विचार / लेख
भागलपुर के पीरपैंती में अदाणी को 1,050 एकड़ जमीन लीज पर मिली. विपक्षी दल कांग्रेस ने इसपर विरोध जताया. पेड़ों की कटाई और मुआवजे पर सवाल उठे. चुनावी राज्य बिहार में इस विवाद के मायने क्या हैं?
डॉयचे वैले पर मनीष कुमार का लिखा-
बिहार में उद्योगपति अदाणी चर्चा में हैं. मामला भागलपुर जिले के पीरपैंती में अदाणी पावर को 1,050 एकड़ जमीन दिए जाने से संबंधित है. इस जमीन पर एक थर्मल पावर प्लांट बनाने की योजना है. जमीन 33 साल की लीज पर दी गई है. कीमत, एक रुपया सालाना.
इस मामले पर कांग्रेस के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी पवन खेड़ा ने दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस की. फिर कांग्रेस ने पटना में प्रदर्शन किया. अदाणी को "राष्ट्र सेठ" की संज्ञा देते हुए पवन खेड़ा ने कई गंभीर आरोप लगाए.
इनमें से प्रमुख आरोप यह है कि अदाणी को जमीन देने के लिए किसानों पर दबाव डाला गया, पेंसिल से जबरन हस्ताक्षर करवाए गए और औने-पौने दाम पर जमीन ले ली गई. इसके अलावा एक मुद्दा यह भी उठाया गया कि प्रॉजेक्ट के लिए करीब 10 लाख पेड़ काटे जाएंगे.
बिजली की उपलब्धता और रोजगार मुहैया कराने का दावा
इस बीच 15 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अदाणी पावर की 2,400 मेगावाट क्षमता वाली इस ताप विद्युत परियोजना का पूर्णिया से वर्चुअल शिलान्यास भी कर दिया. अदाणी ग्रुप इसके लिए बिहार में करीब 26,000 करोड़ का निवेश करेगा. बिहार की एनडीए सरकार इस परियोजना को पूर्वोत्तर भारत में अब तक का सबसे बड़ा निवेश बता रही है.
अदाणी समूह ने इस संबंध में बिहार राज्य विद्युत उत्पादन कंपनी लिमिटेड (बीएसपीजीसीएल) के साथ बिजली आपूर्ति समझौते पर हस्ताक्षर किया है. कंपनी का कहना है कि पीरपैंती में बनने वाले 'ग्रीन फील्ड अल्ट्रा सुपर क्रिटिकल थर्मल पावर प्रॉजेक्ट' से बिहार को बिजली भी उपलब्ध कराई जाएगी. दावा है कि इस परियोजना के कारण 10 से 12 हजार लोगों के लिए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे.
पीरपैंती थर्मल पावर प्लांट: अधिग्रहण और मुआवजा
दरअसल, पीरपैंती प्रखंड के हरिनकोल, सुंदरपुर, रायपुरा, श्रीमतपुर और टुंडवा-मुंडवा मौजा (राजस्व ग्राम) में थर्मल पावर प्रॉजेक्ट के लिए भूमि अधिग्रहण का मामला काफी पुराना है. साल 2011 में भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू की गई थी.
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प्रॉजेक्ट के लिए कुल 1,020 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया गया. इसमें 988.335 एकड़ जमीन किसानों की है. शेष जमीन बिहार सरकार और रेलवे की है. साल 2015-16 तक लगभग 80 प्रतिशत जमीन मालिकों को मुआवजे की रकम दे दी गई. सरकारी दावे के मुताबिक, जुलाई 2025 तक 97 प्रतिशत जमीन मालिकों को मुआवजा दिया जा चुका है.
'एक रुपया सालाना' पर जमीन लीज
पावर प्रॉजेक्ट के लिए 'बिहार स्टेट पावर जनरेशन' कंपनी को साल 2022 में ही सांकेतिक दर 'एक रुपया सालाना' की लीज पर हस्तांतरण की स्वीकृति दी गई थी. दावा किया गया कि बिजली की कीमत कम रहे, इसलिए इसे चयन प्रक्रिया का हिस्सा बनाया गया.
उद्योग मंत्री नीतीश मिश्रा का कहना है, "जमीन का स्वामित्व पूरी तरह से बिहार सरकार के ऊर्जा विभाग के पास ही रहेगा. इसके लिए ई-टेंडर आमंत्रित किया गया था, जिसकी अंतिम तारीख 11 जुलाई 2025 थी. टेंडर की प्रक्रिया टैरिफ बेस्ट कंपीटिटिव बिडिंग (टीबीसीबी) के तहत संचालित की गई. अदाणी पावर ने सबसे कम दर 6.075 रुपये कोट कर इसे हासिल किया."
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उनके मुताबिक, कांग्रेस पार्टी नाहक ही भ्रम फैला रही है. पश्चिम बंगाल, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, असम व महाराष्ट्र जैसे कई राज्यों ने पहले इसी प्रणाली के तहत पावर प्लांट के लिए निविदा निकाल कर बिजली खरीद की प्रक्रिया अपनाई है.
पर्यावरणीय मुद्दे: पेड़ों की कटाई का मामला एनजीटी पहुंचा
'किसान चेतना व उत्थान समिति' की शिकायत पर यह मामला अब राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) में पहुंच चुका है. समिति के अध्यक्ष श्रवण सिंह राजपूत कहते हैं, "पावर प्लांट की प्रस्तावित जमीन पर 25-30 साल पुराने आम के लगभग 10 लाख पेड़ लगे हैं. बीते दिनों यहां हेलीपैड बनाने के लिए 50-60 पेड़ काट डाले गए थे."
