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नीतीश कुमार: सेहत और लोकप्रियता पर उठते सवालों के बावजूद बिहार के लोगों ने भरोसा क्यों किया
15-Nov-2025 8:04 PM
नीतीश कुमार: सेहत और लोकप्रियता पर उठते सवालों के बावजूद बिहार के लोगों ने भरोसा क्यों किया

जेडीयू दफ़्तर के बाहर लगी एक पोस्टर की तस्वीर


-प्रेरणा

बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की सेहत और सक्रियता पर सवाल छाए रहे।

मीडिया से उनकी दूरी, कुछ मंचों से उनके दिए बयान और हाव भाव पर लोग सवाल उठाते रहे। बिहार के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव नीतीश कुमार को अचेत मुख्यमंत्री कहते थे। लेकिन इन सबके बावजूद लोग कहते थे कि नीतीश कुमार की पार्टी इस बार 2020 की तुलना में बढिय़ा प्रदर्शन करेगी।

एग्जिट पोल्स में भी जेडीयू के अच्छे प्रदर्शन के अनुमान लगाए गए। जेडीयू ने अप्रत्याशित जीत दर्ज की। पार्टी दफ्तर से लेकर मुख्यमंत्री आवास तक पोस्टर लगे... ‘टाइगर अभी जिंदा है।’

जेडीयू के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा पहले से ही कई इंटरव्यू में ये कह चुके थे कि नीतीश कुमार को जब-जब कम आंका जाता है, तब-तब वह अपने प्रदर्शन से लोगों को चौंकाते हैं।

किसी भी एग्जिट पोल में आरजेडी के इतने खऱाब प्रदर्शन की भविष्यवाणी नहीं की गई थी।

हालांकि 2020 की तुलना में आरजेडी के वोट प्रतिशत में बहुत अधिक गिरावट नहीं देखी गई है। पर पार्टी को सीटों का भारी नुकसान हुआ है।

लेकिन यहाँ बात आरजेडी या तेजस्वी यादव की बजाय अपनी सेहत, लोकप्रियता पर उठते सवालों के बावजूद एक बार फिर से बिहार की राजनीति के किंग बनकर उभरे नीतीश कुमार की।

महिलाओं का समर्थन

इस बार बिहार में 67.13 फीसदी मतदान हुआ जो कि पिछले विधानसभा चुनाव से 9.6 फीसदी ज़्यादा है।

पुरुषों की तुलना में महिलाओं का मतदान 8.15 प्रतिशत ज़्यादा रहा है।

इस बार के मतदान में पुरुषों की हिस्सेदारी 62.98 फीसदी रही और महिलाओं की 71.78 प्रतिशत। बिहार में 3.51 करोड़ महिला वोटर हैं और 3.93 करोड़ पुरुष वोटर और कुल मतदाताओं की तादाद 7.45 करोड़ है।

बिहार में चुनाव कवरेज के दौरान कई राजनीतिक विश्लेषकों ने मुझसे कहा था कि नीतीश कुमार को इस बार महिलाओं का भारी समर्थन मिल रहा है और ये चुनाव के परिणामों में भी नजर आएंगे।

मुमकिन है कि महागठबंधन को भी इसका आभास था, इसलिए पहले चरण के मतदान से महज पंद्रह दिन पहले तेजस्वी यादव ने जीविका दीदियों के लिए स्थायी नौकरी, तीस हजार के वेतन, कर्जमाफी, दो सालों तक ब्याजमुक्त क्रेडिट, दो हजार का अतिरिक्त भत्ता और पांच लाख तक का बीमा कवरेज देने का लंबा-चौड़ा वादा किया। इसके बावजूद नतीजे उनके पक्ष में नहीं आए।

महागठबंधन ने चुनाव से लगभग एक महीने पहले नीतीश सरकार की तरफ से जीविका दीदियों के खाते में 10-10 हजार कैश बेनेफिट ट्रांसफर करने को वोट खरीदने से जोड़ा।

बिहार के वरिष्ठ पत्रकार और लेखक संतोष सिंह नीतीश के स्कीम्स को उनकी अप्रत्याशित जीत की बड़ी वजह मानते हैं। ऐसा मानने वाले संतोष सिंह अकेले नहीं हैं।

