विचार / लेख
-आर.के.जैन
करीब 2 साल के आपातकाल के बाद क्करू इंदिरा गांधी ने 1977 में आम चुनाव कराए। इंदिरा गांधी को सत्ता से हटाने के लिए जल्दबाजी में एक हुए विपक्षी नेताओं वाले जनता पार्टी गठबंधन को कुल 345 सीटें मिली थीं। देश में पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार बनने जा रही थी।
जनता पार्टी गठबंधन मे उस समय तीन बडे नेता प्रधानमंत्री बनने की दौड़ मे थे। बाबू जगजीवन राम तथा चौधरी चरण सिंह को मात देकर मोरारजी देसाई ने 24 मार्च 1977 को देश के चौथे प्रधानमंत्री के रूप मे शपथ ली थी ।
जब मोरारजी ने इंटरनेशनल मीडिया से कहा- मैं अपना मूत्र पीता हूँ-
मोरारजी देसाई ने स्वमूत्र आंदोलन चलाया था। इसका मतलब था कि वे अपना मूत्र पीते थे। उनका दावा था कि इसे पीने से वे बेहद सेहतमंद हैं। जून 1978 में मोरारजी अमेरिका यात्रा पर क्करू के तौर पर गए थे। यात्रा के दौरान अमेरिका के वीकली न्यूज पेपर ‘60 मिनट्स’ के पत्रकार डैन राथर ने एक इंटरव्यू लिया था।
राथर ने पूछा कि आप 82 की उम्र इतना सेहतमंद कैसे रहते हैं। तब मोरारजी ने कहा था कि वे फलों और सब्जियों के रस, ताजा और प्राकृतिक दूध, सादा दही, शहद, कच्चे मेवे, पांच लौंग लेते हैं। इसके बाद उन्होंने बताया कि वे रोज करीब 100 ग्राम अपना ही मूत्र पीते हैं।
ये सुनते ही रिपोर्टर ने कहा- ‘यक! क्या आप अपना मूत्र पीते हैं? यह सबसे गंदी बात है, जो मैंने आज तक नहीं सुनी।’ मोरारजी ने कोई रिएक्शन नहीं दिया, बल्कि उन्होंने कहा कि खुद का मूत्र पीना एक नेचर थेरेपी है।
उन्होंने तर्क दिया कि यदि आप जानवरों को देखेंगे तो वे भी खुद का मूत्र पीते हैं और सेहतमंद रहते हैं। हिंदू दर्शन में... गाय के मूत्र को पवित्र माना गया है और हर अनुष्ठान में इसका प्रयोग किया जाता है। लोगों को इसे अवश्य पीना चाहिए।
उन्होंने कहा कि अमेरिकी वैज्ञानिक दिल की समस्याओं के लिए मूत्र अर्क तैयार कर हैं। आप दूसरों का मूत्र पी रहे हैं अपना नहीं। आपके वैज्ञानिकों के मूत्र अर्क की लागत हजारों डॉलर है, जबकि खुद का मूत्र मुफ्त है। जब ये साक्षात्कार छपा तो पूरी दुनिया में इसकी चर्चा हुई।
- जब राजदूत की पत्नी ने कहा- सारे ग्लास फिंकवा दो-
1978 में मोरारजी देसाई लंदन के बाद फ्रांस यात्रा पर पेरिस पहुंचे थे जहां वे भारतीय राजदूत आरडी साठे के घर पर ही रुके थे।
पूर्व कैबिनेट सेक्रेटरी बी रमन अपनी किताब ‘काऊ बॉयज ऑफ रॉ’ में लिखते हैं, ‘जब मोरारजी देसाई दिल्ली लौट गए तो मैं साठे के घर गया था। मेरी आवभगत में उनका नौकर हमें ड्रिंक्स सर्व कर रहा था। तभी साठे की वाइफ ने नौकर से कहा कि तुम ये जो ग्लास उपयोग कर रहे हो ये नए हैं ना?
फिर मिसेज साठे ने मेरी तरफ देखा और कहा मुझे नहीं पता मोरारजी ने अपना मूत्र पीने के लिए कौन सा ग्लास यूज किया है। इस कारण मैंने सभी पुराने ग्लासों को बाहर फिंकवा दिया है।
- बेटे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे, लेकिन मोरारजी देखते रहे-
कुलदीप नैयर अपनी किताब ‘बियॉन्ड द लाइंस’ में लिखते हैं कि इंदिरा सरकार हो या मोरारजी सरकार कुछ बदला नहीं था। आपातकाल के दौरान इंदिरा सरकार में संजय गांधी मनमानी करते थे। मोरारजी सरकार में उनका बेटा कांतिभाई। मैंने मोरारजी भाई से शिकायत की कि उनका बेटा मोटी रकम लेकर सौदे और ठेके निपटा रहा है।
ये सब क्करू हाउस में रहकर कर रहा है। कम से कम उसे क्करू हाउस से बाहर निकालिए। मोरारजी ने कहा कि मैंने एक बार अपनी बेटी को डांटा था तो उसने खुदकुशी कर ली थी। अब मैं अपने बेटे को नहीं खोना चाहता। यही कारण था कि मोरारजी अपने बेटे के करप्शन को बर्दाश्त करते रहे। जब मोरारजी ने कहा था कि- मैं चरण सिंह को चूरण सिंह बना दूंगा।
वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर अपनी बायोग्राफी ‘बियॉन्ड द लाइंस’ में लिखते हैं कि चौधरी चरण सिंह और मोरारजी देसाई के बीच पुरानी दुश्मनी थी। बस इंदिरा गांधी को हटाने के लिए एक हो गए थे। सत्ता मिलते ही इनकी दुश्मनी फिर जाग गई थी।
जब चौधरी चरण सिंह ने नाराज होकर समर्थन वापस लेने बात कही तो मैंने मोरारजी से कहा कि आप चरण सिंह से बात करके उन्हें मना लीजिए। तब मोरारजी ने कहा कि मैं चरण सिंह का चूरण सिंह बना दूंगा। उसे नहीं मनाऊंगा।
इसके बाद चरण सिंह ने समर्थन वापस ले लिया और मोरारजी ने राष्ट्रपति को 28 जुलाई 1979 को अपना इस्तीफा सौंप दिया। इस तरह मोरारजी देसाई ने 2 साल 126 दिन प्रधानमंत्री के रूप में काम किया।


