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पीएम मोदी के चीन दौरे और ट्रंप के बदले रुख पर अमेरिकी मीडिया कर रहा है आगाह
02-Sep-2025 10:03 PM
पीएम मोदी के चीन दौरे और ट्रंप के बदले रुख पर अमेरिकी मीडिया कर रहा है आगाह

-रजनीश कुमार

भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अपनी किताब ‘द इंडिया वे’ में लिखा है कि चीन बिना कोई युद्ध लड़े कई युद्ध जीत चुका है और अमेरिका बिना कोई युद्ध जीते कई युद्ध लड़ता रहा है।

जयशंकर अमेरिका और चीन को बख़ूबी समझते हैं लेकिन मुश्किल घड़ी में शायद आप समझ रखकर भी निर्णायक नहीं हो पाते हैं। ट्रंप के टैरिफ के बाद भारत के सामने ऐसी ही स्थिति है।

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चीन दौरे पर अमेरिका में भी काफ़ी बहस हो रही है। अमेरिका में पीएम मोदी के दौरे को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से खऱाब हो रहे रिश्ते के आईने में देखा जा रहा है। केवल देखा ही नहीं जा रहा है बल्कि अमेरिकी मीडिया भारत को आगाह भी कर रहा है।

दरअसल, अमेरिका ने भारत पर 50 फ़ीसदी टैरिफ़ लगाया है। अमेरिका का यह क़दम भारत की अर्थव्यवस्था के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं है।

अमेरिका ने पिछले साल भारत से 87.3 अरब डॉलर की क़ीमत का आयात किया था। यह भारत के कुल निर्यात का कऱीब 18 फ़ीसदी है। अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि ट्रंप के इस रुख़ से भारत का व्यापार घाटा बढ़ेगा और साथ ही यह इस साल भारत की जीडीपी को 0.5 प्रतिशत कम कर सकता है।

ऐसे में मोदी का चीन दौरा काफ़ी अहम हो जाता है।

मुंबई स्थित शोध संस्थान एक्सकेडीआर फोरम के सह-संस्थापक अजय शाह ने प्रोजेक्ट सिंडिकेट में लिखा है, ‘ट्रंप के टैरिफ़ से भारत की अर्थव्यवस्था अस्त-व्यस्त हो सकती है। लेकिन इससे भी बड़ा ख़तरा यह है कि भारत की लंबी अवधि की रणनीतिक दिशा प्रभावित हो सकती है।’

ट्रंप के कारण भारत का बदला रुख़?

पीएम मोदी के चीन दौरे और शी जिनपिंग के साथ व्लादिमीर पुतिन से मुलाक़ात पर अमेरिकी प्रशासन की ओर से भारत की आलोचना थमी नहीं है। ट्रंप के सलाहकार पीटर नवारो आए दिन भारत को निशाने पर लेते रहते हैं।

रविवार को नवारो ने फॉक्स न्यूज़ से बातचीत में कहा, ‘मोदी महान नेता हैं लेकिन मैं यह समझ नहीं पा रहा हूँ कि वह पुतिन और शी जिनपिंग से कऱीबी क्यों बढ़ा रहे हैं। वह भी तब जब भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है।’

अमेरिकी मीडिया आउटलेट ब्लूमबर्ग ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है, ''चीन और भारत को ट्रंप के ट्रेड वॉर ने साथ आने की कोशिश को तेज़ कर दिया है। चीन और भारत के बीच 3,488 किलोमीटर सरहद लगती है लेकिन कोई स्वीकार्य सीमा रेखा नहीं है। दोनों देशों में सीमा विवाद है और ये आपस में उलझते रहते हैं।’

पीएम मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग की रविवार को चीन के तियानजिन में मुलाक़ात हुई थी। तियानजिन में ही एससीओ समिट चल रहा है।

शी जिनपिंग ने पीएम मोदी से मुलाक़ात में कहा था, ‘अंतरराष्ट्रीय हालात अस्थिर हैं। ऐसे में भारत और चीन के लिए यही उचित होगा कि दोनों ऐसे दोस्त बनें, जो अच्छे पड़ोसी के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखें। ऐसे साझेदार बनें जो एक दूसरे की सफलता में सहायक बनें।’