बीबीसी के खास कार्यक्रम ‘द लेंस’ में शामिल हुए सी-वोटर के संस्थापक और प्रमुख चुनाव विश्लेषक यशवंत देशमुख ने भी नीतीश की जीत में महिलाओं के लिए उनकी कल्याणकारी योजनाओं को अहम कारण माना।

महिलाओं के लिए जेनरेशनल स्कीम्स

अपने पहले कार्यकाल में ही नीतीश कुमार ने स्कूल जाने वाली लड़कियों के लिए साइकिल, पोशाक और मैट्रिक की परीक्षा फस्र्ट डिविजन से पास करने वाली छात्राओं को दस हज़ार रुपए की राशि दी।

बाद में बारहवीं की परीक्षा फस्र्ट डिविजऩ से पास करने पर 25 हज़ार रुपए और ग्रेजुएशन में पचास हज़ार रुपए की प्रोत्साहन राशि दी जाने लगी। अपने पहले कार्यकाल में नीतीश कुमार ने महिलाओं को पंचायत चुनाव में 50 प्रतिशत आरक्षण दिया।

पुलिस भर्ती में महिलाओं को 35 प्रतिशत आरक्षण की सुविधा दी और इस बार के चुनाव में ये भी वादा किया कि अगर उनकी सरकार बनी तो राज्य सरकार की नौकरियों में भी महिलाओं को 35 प्रतिशत आरक्षण दिया जाएगा। हालांकि पंचायत में 50 फीसदी आरक्षण देने के बावजूद बिहार में महिलाओं का राजनीतिक प्रतिनिधित्व अब भी बहुत कम है।

सोशल इंजीनियरिंग

नीतीश कुमार की सोशल इंजीनियरिंग को भी वरिष्ठ पत्रकार संतोष सिंह और प्रोफेसर राकेश रंजन जीत के पीछे का एक बड़ा फ़ैक्टर मानते हैं।

प्रोफेसर राकेश रंजन के मुताबिक, ‘नीतीश कुमार को अति पिछड़ा वर्ग का भी भरपूर समर्थन मिला है। प्रभुत्व वाली जातियों के खिलाफ ईबीसी की जातियां एकजुट नजर आईं और उन्होंने एनडीए को वोट किया।’

वहीं संतोष सिंह कहते हैं, ‘नीतीश कुमार जिस सामाजिक वर्ग से आते हैं, वह बिहार की आबादी का सिर्फ 2.91त्न है। इसके बावजूद वह इतने बड़े गठबंधन के नेता बने। एनडीए में चिराग पासवान की वापसी और उपेंद्र कुशवाहा के शामिल होने से गठबंधन मजबूत हुआ। यह भी एक तथ्य है। दलित, ईबीसी का एक बड़ा वर्ग, कुशवाहा वोट सब एनडीए के लिए एकजुट रहे। टिकट बँटवारे में भी जातीय समीकरणों का विशेष ध्यान रखा गया।’

वरिष्ठ पत्रकार और लेखक श्रीकांत मानते हैं कि तेजस्वी यादव इस बार मुस्लिम-यादव वोटरों से आगे नहीं बढ़ पाए। यानी उनका वोटर बेस का विस्तार नहीं हुआ। वहीं नीतीश कुमार को पंचायत में ईबीसी को 20 प्रतिशत आरक्षण देने का फ़ायदा मिला।

यशवंत देशमुख का भी यही मानना है। उन्होंने कहा, ‘तेजस्वी ने 2020 के चुनाव में एक हद तक अपने वोट बेस का विस्तार कर लिया था। नए वर्ग के वोटर उनसे जुड़े थे। इस बार ऐसा नहीं हुआ और इसका फायदा नीतीश को मिला।’

गुड गवर्नेंस

राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार मानते हैं कि बिहार के चुनाव में एनडीए आरजेडी के कथित ‘जंगलराज’ के नैरेटिव को अब भी प्रासंगिक बनाए रखने में कामयाब रहा है।

