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शाहरुख खान के बेटे आर्यन की पहली सिरीज ने छेड़ी फिल्मी दुनिया में नेपोटिज़्म पर बहस
19-Sep-2025 9:45 PM
शाहरुख खान के बेटे आर्यन की पहली सिरीज  ने छेड़ी फिल्मी दुनिया में नेपोटिज़्म पर बहस

-वंदना

आर्यन ख़ान का डेब्यू अब हकीकत बन चुका है। हिंदी सिनेमा के सबसे बड़े सुपरस्टारों में से एक, शाहरुख खान के बेटे आर्यन ख़ान, बतौर निर्देशक नेटफ़्िलक्स पर 19 सितंबर को अपनी सिरीज ‘द बैड्स ऑफ बॉलीवुड’ लेकर आ रहे हैं।

इस शो का थीम बॉलीवुड और नेपोटिज़्म के इर्द-गिर्द घूमता है।

सिरीज में फिल्मी परिवार से आई हीरोइन कहती है- किसी की परछाई में रहना अपने आप में एक संघर्ष है। जिसके जवाब में बाहरी दुनिया से आया हीरो जवाब देता है कि पापा की परछाई से निकलो तो मालूम पड़ेगा कितनी धूप है बाहर।

पिछले कुछ सालों से हिंदी सिनेमा में नेपोटिज़्म शब्द बहुत चर्चित रहा है।

जब आर्यन बोले ‘पापा हैं न’

आर्यन जब सिरीज लॉन्च पर पहली दफा स्टेज पर आए थे तो उन्होंने शाहरुख खान का नाम लेने से गुरेज नहीं किया।

आर्यन ने खुल कर कहा, ‘पिछले कई दिनों से लगातार प्रैक्टिस किए जा रहा हूं। मैं इतना घबराया हुआ हूं कि मैंने टेलीप्रॉम्प्टर पर भी अपनी स्पीच लिखवा दी है और अगर यहां बिजली चली जाए तो मैं कागज पर अपनी स्पीच लिखकर भी लाया हूं। टॉर्च के साथ और तब भी अगर मुझसे गलती हो जाएज् तो पापा हैं ना!’

कुछ लोगों ने आर्यन के इस जिक्र में सुपरस्टार शाहरुख़ को ढूँढा तो कुछ ने कहा कि वह सुपरस्टार नहीं पिता शाहरुख की बात कर रहे थे।

तो क्या आर्यन खान को भी लोग सिफऱ् और सिफऱ् नेपोकिड के नजरिए से ही देखेंगे या उनके काम के चश्मे से?

फिल्म ट्रेड एनेलिस्ट गिरीश वानखेड़े बीबीसी से बातचीत में कहते हैं, ‘आर्यन खान ने एक रिस्की शो बनाया है। इसके लिए मैं उन्हें पूरे नंबर दूंगा। उनका पहला शो फि़ल्म इंडस्ट्री और नेपोटिज्म पर ही पैरोडी है। वो चाहते तो एक सुरक्षित रास्ता अपना सकते थे।’

‘बतौर एक्टर भी लॉन्च हो सकते थे। नेपोटिज्म की बहस तो चलती रहेगी। एक्टर का बच्चा एक्टर बनता है, ये स्वाभाविक है। ये सही है कि उन्हें प्लेटफ़ॉर्म मिल जाता है, लेकिन साबित तो ख़ुद को करना ही पड़ता है।’

अनन्या और सिद्धांत हुए थे आमने-सामने

दर्शकों में ही नहीं फि़ल्म इंडस्ट्री के अंदर भी नेपोटिज़्म को लेकर अलग-अलग राय है जो अपने आप में दिलचस्प है।

2022 में एक इंटरव्यू में फि़ल्मी संघर्ष को लेकर एक शो पर अभिनेत्री अनन्या पांडे ने कहा था कि उनके पिता और अभिनेता चंकी पांडे को कॉफ़ी विद करण जैसे शो पर कभी नहीं बुलाया गया। जिस पर अभिनेता सिद्धांत चतुर्वेदी का कहना था कि जहाँ हमारे सपने पूरे होते हैं, इनका स्ट्रग्ल शुरू होता है।

