विचार / लेख
सामान के बदले सामान का विनिमय सिस्टम एक बार फिर रूस में बढ़ गया है. प्रतिबंधों से बचने के लिए इसका इस्तेमाल हो रहा है. कंपनियां गेहूं के बदले चायनीज कार और पटसन के बीजों के बदले निर्माण सामग्री हासिल कर रही हैं.
डॉयचे वैले पर निखिल रंजन का लिखा-
प्राकृतिक संसाधनों के दुनिया के सबसे बड़े उत्पादक देश रुस ने तीन दशक पहले 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद पश्चिमी देशों के साथ आर्थिक संबंधों का सफर शुरू किया था.
आज भले ही रूस ने चीन और भारत के साथ संबंध मजबूत कर लिए हैं लेकिन अदलबदल वाली व्यवस्था का लौटना दिखा रहा है कि यूक्रेन युद्ध ने किस तरह से रूसी कारोबारी संबंधों पर असर डाला है.
अमेरिका, यूरोप और सहयोगी देशों ने रूस पर 25,000 से ज्यादा अलग अलग तरह के प्रतिबंध लगाए हैं. 2022 में यूक्रेन पर हमला करने और 2014 में क्रीमिया को अलग करने के बाद 2.2 ट्रिलियन डॉलर वाली रूसी अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हुआ है और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के लिए समर्थन घटा है. अमेरिका ने तो रूसी तेल खरीदने की वजह से भारत पर भी भारी आयात शुल्क लगा दिया है.
भारत और चीन रूसी तेल ना खरीदें तो क्या होगा
राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का कहना है कि रूसी अर्थव्यवस्था ने उम्मीदों से बेहतर प्रदर्शन किया है. यह पिछले दो सालों में जी7 देशों की तुलना में ज्यादा तेजी से आगे बढ़ी है, जबकि पश्चिमी देश इसके ढह जाने की भविष्यवाणी कर रहे थे. पुतिन ने कारोबारियों और अधिकारियों को आदेश दिया है कि वो हर तरीके से प्रतिबंधों का उल्लंघन करें.
रूसी अर्थव्यवस्था में तनाव के संकेत
हालांकि अर्थव्यवस्था पर तनाव के संकेत बढ़ते जा रहे हैं. रूसी सेंट्रल बैंक के मुताबिक देश की अर्थव्यवस्था पहले ही तकनीकी रूप से मंदी झेल रही है और साथ ही महंगाई की दर भी काफी ज्यादा है.
2022 में रूसी बैंकों को स्विफ्ट पेमेंट सिस्टम से बाहर करना और चीन के बैंकों को अमेरिका की धमकी ने दूसरे क्रम के प्रतिबंधों की आशंका पैदा की है. पेमेंट मार्केट से जुड़े एक सूत्र ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया, "चायनीज बैंकों को प्रतिबंधित बैंकों की सूची में डाले जाने का डर है इसलिए वे रूस से पैसा स्वीकार नहीं कर रहे हैं."
कैसे काम करता है सस्ते रूसी तेल का गणित?
यही डर विनिमय यानी अदल बदल वाली व्यवस्था के उभार के पीछे है जिसका पता लगाना काफी मुश्किल है. 2024 में रूस के अर्थव्यवस्था से जुड़े मंत्रालय ने 14 पन्ने का "विदेशी विनिमय लेनदेन गाइड" जारी किया. इसमें कारोबारियों को सलाह दी गई है कि प्रतिबंधों से बचने के लिए क्या तरीके अपनाए जाएं. यहां तक कि इसमें एक ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म बनाने का भी प्रस्ताव है जो अदल बदल के बाजार की तरह काम करेगा.
मंत्रालय के दस्तावेज में कहा गया है, "विदेशी व्यापार विनिमय विदेशी कंपनियों के साथ सामान और सेवाओं के लेन देन को बिना अंतरराष्ट्रीय भुगतान के संभव बनाएगा." इस तरह के भुगतानों में हाल तक बहुत ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी. हालांकि पिछले साल समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने खबर दी थी कि चीन की हाइनान लॉन्गपान ऑयलफील्ड टेक्नोलॉजी कंपनी मरीन इंजिनों के बदले में स्टील और एल्युमिनियम के अलॉय का लेन देन करने की फिराक में थी.
रूस पर लगाए गए नए प्रतिबंधों से ईयू-भारत संबंधों पर कितना असर होगा?