ब्लूमबर्ग से थिंक टैंक यूरेशिया ग्रुप में चीन और पूर्वोत्तर एशिया के वरिष्ठ विश्लेषक जर्मी चान ने कहा, ‘सीमा से जुड़े मुद्दों को छोड़ दें तो चीन और भारत कई क्षेत्रों में संबंध गहरा कर सकते हैं। दोनों देशों के बीच तनाव कहीं गया नहीं है। दोनों देशों के बीच पारस्परिक संदेह रहेगा। मोदी और शी जिनपिंग की बातचीत से रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता ख़त्म नहीं होने जा रही है।’

शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइज़ेशन (एससीओ) ने अपने बयान में जून 2025 में ईरान पर इसराइल और अमेरिकी हमले की निंदा की है। दूसरी तरफ़ इसी साल जून में भारत ने ईरान पर इसराइली हमले की निंदा वाले एससीओ के बयान से ख़ुद को अलग कर लिया था। ज़ाहिर है कि भारत के इस क़दम को भी ट्रंप के टैरिफ़ से जोड़ा जाएगा।

दक्षिण एशिया की राजनीति पर गहरी नजऱ रखने वाले विश्लेषक माइकल कुगलमैन मानते हैं कि मोदी के चीन दौरे से अमेरिका और भारत के संबंध बिखर नहीं जाएंगे।

भारत को सतर्क रहने की सलाह

कुगलमैन ने एक्स पर लिखा है, ‘मोदी सात साल बाद चीन गए हैं और इससे अमेरिका-भारत के संबंध तबाह नहीं होंगे। यह चीन के साथ तनाव कम करने की पिछले एक साल की कोशिश का परिणाम है। हाल के महीनों में अमेरिका-भारत के बीच तनाव के कारण चीन से संबंध सुधारने की प्रेरणा बढ़ी है।’

जर्मन मीडिया में ऐसी रिपोर्ट छपी थी कि ट्रंप ने मोदी को कई बार फोन किया लेकिन भारतीय प्रधानमंत्री ने बात नहीं की।

जेम्स क्रैबट्री अमेरिकी पत्रिका फॉरेन पॉलिसी के कॉलमनिस्ट हैं। जेम्स ने 27 अगस्त को फॉरेन पॉलिसी में 'भारत को क्यों चीन और रूस के झांसे में नहीं आना चाहिए' शीर्षक से एक आर्टिकल लिखा था।

जेम्स ने अपने लेख में लिखा है, ‘संबंधों में कड़वाहट जब आती है, तब एक पक्ष फोन उठाने से इनकार कर देता है। जर्मन मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, भारत के प्रधानमंत्री ने हाल ही में ऐसा ही किया था। मोदी ने ट्रंप से फ़ोन पर बात नहीं की। अमेरिका भारत को चीन के ख़िलाफ़ एक साझेदार के रूप में देखता है, उसके ख़िलाफ़ ट्रंप ने 50 फ़ीसदी टैरिफ़ लगा दिया। अमेरिका के अचानक इस व्यवहार से भारत स्वाभाविक रूप से नाराज़ हुआ और नई विदेश नीति के विकल्प तलाशने की शुरुआत कर दी।’

जेम्स ने लिखा है, ‘मोदी और ट्रंप के बीच अनबन का फ़ायदा उठाने के लिए पुतिन और शी जिनपिंग भारत को रिझाने की कोशिश करेंगे। लेकिन भारत इस मामले में सतर्क होगा। भारत की विदेश नीति कई शक्तियों के साथ संतुलनवादी रही है। भारत के नज़रिए से यह समझदारी भरी और लंबी अवधि के लिए सोच है, भले अमेरिका के साथ संबंध तनावपूर्ण हैं। चीन और रूस के साथ हाथ मिलाना एक ऐसी चाल में फँसना है, जो जल्दी ही उलटा पड़ सकता है।’