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शिकायत में यह भी कहा गया है कि 20 किलोमीटर की परिधि में दो थर्मल पावर प्लांट होने से वायु प्रदूषण भी बढ़ता जा रहा है. जिन दो पावर प्लांटों की बात है, उनमें से एक भागलपुर जिले के कहलगांव में एनटीपीसी का है. और, दूसरा प्लांट पड़ोसी जिला गोड्डा में अदाणी पावर का है.
"जमीन सरकार को दी थी, कंपनी को नहीं"
सुदामा प्रसाद, 'अखिल भारतीय किसान मोर्चा' के महासचिव और सीपीआई (एमएल) से आरा के सांसद हैं. स्थानीय किसानों से मुलाकात के बाद उन्होंने कहा, "यह जमीन किसानों ने सरकार को दी थी, किसी प्राइवेट कंपनी को नहीं. यहां करीब 10 लाख आम के पेड़ काटने पड़ेंगे, जिनमें भारी संख्या में 25 साल पुराने पेड़ हैं."
सरकार का दावा कहता है कि भूमि अधिग्रहण के समय 10,055 पेड़ गिनती में शामिल किए गए थे. इनमें अधिकांश पेड़ 2010-11 के बाद लगाए गए. केवल पावर प्लांट एरिया (लगभग 300 एकड़) और कोल हैंडलिंग एरिया में ही कुछ पेड़ काटे जाएंगे.
इसके बदले 100 एकड़ में ग्रीन बेल्ट विकसित किया जाएगा, ताकि पर्यावरण में संतुलन बना रहे और लोकल ईकोसिस्टम को कोई नुकसान ना हो. वन विभाग के एक वरीय अधिकारी ने नाम ना छापने की शर्त पर कहा, "उतने एरिया में मुश्किल से 50,000 पेड़ होने चाहिए, वह भी बहुत हो गया. आरोप भले ही जो लगा दिए जाएं."
पीएम और सीएम के नाम कांग्रेस के सवाल
बिहार कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता राजेश राठौड़ ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में सवाल किया, "एक पेड़ मां के नाम का छलावा करने वाली बीजेपी यह बताए कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 10 लाख आम-लीची जैसे नकदी वृक्षों की कुर्बानी और देशभर में सबसे महंगी दर पर बिजली बिक्री की इजाजत किसके फायदे के लिए दे रहे हैं?"
राजेश राठौड़ ने आगे कहा, "नियम के अनुसार, पांच साल तक अधिग्रहित जमीन का इस्तेमाल ना होने पर जमीन मालिकों को वापस करने और फिर नई दर पर मुआवजा देने का प्रावधान है. फिर अदाणी पावर को जमीन देने के पीछे मंशा क्या है. एनटीपीसी जैसी सरकारी कंपनियों के रहते अदाणी पावर को 1,200 एकड़ जमीन क्यों और किसके इशारे पर दी जा रही है."
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इस विषय पर पत्रकार रवि रंजन बताते हैं, "बिहार औद्योगिक निवेश प्रोत्साहन पैकेज- 2025 में योग्य निवेशकों को एक रुपये के टोकन मनी पर जमीन देने की पेशकश की गई है. निवेश की राशि और रोजगार की संख्या के आधार पर मुफ्त जमीन देने का भी प्रावधान है. पेड़ों को लेकर देखिए अब एनजीटी का क्या निर्देश आता है. बिहार सरकार के जवाब के बाद ही सही संख्या का पता चल पाएगा."
मुआवजे की पारदर्शिता पर भी सवाल
पावर प्लांट के लिए ली गई जमीन के मुआवजा वितरण में भी अनियमितता का आरोप लगा है. मोहम्मद मोजाहिद, पीरपैंती प्रखंड के महेशराम पंचायत (अब नगर पंचायत) के पूर्व मुखिया हैं. उन्होंने बताया कि पावर प्लांट के लिए उनकी भी जमीन ली गई. मुआवजे के सवाल पर उन्होंने आरोप लगाया, "मुआवजा देने में तो हेराफेरी की ही गई है. कई मामले तो अदालत तक भी पहुंचे. साल 2011 में मेरी भी एक एकड़ 40 डिसमिल जमीन ली गई, जिसपर आम का बगीचा था. मुझे 32 लाख रुपये प्रति एकड़ का मुआवजा दिया गया. वहीं, 2013 में जिसकी जमीन ली गई, उसको 85 लाख रुपये तक के हिसाब से पैसा दिया गया. पेड़ का पैसा भी मुझे नहीं मिला. किसी-किसी को तो काफी कम पैसा दिया गया."
मो. मुजाहिद आगे कहते हैं, "हमलोगों ने यह समझकर जमीन दी थी कि एनटीपीसी पावर प्लांट बनाएगा. फिर हुआ कि सोलर प्लांट लगेगा और अब जमीन अदाणी को दे दी गई. इसका तो दुख है, सरकार यहां पावर प्लांट बनाती."
मुआवजा देने में अनियमितता को लेकर 'किसान चेतना एवं उत्थान समिति' ने पिछले दिनों मुख्यमंत्री को पत्र लिखा और पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच का आग्रह किया. इसमें एक प्लॉट में समान रकबा के लिए अलग-अलग हिस्सेदारों को अलग-अलग दर से भुगतान का आरोप लगाया गया था.
समिति ने "एक परियोजना, एक दर" के हिसाब से निर्माण के पहले भुगतान सुनिश्चित करने एवं अन्य आरोपों का जिक्र करते हुए जिला भू-अर्जन कार्यालय से भी पत्राचार किया था. हालांकि, जिला भू-अर्जन पदाधिकारी कार्यालय ने बिंदुवार जवाब देते हुए किसी भी तरह की अनियमितता से इंकार किया है.


