विचार / लेख

-विश्व दीपक
पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में भारत ने 7 मई को ऑपरेशन सिंदूर लॉन्च किया. 8 मई को ब्रिटिश अखबार ‘द डेली टेलीग्राफ’ ने एक रिपोर्ट छापी जिसका शीर्षक था - How China Helped Pakistan shot down Indian Fighters Jets यानि किस तरह चीन की मदद से पाकिस्तान ने भारत के लड़ाकू विमानों को मार गिराया. मनोहर कहानियां शैली में लिखी गई इस रोमांचक रिपोर्ट में यह साबित किया गया है कि
1. किस तरह चीन की तकनीक की मदद से पाकिस्तान ने भारत के लड़ाकू विमानों को मार गिराया
2. किस तरह चीन अब हथियारों के वैश्विक बाजार में धमक के साथ दाखिल हो चुका है और अब वह अमरीका/पश्चिमी देशों को पीछे धकेल करके दुनिया का दादा नंबर वन बनने की राह पर है।
मैं कोई डिफेंस एक्सपर्ट नहीं लेकिन यह कॉमन सेंस की बात है कि डॉग फाइट में लड़ाकू विमान गिरते हैं। जहां तक मेरी जानकारी है एक राफेल गिरा है। कॉम्बैट सिचुएशन में ऐसा होता है।
चूंकि पाकिस्तान चीन का क्लाइंट स्टेट है, चीनी हथियारों का सबसे बड़ा खरीददार है इसलिए पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ चीनी मिसाइल इस्तेमाल की। आगे भी करेगा। इसमें भी कोई हैरानी की बात नहीं।
हैरानी की बात यह है कि अंग्रेजी में प्रकाशित इस रिपोर्ट का हिंदी अनुवाद कराया गया और उसका व्यापक प्रचार प्रसार किया गया। इस मनोहर कहानीनुमा रिपोर्ट को हर व्हाट्सएप तक पहुंचाया गया। कौन लोग थे जो इसका प्रचार कर रहे थे? सीजफायर के बाद तो इस रिपोर्ट को गॉस्पेल ट्रुथ की तरह प्रचारित किया गया।
जिन्हें ग्लोबल मीडिया का ककहरा भी पता है वो जानते हैं कि ब्रिटेन का ‘द डेली टेलीग्राफ’ चीनी प्रोपेगेंडा फैलाने के लिए बेइंतहा बदनाम है।
लड़ाई शुरू होने के ठीक दूसरे दिन जिस तरह के लोमहर्षक विवरण के साथ यह रिपोर्ट छापी गई उससे साबित होता है कि यह रिपोर्ट चीनी डिफेंस लॉबी की तरफ से लिखवाई गई थी। इसमें न तो भारत का पक्ष है, न राफेल, मिग, सुखोई बनाने वाली कंपनियों का।
रिपोर्टर मेम्फिस बार्कर जो इस्लामाबाद में रह चुके हैं, उन्होंने दूसरा पक्ष जानने की कोई कोशिश की – ऐसा इस रिपोर्ट को पढक़र समझ नहीं आता।
मानता हूं कि भारत सरकार इस बारे में कोई कमेंट नहीं करती लेकिन दसॉ एविएशन, मिग, सुखोई आदि का पक्ष लेना चाहिए था।
इसके बिना यह रिपोर्ट डिफेंस डीलर का लिखा हुआ एडवर्टोरियल प्रतीत होती है। यकीन न हो तो डिफेंस का कोई भी एडवर्टोरियल निकाल कर पढ़ लीजिए।
यह कोई इकलौती घटना नहीं है।
‘द डेली टेलीग्राफ’ ने सालों तक तक पैसा लेकर ‘चाइना वॉच’ नाम का सप्लीमेंट छापा है ताकि ब्रिटेन और पश्चिमी देशों में चीन की छवि सुधारी जा सके। जब मामला ब्रिटेन में चीन के बढ़ते दखल और राष्ट्रीय सुरक्षा की सीमा को छूने लगा तब दबाव में ‘टेलीग्राफ’ को चीन की दलाली बंद करनी पड़ी। चीनी प्रोपेगेंडा करने के बदले में ‘द डेली टेलीग्राफ’ चीन से हर साल 7 लाख 50 हज़ार पाउंड लेता था। यह सब मैं नहीं कह रहा। ‘द गार्डियन’ की रिपोर्ट बताती है।
कोविड महामारी के दौरान भी जब चीन पर सवाल उठ रहे थे तब भी इस अखबार ने चीन के पक्ष में अभियान चलाया था। विश्वसनीयता के पैमाने पर ब्रिटेन की जनता के बीच टेलीग्राफ की रैंकिंग बीबीसी, गार्डियन, इंडिपेंडेंट, टाइम्स से काफी पीछे मानी जाती है।
पक्षपात और प्रोपेगेंडा इस अखबार की सोच में शामिल है। कंजर्वेटिव पार्टी को लेकर यह अखबार इतना आग्रही है कि लेबर पार्टी के लोग इसे ‘टोरीग्राफ’ बोलते हैं। जिन्होंने ‘द क्राउन’ सीरीज देखी होगी उन्हें याद होगा।
इस अखबार की निष्पक्षता और प्रतिबद्धता का आलम यह है कि चीन के हाथों बिकने से पहले यह यूएई के सुल्तान के हाथों औपचारिक तौर पर बिकने के लिये तैयार था। यह सिर्फ दो साल पुरानी यानि 2023 की बात है।
उस वक्त भी ब्रिटिश सरकार को हस्तक्षेप कर डील रुकवानी पड़ी थी। राष्ट्रीय सुरक्षा और प्रेस की आज़ादी के मामले में यूएई के खराब रिकॉर्ड का हवाला देकर ब्रिटिश सरकार ने तब हस्तक्षेप किया था। सोचिए, अगर यूएई से डील हो गई होती तो यह अख़बार सुल्तानशाही के गुण गा रहा होता। इस्लामिक कट्टरपंथ का बचाव कर रहा होता। यह अखबार मेरी निगाह में पहली बार इसी वजह से आया था।
‘द डेली टेलीग्राफ’ एक केस स्टडी है प्रोपगंडा और पत्रकारिता के इतिहास में। वॉर रिपोर्टिंग को मनोहर कहानी में बदलने के लिए भी इस अखबार को याद रखा जाएगा।
यह लिखने के पीछे मेरा मकसद सिर्फ इतना है कि खबर-प्रोपेगेंडा में फर्क क्या है – यह समझना चाहिए। दूसरा यह कि तार्किकता और बुद्धि को गिरवी नहीं करना है। किसी भी कीमत पर। डाउन एवरीथिंग – कार्ल मार्क्स ने कहा था।