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जयशंकर ने की मुत्ताकी से बात, क्या तालिबान की पाकिस्तान से बढ़ रही हैं दूरियां
16-May-2025 8:53 PM
जयशंकर ने की मुत्ताकी से बात, क्या तालिबान की पाकिस्तान से बढ़ रही हैं दूरियां

-संदीप राय

भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने गुरुवार को अफगानिस्तान के कार्यकारी विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी से फोन पर बात की।

यह पहली बार है कि दोनों देशों के विदेश मंत्रियों ने बातचीत के बारे में सार्वजनिक तौर पर बयान जारी किया है।

एस जयशंकर ने फोन कॉल के दौरान, पहलगाम में हुए चरमपंथी हमले को लेकर मुत्ताकी की ओर से की गई निंदा की सराहना की।

भारत ने अभी तक तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी है। भारत काबुल में एक समावेशी सरकार के गठन की वक़ालत करता रहा है।

बीते समय में तालिबान और पाकिस्तान के बीच संबंध खऱाब होते गए हैं।

पाकिस्तान अपने यहां मौजूद लाखों अफग़़ान शरणार्थियों को वापस भेज रहा है। इसका अफग़़ानिस्तान विरोध करता रहा है।

इसके अलावा दोनों देशों के बीच सीमा-विवाद भी रह रह कर बड़ा मुद्दा बनता रहा है। ऐसे में क्या भारत तालिबान को मान्यता दिए बगैर, अफगानिस्तान से अपने संबंध सुधारना चाह रहा है?

हालांकि हाल के महीनों में भारत और तालिबान के बीच संपर्क बढ़ा है। जनवरी में भारत के विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने दुबई में आमिर खान मुत्ताकी से मुलाक़ात की थी।

ताजा फोन कॉल की जानकारी एस जयशंकर ने अपने एक्स अकाउंट पर दी है।

दोनों देशों की ओर से क्या कहा गया

गुरुवार को एस जयशंकर ने एक्स पर लिखा, ‘कार्यकारी अफगान विदेश मंत्री मौलवी आमिर ख़ान मुत्ताकी से आज शाम अच्छी बातचीत हुई। हम पहलगाम आतंकी हमले की उनकी निंदा की सराहना करते हैं।’

‘उन्होंने झूठी और निराधार रिपोर्टों के माध्यम से भारत और अफगानिस्तान के बीच अविश्वास पैदा करने की हाल की कोशिशों को दृढ़ता से खारिज किया। मैंने इसका स्वागत किया।’

एस जयशंकर ने आगे कहा, ‘बातचीत में अफगान लोगों के साथ हमारी पारंपरिक दोस्ती और उनके विकास की जरूरतों के प्रति लगातार समर्थन का जिक्र किया गया। सहयोग को आगे ले जाने के तरीकों और साधनों पर चर्चा की गई।’

अफग़़ानिस्तान के विदेश मंत्रालय की ओर से दी गई जानकारी में कहा गया, ‘रिपब्लिक ऑफ अफगानिस्तान के विदेश मंत्री मौलवी आमिर खान मुत्ताकी और रिपब्लिक ऑफ इंडिया के विदेश मंत्री जयशंकर के बीच फोन पर बातचीत हुई। यह बातचीत द्विपक्षीय संबंधों, व्यापार और कूटनीतिक रिश्ते को मजबूत करने पर केंद्रित थी।’

मुंबई में अफगान कांसुलेट की ओर से जारी बयान के अनुसार, ‘विदेश मंत्री मुत्ताकी ने भारत को एक महत्वपूर्ण क्षेत्रीय देश बताया और अफगानिस्तान-भारत संबंधों की ऐतिहासिक प्रकृति का जिक्र किया। उन्होंने इस संबंध के और मज़बूत होने की उम्मीद जताई। उन्होंने संतुलित विदेश नीति और सभी देशों के साथ रचनात्मक संबंधों के अवसर तलाशने की अफगानिस्तान की प्रतिबद्धता को भी दोहराया।’

बयान के मुताबिक़, ‘इस बातचीत में मुत्ताकी ने अफगान व्यापारियों और मरीजों के लिए वीजा जारी करने में सहूलियत देने और भारत की जेलों में बंद अफगान कैदियों की रिहाई और उनकी वापसी की अपील की। जयशंकर ने दोनों देशों के बीच राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्र में सहयोग की अहमियत को रेखांकित किया।’

इस बयान में ये भी कहा गया है, ‘जयशंकर ने अफगान कैदियों के मुद्दे पर तुरंत ध्यान देने का आश्वासन दिया और वीज़ा प्रक्रिया को आसान बनाने का वादा किया।’

