खड़े किए हैं, ‘लेकिन क्या ये कोड भारत के मजदूरों की न्याय के लिए इन 5 जरूरी मांगों को हकीकत बना पाएंगे?

मनरेगा समेत पूरे देश में हर किसी के लिए 400 रुपये की न्यूनतम मजदूरी

‘राइट टू हेल्थ’ कानून जो 25 लाख रुपये का हेल्थ कवरेज देगा

शहरी इलाकों के लिए एम्प्लॉयमेंट गारंटी एक्ट

सभी असंगठित श्रेत्र के मजदूरों के लिए पूरी सोशल सिक्योरिटी, जिसमें लाइफ इंश्योरेंस और एक्सीडेंट इंश्योरेंस शामिल है

प्रमुख सरकारी क्षेत्रों में कॉन्ट्रैक्ट वाली नौकरी पर रोक

मोदी सरकार को कर्नाटक सरकार और राजस्थान की पिछली सरकार से सीखना चाहिए, जिन्होंने नए कोड से पहले अपने ज़बरदस्त गिग वर्कर कानूनों के साथ 21वीं सदी के लिए लेबर रिफॉर्म की शुरुआत की थी।’

आइए जानने की कोशिश करते हैं कि नए लेबर कोड में क्या है और इसके लागू होने से क्या फर्क पड़ेगा।

केंद्र सरकार ने ‘कोड ऑन वेज’ यानी पगार या मजदूरी से जुड़ा कोड साल 2019 में ही संसद से पारित करा लिया था। इसके बाद साल 2020 में संसद के दोनों सदनों से तीन लेबर कोड को पारित कराया गया।

इनमें ऑक्यूपेशनल सेफ्टी, हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशन कोड (ओएसएच), कोड ऑन सोशल सिक्योरिटी और इंडस्ट्रियल रिलेशन कोड शामिल हैं।

हालांकि कई लोगों का मानना है कि किसानों से जुड़े कानून का विरोध शुरू होने के बाद सरकार ने लेबर कोड को लागू करने में सावधानी बरती है।

क्या मोदी राज में मजदूरों के हक कमजोर हुए हैं?

सरकार का तर्क है कि सही मायनों में कामगारों को सुरक्षा देने के लिए 29 कानूनों के चार नए कोड बनाए गए हैं और इस बात को पुख्ता किया गया है कि कामगारों को श्रम कानूनों का लाभ मिल सके।

सरकार का दावा है कि साल 2019 के वेज कोड से कामगारों को न्यूनतम मजदूरी की गारंटी मिल सकेगी और हर पांच साल में न्यूनतम मजदूरी को रिव्यू किया जाएगा।

सरकार का यह भी दावा है कि इससे सभी कामगारों को समय पर वेतन मिलने की गारंटी भी दी जाएगी और महिलाओं और पुरुषों को समान मेहनताना मिल सकेगा।

सरकार का यह भी तर्क है कि एक छोटे से योगदान के बाद सभी कामगारों को ईएसआईसी के हॉस्पिटल और डिस्पेंसरी में चिकित्सा सुविधा मिल सकेगी और यह सामाजिक सुरक्षा मुहैया कराने के लिहाज से काफी अहम होगा।

मजदूर संगठनों का आरोप है कि किसान क़ानूनों पर विपक्ष के विरोध के दौरान सरकार ने बिना चर्चा के ही तीन लेबर कोड पारित करा लिए थे और राज्यसभा में जब विपक्ष विरोध में सदन से बाहर था उसी दिन सरकार ने इस बिल को पास करा लिया था।

दूसरी तरफ उद्योग जगत के कई लोग नए लेबर कोड के लागू होने का इंतजार कर रहे थे।

केंद्र सरकार ने पीआईबी के ज़रिए एक प्रेस रिलीज में दावा किया है कि इन चार लेबर कोड से बड़ा बदलाव आएगा। इससे बेहतर पगार, दुर्घटनाओं के दौरान सुरक्षा और सामाजिक सुरक्षा मिलेगी और यह मजदूरों के लिए कल्याणकारी होगा।

नए कोड बनाम पुराने कानून

सरकार का कहना है कि चार लेबर कोड से देश के 50 करोड़ कामगारों को लाभ होगा। उसने नए लेबर कोड की तुलना पुराने श्रम कानूनों से करने की कोशिश की है। इसके मुताबिक़:-

