विचार / लेख

ऑनलाइन बेटिंग ऐप्स हुनर हैं या जुआ, नए कानून के बाद छिड़ी बहस
28-Aug-2025 10:37 PM
ऑनलाइन बेटिंग ऐप्स हुनर हैं या जुआ, नए कानून के बाद छिड़ी बहस

-अभीक देव-निकिता यादव

कार्तिक श्रीनिवास (बदला हुआ नाम) आज भी ऑनलाइन बेटिंग का जिक्र होते ही सिहर उठते हैं।

तेजी से पैसा कमाने के रोमांच के तौर पर शुरू हुई ये आदत अब लत में बदल गई। इस लत ने 26 वर्षीय कार्तिक की जमा-पूँजी, सुकून और लगभग उनका भविष्य छीन लिया।

2019 से 2024 के बीच कार्तिक ने 15 लाख रुपये से ज्य़ादा गंवा दिए। इसमें उनकी तीन साल की कमाई, बचत और दोस्तों और परिवार से लिए गए कर्ज भी शामिल थे।

वो कहते हैं, ‘मैंने सब कुछ आज़माया-ऐप्स, लोकल बुकी, अंतरराष्ट्रीय प्लेटफॉर्म। मैं बुरी तरह फंस गया था।’

2024 तक आते-आते कार्तिक कर्ज में पूरी तरह डूब चुके थे। कार्तिक की कहानी भारत के कभी फलते-फूलते रियल मनी गेम्स इंडस्ट्री के स्याह पहलू को सामने लाती है।

यहां खिलाड़ी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर पोकर, फैंटेसी स्पोर्ट्स और दूसरे खेलों पर अपने पैसे दांव पर लगाते हैं।

कुछ दिन पहले भारत ने इन खेलों पर पूरी तरह पाबंदी लगाने वाला क़ानून पास किया।

सरकार का कहना है कि ये खेल नशे की तरह लत लगाने वाले साबित हो रहे थे। लोग आर्थिक संकट में फंसते जा रहे थे।

सरकार का दावा, जुए से बचाने के लिए उठाया ये कदम

नए क़ानून के तहत ऐसी ऐप्स को बढ़ावा देना या उन्हें लोगों के लिए उपलब्ध कराना अब अपराध माना जाएगा।

इस प्रावधान का उल्लंघन करने पर दोषी पाए गए व्यक्ति को तीन साल तक की जेल और एक करोड़ रुपए तक का जुर्माना हो सकता है।

अगर कोई इन गेमिंग ऐप्स का प्रचार करता है तो उसे दो साल की सज़ा और पांच करोड़ रुपए तक का जुर्माना लग सकता है।

हालांकि इस कानून में खिलाडिय़ों को अपराधी नहीं बल्कि पीडि़त माना गया है।

सरकार का कहना है कि यह कदम लोगों को जुए से बचाने के लिए उठाया गया है।

ढाई लाख लोगों के रोजगार पर संकट

केंद्रीय आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने संसद में दावा किया कि ऑनलाइन मनी गेम्स से 45 करोड़ भारतीय प्रभावित हुए हैं।

उनके मुताबिक, लोगों को दो लाख करोड़ रुपए से ज़्यादा का नुक़सान हुआ है, कई लोग डिप्रेशन में चले गए और कुछ ने आत्महत्या तक कर ली। हालांकि इन आंकड़ों के स्रोत स्पष्ट नहीं हैं।

वहीं इंडस्ट्री से जुड़े लोगों का कहना है कि यह फैसला जल्दबाज़ी में लिया गया है, जिससे एक तेजी से बढ़ते सेक्टर को करारी चोट लगी है। उनका तर्क है कि इसका सबसे ज़्यादा नुक़सान उन्हीं लोगों को होगा, जिन्हें सरकार बचाने की कोशिश कर रही है।

पाबंदी से पहले भारत में लगभग 400 आरएमजी (रियल मनी गेम्स) स्टार्टअप काम कर रहे थे। इनसे सालाना लगभग 2.3 अरब डॉलर टैक्स मिलता था और ढाई लाख से ज़्यादा रोजग़ार जुड़े थे। इनमें से एक ड्रीम11, भारत की क्रिकेट टीम का स्पॉन्सर भी थी।

यह पहला केंद्रीय क़ानून है जिसने ऑनलाइन बेटिंग प्लेटफॉर्म पर रोक लगाई है। हालांकि इससे पहले ओडिशा, असम, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना जैसे राज्य अपने स्तर पर पाबंदी लगा चुके थे।

2023 में केंद्र सरकार ने ऑनलाइन गेमिंग पर 28 फ़ीसदी टैक्स भी लगाया था।

इसके बावजूद यह इंडस्ट्री तेज़ी से बढ़ रही थी। विदेशी निवेश और विज्ञापनों की वजह से इसमें अच्छी ग्रोथ थी।

मुंबई में गेमिंग से जुड़े मुकदमे लडऩे वाले वकील जय सेता ने बीबीसी से कहा कि यह पाबंदी निवेशकों के लिए ‘भारी झटका’ है, जिन्होंने इन स्टार्टअप्स में करोड़ों डॉलर लगाए थे।

