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शशि थरूर का ‘कांग्रेस हाईकमान से मतभेद’ वाला बयान किस ओर इशारा कर रहा है?
21-Jun-2025 7:58 PM
शशि थरूर का ‘कांग्रेस हाईकमान से मतभेद’ वाला बयान किस ओर इशारा कर रहा है?

-प्रियंका झा

कांग्रेस सांसद शशि थरूर के पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से मतभेद स्वीकार करने के बाद, उनके और कांग्रेस के बीच बढ़ती दूरी को लेकर एक बार फिर से चर्चा शुरू हो गई है।

इससे पहले भी कांग्रेस के कुछ नेताओं की नाराजगी तब सामने आई थी, जब केंद्र सरकार ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर भारत का पक्ष रखने वाले प्रतिनिधिमंडल की अगुवाई शशि थरूर को सौंपी थी, जबकि कांग्रेस पार्टी ने उनके नाम की सिफ़ारिश नहीं की थी।

शशि थरूर और कांग्रेस पार्टी के बीच टकराव का जिक्र इसलिए भी तेज़ हो गया है क्योंकि उन्होंने ये कहा है कि केरल की निलांबुर विधानसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव में प्रचार के लिए पार्टी ने उन्हें नहीं बुलाया।

हालांकि, शशि थरूर ने ये साफ़ नहीं किया कि उनके मतभेद राष्ट्रीय स्तर के नेतृत्व से हैं या फिर राज्य स्तर पर। तिरुवनंतपुरम के सांसद थरूर ने ये संकेत ज़रूर दिए कि वो निलांबुर उपचुनाव के नतीजों के बाद इन मतभेदों पर बात करेंगे।

शशि थरूर ने क्या कहा?

शशि थरूर केरल के निलांबुर में हो रहे उपचुनाव से जुड़े सवालों पर जवाब दे रहे थे।

उन्होंने मलयालम में कहा, ‘आप जानते हैं कि मौजूदा कांग्रेस नेतृत्व के साथ मेरे कुछ मतभेद रहे हैं। कई बातें सार्वजनिक हैं। लेकिन ये मेरे लिए बेहतर होगा कि मैं सीधे पार्टी के अंदर ही बात करूं। आज इस तरह की चर्चा का दिन नहीं है। मेरे दोस्त और यहां (निलांबुर) के प्रत्याशी को चुनाव जीतने देते हैं।’

मेरे पार्टी कार्यकर्ताओं को इसके लिए हर कोशिश करने देते हैं। मैं उनके कामों का अच्छा नतीजा देखना चाहता हूं। कुछ चीजें हैं जिन्हें कोई छिपा नहीं सकता लेकिन मैं उनके बारे में आज बातचीत नहीं करना चाहता हूं। मैं उनसे सीधे मिलकर इस बारे में बात करना चाहता हूं। जब समय आएगा, मैं ये करूंगा लेकिन चुनाव हो जाने देते हैं।’

निलांबुर विधानसभा सीट पर उपचुनाव के लिए कैंपेन में शामिल न होने के सवाल पर उन्होंने कहा, ‘अभी तक तो मुझसे किसी ने संपर्क नहीं किया है। लेकिन कोई बात नहीं। जब समय आएगा, जब जरूरत होगी तो हम एक-दूसरे से बात कर लेंगे।’

उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस के मूल्य और कांग्रेस के कार्यकर्ता मेरे काफी करीब हैं। मैं अपने पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ 16 सालों से काम कर रहा हूं। मैंने उनकी प्रतिभा, आत्मविश्वास और आदर्शवाद देखा है। मुझे कांग्रेस के कार्यकर्ताओं और पार्टी के बीच प्रेम और दोस्ती पर कोई शक नहीं है। ये हमेशा बरकरार रहेगा।’

मोदी सरकार के रुख़ की तारीफ के बाद पार्टी से बढ़े मतभेद

पहलगाम हमले के बाद केंद्र की मोदी सरकार के रुख़ का समर्थन करने के बाद शशि थरूर अपनी ही पार्टी के कई नेताओं के निशाने पर आ गए थे।

हमले के बाद केंद्र सरकार ने पाकिस्तान के खिलाफ भारत की स्थिति को वैश्विक मंचों पर रखने के लिए कुल सात प्रतिनिधिमंडल बनाए थे। इनमें से एक की अगुवाई शशि थरूर को सौंपी गई।

हालांकि, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने ये आरोप लगाया कि सरकार ने कांग्रेस से चर्चा किए बगैर शशि थरूर का नाम सूची में शामिल किया। उन्होंने इसके बाद एक सोशल मीडिया पोस्ट किया, ‘कांग्रेस में होना और कांग्रेस का होना, दोनों में ज़मीन-आसमान का फर्क है।’

