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लद्दाख में लोगों को संस्कृति, पहचान और रोजगार छूटने का डर
29-Sep-2025 9:17 PM
लद्दाख में लोगों को संस्कृति, पहचान और रोजगार छूटने का डर

2019 में जम्मू-कश्मीर से लद्दाख को अलग कर केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया था। अब स्थानीय लोगों को लग रहा है कि इस वजह से उनकी सांस्कृतिक पहचान, भूमि अधिकार और रोजगार की सुरक्षा खतरे में हैं।

 

  डॉयचे वैले पर साहिबा खान का लिखा- 

 

2019 में संसद में भारी हंगामे के बीच गृह मंत्री अमित शाह ने जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के दौरान कहा था कि यह कदम कश्मीर को बाकी भारत के साथ बेहतर तरीके से मिलाने के लिए उठाया जा रहा है। साथ ही उन्होंने कहा था कि लद्दाख को अपनी अनूठी सांस्कृतिक और भौगोलिक विशेषताओं के कारण केंद्रीय शासन से लाभ होगा। अब छह साल बाद लद्दाख की जनता गुस्से में है और सडक़ों पर उतर आई है।

क्यों उतरी जनता सडक़ों पर

लद्दाख, भारत का एक दूरस्थ और ऊंचाई वाला रेगिस्तानी क्षेत्र है जो हाल ही में हिंसक प्रदर्शनों के कारण सुर्खियों में है। 24 सितंबर 2025 को लेह शहर में हुए हिंसक प्रदर्शनों में चार लोगों की मौत हो गई और दर्जनों लोग घायल हुए। प्रदर्शनकारी लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा, भूमि अधिकारों की सुरक्षा और स्थानीय शासन चाहते हैं। इन विरोध प्रदर्शनों पर्यावरणीय संकट, सांस्कृतिक पहचान के संकट और आर्थिक असुरक्षा के मुद्दे को भी उठाया गया।

प्रदर्शनकारियों का नेतृत्व प्रमुख जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक कर रहे थे, जिन्होंने 14 दिनों तक भूख हड़ताल की थी। हिंसा के बाद उन्होंने अपनी हड़ताल समाप्त की और बाद में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर आंसू गैस और रबर की गोलियों का इस्तेमाल किया, जबकि प्रदर्शनकारियों ने पुलिस वाहनों और बीजेपी कार्यालय में आग लगा दी। अधिकारियों ने कर्फ्यू लगाया, मोबाइल इंटरनेट सेवा निलंबित की और वांगचुक के एनजीओ का लाइसेंस रद्द कर दिया।

प्रदर्शनकारियों की मांगें

वरिष्ठ नेता चेरिंग दोरजे के नेतृत्व में एपेक्स बॉडी लेह के प्रदर्शनकारियों की मुख्य आवाज बन गई है। दोरजे ने कहा कि उन सभी को गुलामों की तरह इस्तेमाल किया गया है और वो आगे आने वाले दिनों में इस आंदोलन को जारी रखेंगे।

2019 में जम्मू-कश्मीर से लद्दाख को अलग कर केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया था, जिससे लद्दाख की स्वायत्तता समाप्त हो गई। स्थानीय लोगों को लग रहा है कि इस वजह से उनकी सांस्कृतिक पहचान, भूमि अधिकार और रोजगार की सुरक्षा खतरे में हैं। वकील मुस्तफा हाजी ने एएफपी को बताया, ‘जम्मू और कश्मीर का हिस्सा रहते हुए हमारे पास जो सुरक्षा थी, वो अब खत्म हो गई है।’

प्रदर्शनकारी लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची के तहत विशेष दर्जा देने की मांग कर रहे हैं, जिससे स्थानीय विधानसभा को भूमि उपयोग और रोजगार पर कानून बनाने का अधिकार मिलेगा। सरकार ने पहले ही 85 प्रतिशत नौकरियां स्थानीय लोगों के लिए आरक्षित कर दी हैं और 2036 तक कोई भी बाहरी व्यक्ति यहां का डोमिसाइल नहीं ले सकता। हालांकि दोरजे कहते हैं, ‘हमारे सामने अभी लंबा रास्ता है।’

भूमि और पर्यावरणीय संकट

लद्दाख में बड़े पैमाने पर सौर ऊर्जा और औद्योगिक परियोजनाओं की योजना बनाई गई है, जिसके लिए हजारों एकड़ भूमि की जरूरत होगी। स्थानीय लोग डरते हैं कि इससे पश्मीना बकरियों के चरागाह और पारंपरिक पशुपालन पर असर पड़ेगा। दोरजे ने कहा, ‘इस सदियों पुराने व्यवसाय को खतरा है, जो हजारों पश्मीना बकरीपालकों की जिंदगी से जुड़ा है।’

लद्दाख में भारी सैन्य तैनाती है, और 2020 में चीन के साथ सीमा पर झड़प के बाद तनाव और बढ़ गया है। नए सैन्य क्षेत्र और बफर जोन के कारण चारागाह और सिकुड़ गए हैं। हाजी कहते हैं, ‘जब आपकी जमीन और पहचान की कोई सुरक्षा नहीं है, तो वह अच्छी स्थिति तो नहीं है।’

स्थानीय लोगों का भारत के प्रति नजरिया

लद्दाख के लोग ऐतिहासिक रूप से भारत के साथ जुड़े रहे हैं। वे पाकिस्तान और चीन के साथ हुए संघर्षों में भारत के सैनिकों का समर्थन करते रहे हैं। लेकिन अब लोगों को लग रहा है कि उन्हें धोखे में रखा गया है। मुस्तफा हाजी ने कहा, ‘70 सालों तक हमने भारत की सीमाओं की रक्षा की। अब हम चाहते हैं कि हमारी रक्षा हो।’

लेह एपेक्स बॉडी के सह-अध्यक्ष और लद्दाख बौद्ध संघ के प्रमुख छेरिंग दोरजे लकरुक, क्षेत्र से जुड़े मुद्दों पर सरकार से बातचीत कर रहे हैं। हाल ही में दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने द इंडियन एक्सप्रेस से कहा, ‘हम अनुच्छेद 370 को कोसते थे। लेकिन इसने हमारी रक्षा की। अब लद्दाख पूरे भारत के लिए खुल गया है।’

नेपाल में हुए जेन जी प्रदर्शनों से प्रेरणा लेने के सवाल पर छेरिंग ने कहा कि यह भी संभव है, लेकिन लोगों का गुस्सा नया नहीं है। उन्होंने एक्सप्रेस को बताया, ‘दुनिया भर में क्या हो रहा है, इस पर सबकी नजर है। तो, नेपाल के प्रदर्शनों का असर यहां भी पड़ा होगा। लेकिन ये नौजवान ज्यादातर गरीब परिवारों से आते हैं जो बेरोजगार हैं।’(dw.comhi)


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