तेजस्वी यादव के लिए अब भी अपने पिता लालू प्रसाद यादव के कार्यकाल की ‘जंगलराज’ वाली छवि को भेदना एक बड़ी चुनौती है।

दूसरी तरफ नीतीश कुमार ‘सुशासन बाबू’ की अपनी छवि को अब भी बनाए हुए हैं। नीतीश के लंबे कार्यकाल के दौरान क़ानून-व्यवस्था, सडक़-बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं में सुधार उनके पक्ष में काम करती है।

इसी वजह से भी एक बड़े तबके में नीतीश कुमार स्थिरता, अनुभव और शासन की निरंतरता के प्रतीक बने हुए हैं। हालांकि इन सब के बावजूद वरिष्ठ पत्रकार श्रीकांत कहते हैं कि नीतीश कुमार के नेतृत्व में डबल इंजन की सरकार होते हुए भी बिहार देश के सबसे गरीब राज्यों में है।

पलायन आज भी एक बहुत बड़ी वास्तविकता है। बेरोजगारी चरम पर है। श्रीकांत कहते हैं कि नीतीश कुमार ने इन मुद्दों को गंभीरता से अड्रेस नहीं किया और इन पर काम करना अब उनके लिए एक चुनौती है।

 

एनडीए गठबंधन की रणनीति

राजनीतिक विश्लेषक मनीषा प्रियम एनडीए की रणनीति की सराहना करती हैं।

उनका कहना है, ‘ बीजेपी ने इस चुनाव को बेहतरीन तरीके से लड़ा। चिराग पासवान ने कहीं भी असहज करने वाले बयान नहीं दिए। गठबंधन एकजुट रहा। इससे वोटर में एक विश्वास पनपता है।’ वहीं महागठबंधन आखिर तक सीट शेयरिंग को लेकर एकमत नहीं नजर आया। तकरीबन आठ से ज़्यादा सीटें थीं, जहां महागठबंधन के ही प्रत्याशी एक दूसरे को चुनौती दे रहे थे।

राजनीतिक विशेषज्ञ शेफाली रॉय ने पटना में बीबीसी संवाददाता सुमेधा पाल से कहा था, ‘कांग्रेस ने तेजस्वी के चेहरे पर समय रहते भरोसा नहीं जताया। इनकी शुरुआत ही गड़बड़ रही। कांग्रेस बहुत कमजोर सहयोगी दल साबित हुआ। वहीं एनडीए अलायंस मजबूत था, न केवल एकजुटता के मामले में बल्कि अलग-अलग जातिवर्ग को साथ लाने के मामले में भी।

फेयरवेल चुनाव

वरिष्ठ पत्रकार संतोष सिंह और प्रोफ़ेसर राकेश रंजन का मानना है कि नीतीश कुमार को सहानुभूति वोट भी मिले हैं।

संतोष सिंह कहते हैं, ‘ये नीतीश कुमार का फ़ेयरवेल इलेक्शन था और बिहार के वोटरों ने वोट के ज़रिए अपने नेता को एक अच्छा फेयरवेल दिया है।’ वहीं राकेश रंजन का कहना है, ‘लोगों में एक संदेश था कि ये शायद नीतीश कुमार का आखिरी चुनाव है। महिलाओं का एक खास जुड़ाव रहा है नीतीश कुमार के साथ, इसलिए उन्होंने नीतीश कुमार को फ़ेयरवेल दिया है।’

प्रोफेसर राकेश रंजन कहते हैं, ‘नीतीश कुमार ने भले ही ज़्यादा सीटें जीत ली हों लेकिन उनकी बार्गेनिंग क्षमता बीजेपी की तुलना में कम हुई है। स्पष्ट है कि मंत्रिमंडल में कई मंत्रालय जो नीतीश कुमार अपने पास रखते थे, वे उन्हें छोडऩे पड़ेंगे।

आरजेडी के साथ जाने का एक विकल्प जो उनके पास हमेशा होता था, वो लगभग ख़त्म हो चुका है। इसलिए कहा जा रहा है कि आरजेडी का कमज़ोर और बीजेपी का मज़बूत होना, जेडीयू या कहें नीतीश कुमार के लिए कोई अच्छी ख़बर नहीं है। (bbc.com/hindi)


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