इसे शशि थरूर पर परोक्ष निशाना माना गया।

वहीं, शशि थरूर ने सरकार की ओर से मिली जिम्मेदारी को स्वीकार करते हुए एक्स पर लिखा कि ‘सरकार द्वारा मुझे 5 प्रमुख देशों में जाने वाले प्रतिनिधि मंडल का नेतृत्व करने का आमंत्रण मिला, इसके लिए मैं सम्मानित महसूस कर रहा हूं। जब बात राष्ट्रीय हित की हो और मेरी जरूरत हो, तो मैं पीछे नहीं हटूंगा।’

सात प्रतिनिधिमंडल में कुल 59 सदस्य थे, जिनमें कांग्रेस के अमर सिंह, सलमान खुर्शीद, शशि थरूर, आनंद शर्मा और मनीष तिवारी शामिल थे। हालांकि, पार्टी ने जिन सांसदों के नाम सरकार को सौंपे थे उनमें आनंद शर्मा, गौरव गोगोई, सैयद नासिर हुसैन, अमरिंदर राजा सिंह वारिंग थे।

प्रतिनिधिमंडल के अगुवा के तौर पर शशि थरूर ने कई मौकों पर 'ऑपरेशन सिंदूर' की तारीफ़ की। उनके एक के बाद एक कई बयानों को देखते हुए कांग्रेस के पूर्व सांसद उदित राज ने थरूर को बीजेपी का 'सुपर प्रवक्ता' बता दिया था।

हालांकि, शशि थरूर और उन पर होने वाली टिप्पणियों के बारे में कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की ओर से अभी तक कोई बयान नहीं आया है और न ही उनके ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई ही देखने को मिली है। मगर ये माना गया कि जबसे शशि थरूर का नाम सर्वदलीय प्रतिनिधि मंडल के लिए चुना गया, तब से पार्टी में उनको लेकर बेचैनी बढ़ी है।

कांग्रेस को कऱीब से जानने वाले वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई शशि थरूर के बयानों और उस पर कांग्रेस के आलाकमान की चुप्पी को शह-मात का खेल बताते हैं।

वो इस पर कहते हैं, ‘शशि थरूर की उम्र 69 साल हो चुकी है। वो अपने राजनीतिक अस्तित्व को खोज रहे हैं। अपने आप को वो केरल के मुख्यमंत्री के रूप में प्रस्तुत करना चाहते हैं। केरल में अगले साल चुनाव है लेकिन उसके बाद जो चुनाव होगा, तब उनकी उम्र 75 के करीब होगी। इसलिए वो अभी राजनीतिक दांव खेलना चाह रहे हैं और उन्हें पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर पेश नहीं किया जा रहा। यही मूल कारण है उनकी नाराजगी का।’

कांग्रेस बनाम शशि थरूर

केरल की 140 सीटों वाली विधानसभा के लिए अगले साल मई से पहले चुनाव होने हैं।

वहां कांग्रेस की अगुवाई वाले यूडीएफ़ (यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट) और वाम दलों वाले एलडीएफ़ (लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट) के बीच मुक़ाबला माना जा रहा है।

शशि थरूर संयुक्त राष्ट्र में अहम पदों पर रहे और जब वो भारत की सक्रिय राजनीति में आए तब से अब तक वह पांच बार सांसद बने हैं।

वह साल 2009 से ही केरल की तिरुवनंतपुरम सीट से लोकसभा चुनाव जीतते आए हैं।

वो मनमोहन सिंह की सरकार में केंद्रीय राज्य मंत्री रहे।

ये पहली बार नहीं जब कांग्रेस में शशि थरूर शीर्ष नेतृत्व के सामने खड़े दिख रहे हैं।

अगस्त 2020 में कांग्रेस के 23 नेताओं ने सोनिया गांधी को चि_ी लिखकर पार्टी में संगठनात्मक बदलाव की मांग की थी। इनमें से एक शशि थरूर भी थे।

साल 2022 में जब कांग्रेस में अध्यक्ष की तलाश शुरू हुई तो आखऱि में मल्लिकार्जुन खडग़े के सामने शशि थरूर ने ही चुनौती पेश की थी। मल्लिकार्जुन खडग़े गांधी परिवार की पसंद थे।

अब कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े हैं लेकिन जानकार शशि थरूर के बयान को राहुल गांधी की ओर इशारा मान रहे हैं।

रशीद किदवई कहते हैं, ‘कांग्रेस में इस समय मल्लिकार्जुन खडग़े अध्यक्ष हैं लेकिन जो विरोध होता है, वो राहुल गांधी का है। राहुल गांधी से कांग्रेस के सीनियर लीडर पूरी तरह संतुष्ट नहीं हैं। राहुल गांधी लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं। वो शशि थरूर को उपनेता बना सकते थे, लेकिन उन्हें कोई भूमिका नहीं दी गई। इसलिए जो पार्टी के अंदरूनी झगड़े की बात है, वो शशि थरूर और राहुल गांधी के बारे में ही कही जा सकती है। क्योंकि केसी वेणुगोपाल की तमाम ताकत राहुल गांधी की वजह से है।’

वह कहते हैं, ‘शशि थरूर कांग्रेस के अध्यक्ष का चुनाव लड़े लेकिन मल्लिकार्जुन खडग़े एक तरह से कांग्रेस के अधिकृत उम्मीदवार थे। नेहरू-गांधी परिवार ने उनका समर्थन किया। इसलिए शशि थरूर को केवल 12-13 फ़ीसदी वोट मिले। मगर शशि थरूर अब अपने जौहर दिखाना चाहते हैं।’

क्या कांग्रेस से चूक हुई है?