सिद्धांत का इशारा इस तरफ़ था कि जो लोग फि़ल्मी बैकग्राउंड से आते हैं, उनके लिए संघर्ष की परिभाषा बाहर से आए लोगों से बहुत अलग होती है।

नेपोटिज़्म है पर मेरे पास दूसरे प्रिवलेज भी हैं- स्वरा

अभिनेत्री स्वरा भास्कर भी मानती हैं कि फिल्म इंडस्ट्री में नेपोटिज़्म है।

बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा था, ‘ये सही है कि मुझे उस किस्म का लॉन्च नहीं मिला जो बड़े सितारों के बच्चों को मिलता है। अगर किसी स्टार के बच्चे को आगे पहुँचने में दो साल लगते हैं, वहाँ मुझे दस साल लग जाते हैं। लेकिन मेरे पास बहुत सारे दूसरे प्रिवलेज भी हैं जो शायद किसी छोटे कस्बे से आने वाली लडक़ी के पास न हों। हर इंडस्ट्री में लोग नेपोटिज़्म का शिकार होते हैं।’

गिरीश वानखेड़े के मुताबिक अगर आर्यन ख़ान जैसे लोगों के लिए उनके माता-पिता का सहारा है, तो ऐसे कितने ही स्टार किड्स हैं जो नहीं चल पाए क्योंकि असली कसौटी टैलेंट और दर्शकों की स्वीकार्यता होती है। आर्यन खान की पहली वेब सिरीज को ही लीजिए जिसमें एक तरफ मेन रोल में गैर-फिल्मी बैकग्राउंड वाले लक्ष्य और सहर हैं तो दूसरी ओर बॉबी देओल भी हैं।

धर्मेंद्र ने अपने बेटों सनी और बॉबी को बरसों पहले धूमधाम से लॉन्च किया था। सनी बेताब के बाद कामयाब होते गए लेकिन बॉबी शुरुआती सफलता के बाद ग़ायब हो गए।

बॉबी की सफलता का ताजा क्रम उनकी दूसरी पारी का कमाल है जो उन्हें रणबीर कपूर की एनिमल जैसी फिल्मों में मिली।

रणबीर का जिक्र आया है तो कपूर ख़ानदान को फस्र्ट फैमिली ऑफ हिंदी सिनेमा कहा जाता है। पृथ्वीराज कपूर की शुरू की हुई परंपरा को उनके बेटों राज कपूर, शशि कपूर और शम्मी कपूर और बाद में ऋषि कपूर, करिश्मा और करीना कपूर ने आगे बढ़ाया।

लेकिन इसी परिवार में राजीव कपूर की भी मिसाल है। यूँ तो राज कपूर ने अपने बेटे राजीव कपूर को भी हिट फि़ल्म राम तेरी गंगा मैली से बड़ा मंच दिया था, लेकिन कुछ फि़ल्मों के बाद राजीव कपूर कहां ग़ुम हो गए किसी को पता भी नहीं चला।

बरसों बाद लोगों को उनके गुजऱ जाने की ही ख़बर मिली।

अगर संजय दत्त, अनिल कपूर, आलिया भट्ट कामयाब रहे तो राज कुमार के बेटे पुरु राज कुमार, देव आनंद के बेटे सुनील आनंद, मनोज कुमार के बेटे कुणाल गोस्वामी, माला सिन्हा, हेमा मालिनी, सुनील शेट्टी के बच्चे भी हैं जिनकी फि़ल्में नहीं चल पाईं।

‘नेपोटिज़्म की क्रूर सच्चाई’

कुछ दिनों पहले करण जौहर का एक वीडियो आया था, जिसमें उन्होंने अपने बेटे को नेपोकिड लिखी टी-शर्ट पहनाई हुई थी।

वरिष्ठ फि़ल्म समीक्षक अजय ब्रह्मात्मज इस पर सवाल उठाते हुए कहते हैं, ‘नेपोटिज़्म की क्रूर सच्चाई को मज़ाक के ज़रिए इतना हल्का बना दो कि वह अपना अर्थ खो दे। फिल्म इंडस्ट्री के इनसाइडर यही कर रहे हैं। कभी अवॉर्ड शो में मजाक उड़ाते हैं, तो कभी बेशर्मों की तरह स्वीकार कर हंसते हैं। ताकतवर हमेशा फायदे में रहता है और नेपोकिड को यह ताकत मिल जाती है। पिछली पीढ़ी ने मेहनत की है तो उसका लाभ उनके वंशजों को मिले- ऐसे तर्क गलत प्रवृत्तियों को उचित ठहरा देते हैं।’