अब किसी भी मज़दूर को एक साल काम करने के बाद ग्रेच्युटी मिलेगी, ऐसा पहले पाँच साल की नौकरी के बाद मिलता था।

पहले मजदूरों को नौकरी से जुड़े दस्तावेज नहीं दिए जाते थे, जो अब देना ज़रूरी होगा। इससे पारदर्शिता बढ़ेगी और मजदूरों को नौकरी की सुरक्षा मिलेगी।

पहले मजदूरों को सीमित स्तर पर सामाजिक सुरक्षा मिलती थी, साल 2020 में बने कोड से अब इसका दायरा बढ़ेगा। अब सभी कामगारों को पीएफ, ईएसआईसी, बीमा और अन्य सुरक्षा मिलेगी।

अब तक के क़ानून के तहत कुछ ही मज़दूरों को न्यूनतम मजदूरी मिलती थी, लेकिन सरकार का दावा है कि साल 2019 के कोड ऑफ़ वेज से सभी मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी मिलेगी।

अब 40 साल से ज़्यादा उम्र के सभी मजदूरों का सालाना हेल्थ चेक होगा, जो पहले नहीं होता था।

अब समय पर मज़दूरी देना जरूरी होगा, जो पहले नहीं था।

अब हर तरह के काम में रात में भी महिलाओं से काम कराया जा सकेगा। ऐसा पहले संभव नहीं था। हालाँकि नए कोड के मुताबिक महिलाओं से इसके लिए सहमति लेनी होगी।

महिलाओं को अब समान काम के लिए समान वेतन देना जरूरी होगा।

नए कोड के तहत पहली बार गिग वर्कर्स (सीमित समय के लिए ठेके पर काम करने वाले), प्लेटफॉर्म वर्कर्स और एग्रीगेटर्स को परिभाषित किया गया है।

हालाँकि प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस और इससे जुड़े मजदूर संगठन इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस (इंटक) का आरोप रहा है कि नए लेबर कोड के तहत श्रमिक हड़ताल नहीं कर सकते- चाहे उन्हें नौकरी से निकाल दिया जाए, चाहे पगार कम कर दी जाए।

इंटक के जनरल सेक्रेटरी संजय सिंह कहते हैं, ‘इसमें जो फायदे बताए जा रहे हैं वो तब मिलेंगे जब कोई नौकरी में रहेगा। अब नौकरी में रिटायरमेंट एज नहीं फिक्स्ड टर्म होगा। यानी जैसे सेना में चार साल की नौकरी कर दी वैसी ही हालत हो गई है। जब भी मालिक का मन करेगा वो मज़दूर को हटा देगा और कम मज़दूरी पर फिर से किसी को नौकरी दे देगा।’

वहीं मजदूर संगठनों का आरोप है कि ठेकेदार मज़दूरों का शोषण करते हैं और नया क़ानून इसकी और ज़्यादा छूट दे रहा है। उनका दावा है कि अब कोयले के खदान जैसी जगहों पर भी रात में महिलाओं से काम लिया जाएगा और इसका कोई विरोध नहीं कर पाएगा।

मज़दूर संगठनों का विरोध

संविधान की सातवीं अनुसूचि में दी गई तीन अनुसूचियों-सेंटर लिस्ट, स्टेट लिस्ट और कॉनकरेंट लिस्ट में मजदूर से जुड़े मामले कॉनकरेंट लिस्ट यानी समवर्ती सूची में आते हैं।

इसके मुताबिक ट्रेड यूनियन, औद्योगिक मनमानी, सामाजिक सुरक्षा, रोजग़ार, बेरोजगारी, श्रमिकों का कल्याण जैसे मुद्दों पर केंद्र और राज्य दोनों को अधिकार हासिल है।

जाहिर है नए लेबर कोड को लागू करने में राज्यों की भी अहम भूमिका होगी।

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक भारत में संगठित और असंगठित क्षेत्र को मिलाकर 50 करोड़ से ज़्यादा कामगार काम करते हैं। इनमें से करीब 90 फ़ीसदी कामगार असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं और ये चार कोड इन सभी मज़दूरों पर लागू होंगे।

कई प्रमुख मज़दूर संगठनों का आरोप है कि नया लेबर कोड श्रमिकों के मौलिक अधिकारों का हनन है।