उदित राज की ओर से ख़ुद को बीजेपी का सुपर प्रवक्ता बताए जाने पर भी शशि थरूर ने प्रतिक्रिया दी। उन्होंने इसे ‘गलतफ़हमी’ करार दिया।

जब उनसे पूछा गया कि क्या वो कांग्रेस पार्टी छोड़ देंगे तो थरूर ने कहा, ‘मैं कहीं नहीं जा रहा। मैं कांग्रेस पार्टी का सदस्य हूं। पार्टी को ये तय करने देते हैं कि वो मेरे बारे में क्या सोचती है।’

मगर उदित राज के बयान के बाद पार्टी के किसी बड़े नेता ने शशि थरूर के समर्थन में टिप्पणी नहीं की।

वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी ने कुछ दिन पहले इंडियन एक्सप्रेस के लिए एक लेख में लिखा था कि कांग्रेस को इस बात का श्रेय लेना चाहिए कि उनकी पार्टी के सबसे अनुभवी और सधे अंदाज़ में अपनी बात रखने वाले नेता को केंद्र सरकार के प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा बनाया गया।

उन्होंने लिखा, ‘शशि थरूर, सलमान खुर्शीद और मनीष तिवारी पूर्व मंत्री रहे हैं और अमर सिंह एक अनुभवी आईएस अधिकारी रहे हैं। इन्हें तेज़ी से बदले वैश्विक परिदृश्य में जटिल मुद्दों की बारीक समझ है। इन लोगों को प्रतिनिधिमंडल में शामिल करने से कांग्रेस को ये दावा करने का मौका मिलता है कि आज भी देश की ये सबसे पुरानी पार्टी राज-काज यानी गवर्नेंस का तरीका बेहतर से जानती है और दूसरी पार्टियों को भी संकट की स्थिति में कांग्रेस की ओर देखना पड़ता है।’

रशीद किदवई का भी कुछ यही मानना है लेकिन वह शशि थरूर की भूमिका पर भी रोशनी डालते हैं।

वो कहते हैं ‘राजनीतिक दलों में ताली दोनों हाथ से बजती है। क्या शशि थरूर ने प्रतिनिधिमंडल में जाने से पहले पार्टी की सहमति ली, या उन्होंने पार्टी को इसका श्रेय दिया। बातें दोनों ही ओर से कही जा रही हैं।’

उनका कहना है कि कांग्रेस के पास भी शशि थरूर के ख़िलाफ़ कहने के लिए कुछ नहीं है। थरूर ने जो देश के बाहर भी मोदी सरकार की सराहना वाले बयान दिए हैं, उन्हें कांग्रेस अनुशासनात्मक कार्रवाई के तहत नहीं ला सकती। इसीलिए कांग्रेस ने अधिकृत तौर पर इस पर चुप्पी साधी हुई है।

उनका कहना है, ‘ये जोर-आजमाइश वहां तक जाएगी, जहां शशि थरूर चाहेंगे कि कांग्रेस केरल में उनकी भूमिका तय करे और पार्टी ऐसा माहौल बनाने की कोशिश करेगी कि किसी भी सूरत में थरूर को जि़म्मेदारी न मिले।’

हालांकि, वो कहते हैं कि शशि थरूर के लिए बीजेपी जाना आसान नहीं है। केरल में बीजेपी की जमीन नहीं है और शशि थरूर के पास अब उतना समय नहीं है कि वो इसके लिए इंतजार करें। वहीं, गुलाम नबी आज़ाद और कैप्टन अमरिंदर सिंह जैसे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भी बीजेपी के साथ जा चुके हैं लेकिन इससे उनके हाथ कुछ नहीं लगा।

मगर शशि थरूर के पक्ष में फिलहाल राष्ट्रीय भावनाएं हैं। ऐसे में कांग्रेस भी उन पर एक्शन लेने का जोख़िम नहीं उठाएगी।

रशीद किदवई कहते हैं, ‘थरूर पर किसी तरह की अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाती है तो इसे न केवल मीडिया में बल्कि कांग्रेस समर्थक भी इसे अच्छी तरह से नहीं लेंगे। इसलिए कांग्रेस आलाकमान चुपचाप निष्क्रिय बैठा है।’ (bbc.com/hindi)


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