कंपनी ने इस बारे में पूछने पर जवाब नहीं दिया. रॉयटर्स ने आठ ऐसे सामानों के लेन देन का पता लगाया है. इसके लिए कारोबारी सूत्रों, कस्टम सेवाओं के सार्वजनिक बयानों और कंपनी के स्टेमेंट को आधार बनाया गया है. इससे पहले इस तरह के लेन देन की खबर नहीं थी.
रॉयटर्स इस लेन देन का रूसी अर्थव्यस्था के लिए कुल कीमत या मात्रा का पता नहीं लगा सका लेकिन कारोबार से जुड़े तीन सूत्रों ने कहा कि यह व्यवस्था अब आम होती जा रही है.
रूसी और एशियाई उद्योगपतियों के एक संगठन के सचिव माक्सिम स्पास्की का कहना है, "विनिमय का विकास डॉलर को हटाने, प्रतिबधों के दबाव और सदस्यों में तरलता की समस्या का संकेत है." स्पास्की का कहना है कि विनिमय का तंत्र और आगे बढ़ने के आसार हैं.
रूसी कस्टम सेवा ने इस बात की पुष्टि की है कि अलग अलग देशों के साथ कई चीजों के लिए विनिमय किया जा रहा है. हालांकि बाजार के कुल लेन देन के सामने अब भी यह बहुत कम ही है.
रूस का विदेशी व्यापार मुनाफा जनवरी से जुलाई के बीच एक साल पहले की तुलना में करीब 14 फीसदी गिर कर 77.2 अरब डॉलर पर आ गया. ये आंकड़े फेडरल कस्टम सर्विसेज के हैं. इसी दौर में निर्यात 11.5 अरब डॉलर घट कर 232.6 अरब डॉलर पर आ गया जबकि आयात 11.5 अरब डॉलर बढ़ कर 155.4 अरब डॉलर पर जा पहुंचा.
अनाज के बदले कार
रॉयटर्स को जिन लेन देन का पता चला है उसमें एक है रूसी गेहूं के बदले चीनी कारें. एक सूत्र के मुताबिक डील में शामिल चीनी कार कंपनी ने कार के लिए भुगतान अनाज से करने के लिए कहा.
चीनी साझीदार ने युआन देकर चीन में खार खरीदे. इसी तरह रूसी साझीदार ने रूबल देकर अनाज खरीदे और फिर गेहूं के बदले कारों की लेनदेन की गई. अभी यह पता नहीं चल सका कि कितनी कारों के बदले कितना अनाज दिया गया. इसी तरह के दो और लेन देन में रूसी पटसन के बीजों के बदले निर्माण सामग्री दी गई. अनुमान है कि इसकी कीमत करीब 100,000 अमेरिकी डॉलर थी. चीन रूसी पटसन के बीजों का बड़ा आयातक है, वहां इनका इस्तेमाल औद्योगक प्रक्रियाओं और पोषण से जुड़े सामान बनाने में होता है.
इसी तरह एक लेनदेन में चीन से मशीनों के बदले उस तक धातुएं पहचाई गईं. चीनी सेनाओं को कच्चे माल से बदला गया और रूसी आयातक कंपनी ने अल्युमिनयम से इसके बदले भुगतान किया. इस तरह का सौदा पाकिस्तान से भी हुआ था. ऐसे लेनदेन ने रूस को प्रतिबंधों के दौर में पश्चिमी देशों का सामान भी लाने में मदद की है.
विनिमय से पहले हो चुकी है समस्या
1990 के देशक में सोवियत संघ के विघटन के बाद जब वहां अदल बदल के जरिए व्यापार शुरू किया गया तो इससे वहां की अर्थव्यवस्था में काफी उथल पुथल हुई. तब बिजली से लेकर, आटा, चीनी, जूते जैसे चीजों के लिए यह तंत्र बनाया गया. हालांकि इसमें कीमत तय करने की मुश्किल थी और इसका कुछ लोगों ने भरपूर फायदा उठाया.
उस वक्त देश के पास तैयार मुद्रा नहीं थी इसके अलावा भारी महंगाई और बार बार मुद्रा के अवमूल्यन ने इस व्यवस्था की हालत बिगाड़ दी. अब मुद्रा की तो कमी नहीं है लेकिन विनिमय तंत्र इसलिए लाया जा रहा है ताकि रूस और चीन पर पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के डर का दबाव कम किया जा सके. रूस पश्चिमी देशों को अवैध तो चीन उन्हें भेदभावपूर्ण बताता है.


