विचार / लेख
चिंपैंजी हर दिन कम से कम एक ड्रिंक के बराबर अल्कोहल का उपभोग करते हैं. एक रिसर्च में यह बात सामने आई है. इस खोज से इंसानों में नशे के प्रति आकर्षण को समझने में मदद मिल सकती है.
डॉयचे वैले पर निखिल रंजन का लिखा-
चिंपैंजी जैसे वन्यजीवों को यह अल्कोहल पके और सड़े (फर्मेंटेड) फलों से मिलता है. यह रिसर्च अफ्रीका के जंगलों में की गई जहां चिंपैंजी रहते हैं. इस रिसर्च के नतीजों से उन सिद्धांतों को बल मिलता है जिसके मुताबिक इंसानों को अल्कोहल के स्वाद का उनके पूर्वजों यानी कपियों से पता चला था. सिर्फ स्वाद ही नहीं बल्कि जहरीले होने के बावजूद उन्हें पचाने की क्षमता भी शायद इन्हीं जीवों से होते हुए इंसानों तक पहुंची थी.
बीयर का एक पिंट रोजाना
रिसर्चरों ने उन फलों को भी जमा किया जिन्हें चिंपैंजी खाते हैं. इसके बाद उनमें अल्कोहल की मात्रा का पता लगाया गया. इन फलों में मौजूद चीनी के फर्मेंटेशन से अल्कोहल बनता है. रिसर्चर इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि इंसानों के पूर्वज और शुरुआती रिश्तेदार अल्कोहल का उपभोग रोजाना करते हैं. अल्कोहल की यह मात्रा कम नहीं है. बड़ी मात्रा में जिन फलों को चिंपैंजी खाते हैं उसके आधार पर रिसर्चरों का कहना है कि हर दिन करीब 14 ग्राम अल्कोहल की मात्रा उनके शरीर में जाती है.
उनके शरीर के आकार के हिसाब से देखा जाए तो कहा जा सकता है कि चिंपैंजी हर दिन एक पाइंट बीयर पी रहे हैं. साइंस एडवांसेज जर्नल में छपी रिसर्च रिपोर्ट के प्रमुख लेखक आलेक्से मारो का कहना है, "यह अल्कोहल की गैरमामूली मात्रा नहीं है, लेकिन यह बेहद हल्की और ज्यादातर भोजन से जुड़ी होती है."
"नशे में धुत्त बंदर"
मारो ने यह भी कहा, "हमने पहली बार वास्तव में हमारे सबसे करीबी जीवित रिश्तेदारों को शरीर के लिहाज से अल्कोहल की अहम मात्रा नियमित रूप से रोज उपभोग करते देखा है." करीब एक दशक पहले अमेरिकी जीवविज्ञानी रॉबर्ड डुडले ने "नशे में धुत्त" बंदर का सिद्धांत दिया था. नई रिपोर्ट उसी सिद्धांत का समर्थन करती है. रॉबर्ट डुडले नई रिसर्च रिपोर्ट के भी सहलेखक हैं.
इस सिद्धांत के अनुसार इंसानों ने अल्कोहल को पसंद करना और उसे पचाने की क्षमता हमारे पूर्वज कपियों से हासिल किया था जो रोजाना फल खाते थे और इस तरह से उनके शरीर में अल्कोहल जाता था. मारो का कहना है, "नशे में धुत्त बंदर वाले सिद्धांत की सच्चाई सामने आ रही है. इसका नाम दुर्भाग्यपूर्ण है. इसका बेहतर नाम होगा इवॉल्यूशनरी हैंगओवर."
अल्कोहल वाले फल चुनते चिंपैंजी
विशेषज्ञों ने इस सिद्धांत पर शुरू में संदेह जताया था. हालांकि हाल के वर्षों में इसमें लोगों की दिलचस्पी बढ़ी है. खासतौर से जब कुछ रिसर्चों ने दिखाया है कि प्राचीन वानर सड़े हुए फल खाते थे जिसमें उन्हें कुछ चुनिंदा मकरंद और अल्कोहल की अलग अलग मात्रा मिलती थी. वे खासतौर से ज्यादा अल्कोहल की मात्रा वाले फलों को चुनते थे.
जर्मनी के हनोवर में डार्टमाउथ कॉलेज में एंथ्रोपोलॉजी और इवॉल्यूशनरी बायोलॉजी के प्रोफेसर नाथानील डॉमिनी ने इस रिसर्च का स्वागत किया है. उन्होने यह भी कहा कि, "यह उष्णकटिबंधीय फलों में इथेनॉल की मौजूदगी पर चली आ रही बहस को खत्म कर देगा." हालांकि उन्होंने यह भी कहा है कि इस रिसर्च ने गैरमानव प्राचीन जीवों के लंबे समय तक कम मात्रा में इथेनॉल के संपर्क में आने की वजह से जीवविज्ञानी और व्यावहारिक नतीजों पर नए सवाल खड़े कर दिए हैं. इसके अलावा इस सवाल का जवाब भी नहीं मिला है कि क्या चिंपैंजी सक्रियता से ऐसे फलों की खोज करते हैं या फिर बस मिलने पर खा लेते हैं.