पाकिस्तान के हालिया दावे पर विवाद

पहलगाम हमले के बाद सात मई को तडक़े भारत ने पाकिस्तान में 9 जगहों पर हवाई हमले किए थे।

दोनों देशों के बीच शुरू हुई इस सैन्य झड़प के दौरान पाकिस्तान ने दावा किया था भारतीय मिसाइल हमले की जद में अफगान का इलाका भी आया था। तालिबान के रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता इनायत खोवाराजम ने इस दावे का खंडन किया।

भारत के विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने भी इस दावे को पूरी तरह बेबुनियाद बताते हुए कहा, ‘अफगान अपने असली दोस्तों और दुश्मनों के बारे में जानते हैं।’

उन्होंने कहा, ‘अफगान जनता को ये बताने की जरूरत नहीं है कि किस देश ने पिछले डेढ़ साल में कई अफगान नागरिकों और अफगानिस्तान में आधारभूत ढांचे को निशाना बनाया है।’

तालिबान के दूसरे दौर में भारत के साथ संबंध

अगस्त, 2021 में अफगानिस्तान की सत्ता पर तालिबान के दोबारा कब्ज़े को भारत के लिए कूटनीतिक और रणनीतिक झटके के रूप में देखा गया था।

ऐसा लग रहा था कि भारत ने अफगानिस्तान में जो अरबों डॉलर के निवेश किए हैं, उन पर पानी फिर जाएगा।

भारत ने अफगानिस्तान में 500 से अधिक परियोजनाओं पर 3 अरब डॉलर से अधिक का निवेश किया है, जिसमें सडक़ें, बिजली, बांध और अस्पताल तक शामिल हैं।

भारत ने अफगान सैन्य अधिकारियों को प्रशिक्षित किया, हजारों छात्रों को छात्रवृत्ति दी और एक नए संसद भवन का निर्माण कराया।

हालांकि अफगानिस्तान में भारत के पूर्व राजदूत रहे जयंत प्रसाद ने बीते जनवरी में बीबीसी संवाददाता सौतिक बिस्वास को बताया था कि ‘पिछले तीन सालों से भारत ने विदेश सेवा के एक राजनयिक के ज़रिए तालिबान के साथ संपर्क बना रखा है।’

दो साल तक भारत की राजधानी दिल्ली में अशरफ गनी सरकार द्वारा नियुक्त राजदूत फरीद मामुन्दजई ही अफगान दूतावास की जिम्मेदारी निभाते रहे लेकिन अक्तूबर 2023 में ये कहते हुए दूतावास ने काम करना बंद कर दिया कि उसे भारत सरकार की ओर से समर्थन नहीं मिल रहा।

काबुल में सत्ता परिवर्तन के बाद ही दिल्ली में अफग़़ान दूतावास और मुंबई, हैदराबाद में अफगान वाणिज्य दूतावास के बीच तल्ख़ी आ गई थी।

कहा जा रहा था कि इस दूतावास के जरिए तालिबान सरकार भारत से बात नहीं कर रही थी, जबकि वाणिज्य दूतावासों का तालिबान सरकार का समर्थन था। इसलिए दूतावास के कामकाज का बंद होना भारत सरकार के रुख़ में बदलाव का पहला संकेत था।

इसके बाद आठ जनवरी 2025 को भारत के विदेश सचिव विक्रम मिसरी और अफगान विदेश मंत्री मुत्ताकी के बीच दुबई में बातचीत हुई। ये दोनों देशों के बीच की सबसे उच्चस्तरीय वार्ताएं थीं।

अफगानिस्तान के विदेश मंत्रालय के बयान के अनुसार, इस मुलाक़ात में ईरान के चाबहार पोर्ट के ज़रिए भारत के साथ व्यापार बढ़ाने पर बात हुई।

भारत ईरान में चाबहार पोर्ट बना रहा है ताकि पाकिस्तान के कराची और ग्वादर पोर्ट को बाइपास कर अफगानिस्तान के साथ ईरान और मध्य एशिया से कारोबार किया जा सके।

पाकिस्तान और अफगानिस्तान के तल्ख होते रिश्ते

अफगानिस्तान में तत्कालीन सोवियत संघ की सेना के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान तालिबान का अहम सहयोगी रहा। लेकिन हाल के सालों में तालिबान के साथ पाकिस्तान के रिश्ते तल्ख़ हुए हैं।

तालिबान की सत्ता में दोबारा वापसी से पाकिस्तान को उम्मीद थी कि तहरीक-ए तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) पर लगाम लगेगी। टीटीपी को पाकिस्तानी तालिबान भी कहा जाता है।

