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महिला शोषण के आरोपी के सम्मान के पहले सोचें
23-Sep-2025 8:34 PM
महिला शोषण के आरोपी के सम्मान के पहले सोचें

-शालिनी श्रीनेत

तमाम उन मंच के संस्थापकों संरक्षकों से मेरा आग्रह है कि जब पता चल जाए कि किसी व्यक्ति पर किसी महिला द्वारा आरोप लगाया गया है, तो जब तक ये सिद्ध नहीं हो जाता कि वो निर्दोष है, तब तक उसे अपने मंच पर ना बुलाएं। इसके आपके मंच की गरिमा बढ़ेगी और आपका सम्मान भी।

इधर लगातार इस तरह चीजें देखने को मिलीं कि किसी लडक़ी ने जिस पुरुष पर आरोप लगाया है उसे सम्मानित किया गया, मंचों पर बुलाया गया, उसके पक्ष में सीनियर लेखकों द्वारा लिखा गया,किसी पत्रिका द्वारा संपादकीय छापा गया, प्रकाशकों द्वारा किताबें छापी गईं, एक्टिविटी पर वाहवाही होती रही... बचाव में कुछ स्वार्थी स्त्रियां भी उतरीं।

किसी संस्थान ने कहा- हमने आवश्यक कदम उठाए, हमारी जांच की और उसके बाद उठाए गये कदम से शिकायतकर्ता पूर्णतया संतुष्ट हैं, किसी ने कहा आरोप अभी सिद्ध नहीं हुए हैं, किसी ने कहा हमें नहीं मालूम सच क्या है, किसी ने नौकरी से निकाल दिया।

जरा सोचिए ये सब देख कर उन लड़कियों पर क्या गुजरती होगी, जिन लड़कियों को इन पुरुषों ने हरेस किया। पुरुष द्वारा चलाए जाने वाले मंच तो कर ही रहे है, जिसके संपादक स्त्रीवादी थे और अब स्त्री संभाल रही हैं, वो भी स्त्रियों का सम्मान नहीं कर पा रही हैं।

एक लडक़ी बहुत जद्दोजहद के बाद अपनी बात रख पाती है। अपने समाज की बनावट और बुनावट ऐसी है कि लड़कियों को चुप रहने की ही सलाह दी जाती है।

मायके में चाचा, भाई ,जीजा और पड़ोसी ने सेक्सुअल हैरेसमेंट किया, तो चुप करा दी गयी कि बात बाहर नहीं जानी चाहिए, नहीं तो शादी विवाह में दिक्कत आयेगी। कौन करेगा शादी ऐसी लडक़ी से। जैसे उस लडक़ी ने ही कुछ ग़लत किया हो।

ससुराल में ससुर, देवर, जेठ, पड़ोसी, बुआ जी के बेटे ने सेक्सुअल हैरेसमेंट किया तो भी चुप ही रहना है, घर की इज्जत की बात हैं कोई क्या कहेगा।

कार्यस्थल पर सहकर्मी-बॉस द्वारा सेक्सुअल हैरेसमेंट होता है और चुप करा दिया जाता है कि ऑफिस की बदनामी होगी।

कई बार लड़कियां खुद चुप रह जाती हैं। अपने घर के हालात देखते हुए,नौकरी के चले जाने के खतरे से डर कर। चुप रहना ही चुनती है, और इस चुप्पी का फायदा पुरुष समाज उठाता रहता है बिना ये सोचे कि किसी की आत्मा मर रही है धीरे-धीरे ।

कभी मायके में, कभी ससुराल में, कभी ऑफिस में कभी लिव-इन में, कभी सफऱ में तो कभी दोस्तियों में स्त्री की आत्मा छलनी की जाती रही है। और स्त्री इस डर से चुप रह जाती है कि कौन मानेगा मेरी बात, कौन खड़ा होगा मेरे साथ।

कहां कहां कैसे कैसे अपने को सही साबित कर पाऊंगी।

जब अपने ही नहीं समझते तो गैरों से क्या उम्मीद करे स्त्री।

पर मैं पढ़े-लिखे एक संस्थान चलाने वाले प्रबुद्ध लोगों से ये अपील, आग्रह और उम्मीद करती हूं कि स्त्रियों की गरिमा बनाये रखने में सहयोग करें। इधर कुछ मामले सामने आए जिसमें लड़कियां मुखर हुई पर संस्थान की तरफ उचित कार्रवाई नहीं हुई।


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