जेम्स क्रैबट्री का मानना है कि ट्रंप भारत के प्रति पिछले दो दशक की नीतियां बदल रहे हैं। जेम्स कहते हैं, ''पिछले दो दशकों से अमेरिका की सोच रही है कि भारत का उभार अमेरिका की लंबी अवधि के हित के हक़ में है। ट्रंप ने इस नीति को झटके में पीछे छोड़ दिया है और तत्काल फ़ायदे के लिए ट्रेड डील पर ज़ोर दे रहे हैं। यह नीति ख़ुद को नुक़सान पहुँचाने वाली है क्योंकि चीन का सामना करने के लिए भारत की भूमिका अहम है।’

जेम्स मानते हैं कि भारत को इस मुश्किल घड़ी में अपने कंधे पर कुछ जि़म्मेदारी लेनी चाहिए।

ट्रंप ने बदली नीति

जेम्स ने लिखा है, ‘भारत मल्टी-अलाइनमेंट यानी सभी गुटों के साथ रहने की नीति पर चलता है। यानी पश्चिम के साझेदारों के साथ भी अच्छे संबंध रखने हैं और साथ में पुतिन से भी रिश्तों में भरोसा बनाए रखना है। भारत ईरान से भी दूर नहीं होना चाहता है। बाइडन प्रशासन में अमेरिका ने भारत की इस नीति को बर्दाश्त किया और उसकी रणनीतिक अहमियत को स्वीकार किया था। लेकिन ट्रंप ने इस नीति को छोड़ दिया और भारत के खिलाफ रूस से तेल खऱीदने के बदले में 25 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ लगा दिया।’

‘भारत को लगता था कि वह ट्रंप को भी मैनेज कर लेगा। लेकिन मोदी की टीम को देर से ही सही, उसे ट्रंप के मामले में अपने ग़लत आकलन का अहसास हो गया है। भारत को अमेरिका के कऱीब रखना मोदी के लिए भारत के भीतर राजनीतिक रूप से जोखिम भरा हो सकता है। भारत की विदेश नीति पारंपरिक रूप से गुटनिरपेक्ष रही है। ट्रंप ने जिस तरीक़े से संबंधों को एक झटके में ख़त्म किया, वह भारत के भीतर राजनीतिक रूप से हंगामा खड़ा करने वाला रहा है।’

अमेरिकी विश्लेषकों का मानना है कि चीन और रूस को अमेरिका के विकल्प के तौर पर देखना, एक बड़ी भूल होगी। भारत को निवेश की ज़रूरत है और वो भी अमीर के साथ तकनीकी रूप से एडवांस मुल्क से। चीन को भारत के भीतर एक चुनौती के रूप में देखा जाता है और अमेरिका भी चीन को बड़ी चुनौती के रूप में देखता है। भारत और रूस के संबंधों में निरंतरता है लेकिन भारत की रक्षा ज़रूरतें भी रूस केंद्रित नहीं रहीं। भारत रूस से सस्ता तेल ले रहा है लेकिन आधुनिक तकनीक और निवेश के लिए रूस से बाहर देखना होगा।

न्यूयॉर्क टाइम्स ने भी लिखा है कि भारत को चीन के विकल्प के तौर पर देखा जा रहा था, जिसे ट्रंप ने खत्म कर दिया है।

न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है, ‘भारत ने कड़ी मेहनत कर चीनी फैक्ट्रियों के विकल्प के तौर पर ख़ुद को पेश किया था। बड़े कारोबारी भी चाइना प्लस की नीति के तहत भारत को विकल्प के रूप में देख रहे थे। लेकिन अब चीज़ें बदल गई हैं। पीएम मोदी ख़ुद सात साल बाद चीन गए। ट्रंप के टैरिफ़ के कारण सप्लाई चेन में परिवर्तन की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। अमेरिकी आयातकों के लिए भारत अब कम आकर्षक रह गया है। कंपनियां कम टैरिफ़ वाले देशों की ओर रुख़ कर सकती हैं। ख़ास कर वियतनाम या मेक्सिको।’

न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा है, ‘भारत दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की कोशिश कर रहा है। फिलहाल भारत पाँचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था है और जापान को पीछे छोडऩे की ओर अग्रसर है। अगर अमेरिका ने मदद नहीं की तो भारत के पास चीन के कऱीब जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।’

(bbc.com/hindi)


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