टीपीपी अफगानिस्तान से सटे पाकिस्तान के पख्तून बहुल इलाक़ों में सक्रिय है।

भारत में पाकिस्तान के पूर्व उच्चायुक्त अब्दुल बासित के अनुसार, ‘हाल के दिनों में पाकिस्तान में आतंकवादी हमले बढ़े हैं और पाकिस्तान सरकार टीटीपी के खिलाफ कार्रवाई कर रही है लेकिन उसकी सुरक्षित पनाहगाह अफगानिस्तान में है।’

भारत और तालिबान के बीच जनवरी 2025 की बातचीत से कुछ दिन पहले, पाकिस्तान ने पूर्वी अफगानिस्तान में हवाई हमले किए थे। तालिबान सरकार के मुताबिक़ इन हमलों में दर्जनों लोग मारे गए थे। इससे दोनों देशों के बीच तनाव और बढ़ गया। इसके अलावा, दोनों देशों के बीच सीमा विवाद रिश्ते को और जटिल बनाता है। बीते कुछ महीनों से पाकिस्तान बिना वैध दस्तावेज वाले अफगान नागरिकों को सामूहिक रूप से निकाल रहा है।

तालिबान अधिकारियों का कहना है कि आने वाले महीनों में कऱीब 20 लाख लोगों को पड़ोसी पाकिस्तान से निकाला जाना। तोरखम बॉर्डर क्रॉसिंग से हर दिन 700 से 800 परिवार अफगानिस्तान भेजे जा रहे हैं।

यूएनएचसीआर के मुताबिक, पाकिस्तान में करीब 35 लाख अफगान नागरिक रह रहे हैं। इनमें वो सात लाख लोग भी शामिल हैं जो 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद पाकिस्तान पलायन कर गए थे।

अफगानिस्तान -पाकिस्तान में डूरंड लाइन विवाद

पाकिस्तान को अफगानिस्तान से अलग करने वाली सीमा को डूरंड लाइन कहा जाता है। लेकिन अफगानिस्तान इस सीमा रेखा को स्वीकार नहीं करता है।

पाकिस्तान इसे डूरंड लाइन न कह कर, अंतरराष्ट्रीय सीमा कहता है। उसका कहना है कि इस बॉर्डर को अंतरराष्ट्रीय मान्यता हासिल है।

ब्रिटिश सरकार ने तत्कालीन भारत के उत्तर-पश्चिमी हिस्सों पर नियंत्रण मज़बूत करने के लिए 1893 में अफगानिस्तान के साथ 2640 किलोमीटर लंबी सीमा रेखा खींची थी।

ये समझौता ब्रिटिश इंडिया के तत्कालीन विदेश सचिव सर मॉर्टिमर डूरंड और अमीर अब्दुर रहमान खान के बीच काबुल में हुआ था।

लेकिन अफग़़ानिस्तान पर जो चाहे राज करे, डूरंड लाइन पर सबकी सहमति नहीं है। कोई अफगान इसे अंतरराष्ट्रीय सीमा नहीं मानता।

जबकि पाकिस्तान इस सीमा पर बाड़ लगाने का काम कर रहा है। 2022 में तालिबान सरकार ने डूरंड रेखा को चुनौती दी थी और तालिबान लड़ाकों ने कई जगहों से बाड़ को उखाड़ फेंका था।

भारत और अफगानिस्तान क्यों करीब आना चाहते हैं?

प्रोफेसर हर्ष वी पंत नई दिल्ली स्थित ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के अध्ययन और विदेश नीति विभाग के उपाध्यक्ष हैं।

बीबीसी से उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान की तालिबान सरकार आर्थिक संकटों से जूझ रही है और तमाम गतिरोधों के बावजूद उसे भारत ने अफगानिस्तान को मानवीय सहायता देना जारी रखे हुए है। पहलगाम हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच व्यापार बंद है और अफगानिस्तान को जाने वाली मदद भी प्रभावित हुई है।

वह कहते हैं, ‘अफगानिस्तान के लिए पाकिस्तान फिलहाल भारत से व्यापारिक संबंध बनाए रखने में एकमात्र रास्ता है।’

वो कहते हैं, ‘भारत ईरान के चाबहार पोर्ट के ज़रिए मध्य एशिया में व्यापारिक संबंध बनाना चाहता है। इस पोर्ट से अफगानिस्तान, बिना पाकिस्तान के ही भारत और बाकी दुनिया से व्यापारिक संबंध स्थापित कर सकता है।’उनके मुताबिक, ‘ऐसा नहीं कि दोबारा सत्ता में आने के बाद भारत के साथ तालिबान के संबंध पूरी तरह कट गए थे। बल्कि बैक चैनल से बातचीत जारी थी। रिश्ते सुधरना दोनों देशों की ज़रूरत है और रिश्तों में आ रही गर्मज़ोशी इसी बात का संकेत है।’ (bbc.com/hindi)


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