उनका कहना है कि इंडस्ट्री में रेग्युलेशन की ज़रूरत थी, लेकिन क़ानून बिना चर्चा और तैयारी के लागू कर दिया गया।

इस फैसले से सबसे ज़्यादा नुकसान ड्रीम11 (आठ अरब डॉलर की कंपनी) और माई11सर्कल (2.5 अरब डॉलर की कंपनी) जैसी कंपनियों को हुआ है।

ड्रीम11 कभी भारतीय क्रिकेट टीम की मुख्य स्पॉन्सर थी और माई11सर्कल इंडियन प्रीमियर लीग से जुड़ी थी।

दोनों कंपनियों ने अपने रियल मनी गेमिंग ऑपरेशन बंद कर दिए हैं।

इंडस्ट्री ने कहा, बिना सोचे-समझे लगाई गई पाबंदी

इंडस्ट्री का कहना है कि नए क़ानून ने ‘हुनर के खेल’ और ‘कि़स्मत की बाज़ी’ में कोई फर्क नहीं किया है और दोनों को ही बैन कर दिया गया है।

हुनर के खेल में फैसला लेने की क्षमता, प्रतिभा और ज्ञान की जरूरत होती है, जबकि किस्मत का खेल सिर्फ तकदीर पर निर्भर करता है।

भारत के कई उच्च न्यायालय पहले ही फैसला दे चुके हैं कि ऑनलाइन मनी गेम्स स्किल गेम्स हैं और जुए की कैटेगरी में नहीं आते।

कर्नाटक और तमिलनाडु में अदालतों ने इसी आधार पर राज्य स्तर पर लगाई गई पाबंदी हटा दी थी।

2022 में सुप्रीम कोर्ट ने भी पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के उस फैसले को बरकरार रखा था, जिसमें फैंटेसी स्पोर्ट्स को ‘स्किल का खेल’ बताया गया था।

ड्रीम11 में पॉलिसी कम्युनिकेशन का काम करने वालीं स्मृति सिंह चंद्रा ने लिंक्डइन पर लिखा कि यह पाबंदी ‘बिना तैयारी, बिना समझ और आर्थिक हकीकतों की परवाह किए बिना’ लागू कर दी गई।

वकील जय सेता का कहना है कि कंपनियों ने अदालतों के इन्हीं फैसलों के आधार पर अपना क़ारोबार खड़ा किया था।

 

विदेशी जुआ वेबसाइटों के चंगुल में फंस सकते हैं लोग

भारतीय गेमिंग फेडरेशनों का कहना है कि भारतीय प्लेटफ़ॉर्म्स बंद होने से करोड़ों खिलाड़ी अवैध नेटवर्क, विदेशी जुआ वेबसाइटों और अस्थायी ऑपरेटरों की ओर चले जाएंगे। लेकिन वहां न तो सुरक्षा होगी और न ही उपभोक्ता के हितों का ध्यान रखा जाएगा।

कई भारतीय शहरों में पहले से ही लोकल बुकी के ज़रिए सट्टा लगाया जाता है, जो अक्सर ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से ज़्यादा शोषण वाला खेल होता है।

बेटिंग के लिए अक्सर व्हाट्सऐप या टेलीग्राम ग्रुप का इस्तेमाल होता है, जहाँ सैकड़ों लोगों के साथ लिंक शेयर किए जाते हैं। वहीं विदेशी गेमिंग ऐप्स अब भी वीपीएन के जरिए आसानी से पहुंच में हैं।

सरकार का कहना है कि रियल मनी गेम्स भी ‘अपारदर्शी एल्गोरिदम’ पर चलते हैं, जिनमें खिलाडिय़ों के जीतने की संभावना लगभग नहीं के बराबर होती है। कई विशेषज्ञ इस बात से सहमत हैं।

वीडियो गेमिंग कंपनी एनकोर गेम्स के सह-संस्थापक विशाल गोंडल ने बीबीसी को बताया कि ऑनलाइन रमी जैसे खेलों में खिलाड़ी अक्सर अनजाने में बॉट्स के खिलाफ खेलते हैं। इन बॉट्स के एल्गोरिदम ऐसे बनाए जाते हैं कि आखऱिी में हमेशा कंपनी को फ़ायदा हो।

गोंडल कहते हैं, ‘ये खेल दरअसल जुए की ही तरह हैं। इन्हें कौशल का खेल कहना ऐसा है जैसे शराब को फ़र्मेंटेडेड जूस कह देना।’

लेकिन कार्तिक श्रीनिवास जैसे लोगों के लिए यह फ़ैसला अचानक और चौंकाने वाला है। वो अब बेटिंग नहीं करते, लेकिन कहते हैं कि जुए के नुक़सान को लेकर जागरूकता फैलाना पाबंदी लगाने से कहीं ज़्यादा असरदार होता।

वो कहते हैं, ‘कम से कम इन ऐप्स में कुछ जवाबदेही तो थी- इनके बिना हालात और बिगड़ सकते हैं।’ (bbc.com/hindi)


अन्य पोस्ट