हिन्द मजदूर सभा के जनरल सेक्रेटरी हरभजन सिंह सिद्धू ने बीबीसी से बातचीत में कहा, ‘भारत में मजदूर संगठनों ने लंबी लड़ाई के बाद कामगारों के हित में 44 कानून बनवाए थे। जिनमें काम के निर्धारित घंटे, श्रम संगठन बनाना, श्रमिकों के हितों के लिए सामूहिक तौर पर सौदेबाजी कर पाने की क्षमता वगैरह शामिल थे। लेकिन नये लेबर कोड से सब खत्म कर दिया गया। ’

हरभजन सिंह सिद्धू आरोप लगाते हैं, ‘सरकार ने नए कोड में 15 पुराने क़ानूनों को ख़त्म कर दिया और बाक़ी 29 क़ानूनों को मिलाकर इससे कामगारों के हितों के प्रावधानों को हटाकर, मालिकों के हितों में बदल दिया।

सिद्धू आरोप लगाते हैं, ‘अब अगर मजदूरों ने हड़ताल करने में शर्तों का उल्लंघन किया तो यह गैर कानूनी हो सकता है, मजदूर संगठन की मान्यता ख़त्म हो जाएगी। जेल या जुर्माना या दोनों सजा हो सकती है। यहाँ तक कि जो जरूरी सेवाएं नहीं, उनसे जुड़े कामगारों को भी हड़ताल करने के लिए 60 दिन का नोटिस देना होगा।’

कई मजदूर संगठनों का मानना है कि यह कोड मजदूरों की जगह मालिकों के हित में है। इससे नौकरी की गारंटी खत्म हो जाएगी, मालिकों के लिए फैक्टरी को बंद करना आसान हो जाएगा, मजदूर संगठन बनाना मुश्किल कर दिया गया है और यह अंतरराष्ट्रीय श्रम कानूनों के खिलाफ है।

संजय सिंह कहते हैं, ‘कोड और कानून में फर्क होता है। कानून में सजा का प्रावधान होता है, जबकि कोड में कंपनी/फैक्टरी मालिकों पर ज़ुर्माने का प्रावधान रखा गया है। उनके पास बहुत पैसे होते हैं वो इससे नहीं डरेंगे। लेबर कोड मालिकों को खुले उल्लंघन की छूट दे देगा।  जबकि फैक्टरी एक्ट में जुर्माने के साथ सजा का भी प्रावधान था।’

संजय सिंह आरोप लगाते हैं कि साल 2014 में केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद साल 2015 में आखिरी बार लेबर कॉन्फ्रेंस हुई थी।

उनके मुताबिक ऐसा सम्मेलन पहले हर साल होता था लेकिन साल 2015 में विरोध की आवाज उठने के साथ ही सम्मेलन को ही बंद कर दिया गया।

मज़दूर संगठनों का आरोप है कि नए कोड के तहत मालिक 8 की जगह 10-12 घंटे तक काम करा सकते हैं।

सिद्धू के मुताबिक़, ‘मौजूदा क़ानून के मुताबिक़ किसी फैक्टरी में 100 से ज़्यादा कर्मचारी काम कर करे हों तो इसके लिए सरकार की मंज़ूरी जरूरी होती थी, जबकि नए कोड में यह संख्या 300 कर दी गई है। यानी 300 से कम कामगार हों तो उसे बंद करने के लिए सरकार की मंज़ूरी जरूरी नहीं होगी।’

पुराने कानून की सख्ती की वजह से आज भी देश में कई फैक्टरी भले ही चल नहीं रही हैं लेकिन उसे बंद करने की मंजूरी नहीं दी गई है।

आशंका जताई जा रही है कि मौजूदा दौर में मशीनों की वजह से फैक्टरी में काम करने वालों की संख्या भी घटी है और बड़े-बड़े शहरों में रियल एस्टेट में बड़े फायदे की वजह से किसी भी फैक्टरी मालिक के लिए फैक्टरी को बंद कर जमीन को बेच पाना आसान हो जाएगा।

हरभजन सिंह सिद्धू आरोप लगाते हैं कि ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ के नाम पर लेबर लॉ को खत्म किया जा रहा है और इससे 85त्न फैक्टरी लेबर इस कोड से बाहर हो जाएंगे। (bbc.com/hindi)


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