नेपोटिज़्म की बहस सुशांत सिंह की मौत के बाद ज़्यादा तेज हुई। जब निर्माता जीपी सिप्पी ने अपने बेटे रमेश सिप्पी को 70 के दशक में लॉन्च किया और बाद में उन्होंने शोले बनाई तो नेपोटिज़्म की बहस उठ खड़ी हुई हो, ऐसा याद नहीं पड़ता।

यहां तक कि जब साल 2000 में ऋतिक रोशन क्रेज़ बनकर उभरे तो भी ये शब्द कोई ख़ास सुनने में नहीं आया।

नवाज़ुद्दीन फैंस पर ही उठाते हैं सवाल

हाल के सालों में सबसे ज़्यादा बवाल इस शब्द को लेकर मचा 2017 में, जब कंगना रनौत ने करण जौहर के टीवी शो पर उन्हें फ्लैगबीयरर ऑफ नेपोटिज़्म कहा।

फि़ल्म अभिनेता मनोज बाजपेयी इसे बेकार की बहस मानते हैं।

एएनआई को हाल ही में दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा, ‘फिल्म इंडस्ट्री एक प्राइवेट एंटरप्राइज़ है। कोई शख्स या कोई निजी समूह फि़ल्मों में पैसा लगाता है। पैसा उनका है, वो जो भी करें। दिक्कत आती है जब फि़ल्म दिखाने वाले भेदभाव करते हैं। अगर किसी को 100 स्क्रीन दे रहे हो तो मुझे 25 स्क्रीन तो दो।

जो जितना पावरफुल होता है वो अपनी ताक़त को उसी हिसाब से दर्शाता है। ये खेल तो हर जगह होता है। फ़ेयरनेस की डिमांड सिफऱ् एक इंडस्ट्री से नहीं कर सकते।’

वहीं अभिनेता नवाज़ुद्दीन सिद्दक़ी इसका दारोमदार दर्शकों पर भी डालते हैं।

बीबीसी से बातचीत में नेपोटिज़्म पर उन्होंने कहा था, ‘आप ही लोग करते हो नेपोटिज़्म। फिल्म स्टार का बेटा या बेटी अगर एक्टर बनना चाहे तो उसके लिए वो मेहनत भी करते हैं। ऐसा नहीं है कि बिस्तर से सोकर आ गए एक्टिंग करने के लिए। जब कोई स्टार का बच्चा लॉन्च होता है तो उनकी फि़ल्म देखने तो आप लोग ही जाते हो। वो एक्टर तो अपना काम कर रहे हैं।’

ये बहस हॉलीवुड में भी ख़ूब होती है।

गॉडफादर फिल्म के निर्देशक फ्रांसिस फोर्ड कोपोला की बेटी और फिल्मकार सोफिय़ा कोपोला के बारे में वेबसाइट वाइस ने अपने लेख में कहा था- ‘क्लीयर कट केस ऑफ नेपोटिज़्म गॉन वाइल्ड ऑन स्टीरॉयड्स’ जबकि उनकी फिल्मों को ऑस्कर मिल चुके हैं।

आर्यन खान की सिरीज पर लौटें तो हैरत की बात नहीं कि अपनी पहली सिरीज के साथ-साथ आर्यन खान भी ट्रेंड कर रहे हैं और साथ ही नेपोटिज़्म भी।

सिरीज के ट्रेलर में एक डायलॉग है- बॉलीवुड सपनों का शहर। पर ये शहर सबका नहीं होता। सपनों की इस दुनिया में कुछ लोग हीरो के घर पैदा होते हैं और कुछ लोग... हीरो पैदा होते हैं।

उनकी अपनी ही सिरीज़ के इस डायलॉग की कसौटी पर अब आर्यन ख़ान को भी परखा जाएगा। (bbc.com/hindi)


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