विचार / लेख
-चंदन कुमार जजवाड़े
चुनावों में बीजेपी को फायदा पहुंचाने के राहुल गांधी और मायावती के आरोप-प्रत्यारोप में अब कई पार्टियों के नेता भी शामिल हो गए हैं।
राहुल गांधी के आरोपों के बाद उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बीएसपी प्रमुख मायावती ने कांग्रेस को बीजेपी की ‘बी’ टीम बताया है और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी पर एक के बाद एक कई आरोप लगाए हैं।
दरअसल, राहुल गांधी ने मायावती पर बीजेपी को फायदा पहुंचाने का आरोप लगाते हुए कहा था कि अगर बीएसपी ‘इंडिया’ गठबंधन में होती तो पिछले साल के चुनावों में एनडीए की जीत नहीं होती।
इसके जवाब में मायावती ने कहा, ‘कांग्रेस ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में इस बार बीजेपी की ‘बी’ टीम बनकर चुनाव लड़ा। यह आम चर्चा है, जिसके कारण यहाँ (दिल्ली में ) बीजेपी सत्ता में आ गई है। वरना इस चुनाव में कांग्रेस का इतना बुरा हाल नहीं होता कि यह पार्टी अपने ज्यादातर उम्मीदवारों की जमानत भी न बचा पाए।’
राहुल गांधी ने क्या कहा जिस पर भडक़ीं मायावती
यहां ये जानने की कोशिश करते हैं कि नेताओं के बीच चल रही इस जुबानी जंग के पीछे केवल राहुल गांधी का आरोप है या उत्तर प्रदेश का दलित वोट बैंक।
मायावती ने राहुल गांधी को सलाह देते हुए कहा है कि राहुल गांधी को दूसरों पर उंगली उठाने से पहले अपने गिरेबान में जरूर झांककर देखना चाहिए।
दरअसल उत्तर प्रदेश के रायबरेली से कांग्रेस के सांसद राहुल गांधी ने बुधवार को रायबरेली में हुई एक सभा में कहा था, ‘हम चाहते थे कि बहनजी बीजेपी के विरोध में हमारे साथ मिलकर लड़ें, मगर मायावती जी किसी न किसी कारण नहीं लड़ी। हमें तो काफी दुख हुआ था, अगर तीनों पार्टियां एक हो जाती, तो बीजेपी कभी नहीं जीतती।’
हालांकि मायावती इस साल हुए जिस दिल्ली विधानसभा चुनाव की बात कर रही हैं, उसमें कांग्रेस से पहले आम आदमी पार्टी ने ही अकेले चुनाव लडऩे की घोषणा की थी।
जबकि आम आदमी पार्टी भी पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव चुनावों को देखते हुए विपक्ष के इंडिया गठबंधन का हिस्सा बनी थी।
इस दौरान कांग्रेस के नेता अलग-अलग मुद्दों पर अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के साथ नजऱ आ रही थे। आप नेता कांग्रेस के साथ केंद्र सरकार के विरोध में दिखे थे।
लोकसभा चुनावों में कांग्रेस और आप के बीच दिल्ली की सात लोकसभा सीटों के लिए गठबंधन भी हुआ था, हालांकि इसके बावजूद भी दिल्ली की सभी सीटों पर बीजेपी की जीत हुई थी।
दूसरी तरफ इंडिया गठबंधन के एक अन्य दल शिव सेना (उद्धव ठाकरे गुट) के नेता संजय राउत ने समाचार एजेंसी पीटीआई से बातचीत में राहुल गांधी के दावे का समर्थन किया है।
उन्होंने कहा, ‘हमने कांग्रेस और एसपी के गठबंधन का जादू लोकसभा चुनाव में देखा था। जिन सीटों पर उनकी जीत नहीं हो पाई थी उसके पीछे मायावती की बीएसपी वजह थी।’
क्या कहते हैं आंकड़े
सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के नेता ओम प्रकाश राजभर ने बीएसपी प्रमुख मायावती के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए कांग्रेस और समाजवादी पार्टी दोनों पर निशाना साधा है और कहा है, ‘कांग्रेस और सपा दोनों बीजेपी की ‘बी’ टीम है। समय-समय पर दोनों बीजेपी की मदद करती हैं।’
अगर राहुल गांधी के आरोपों पर बात करें तो पिछले साल हुए लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में सबसे ज़्यादा 37 सीटें समाजवादी पार्टी को मिली थीं। समाजवादी पार्टी ने 33 फीसदी से ज़्यादा वोट भी हासिल किए थे।
इसके अलावा कांग्रेस को 6 सीटों पर जीत मिली थी और उसे करीब 10 फीसदी वोट भी मिले थे।
जबकि बीजेपी को उन चुनावों में सबसे ज़्यादा कऱीब 42 फीसदी वोट मिले थे और उसने राज्य की 33 लोकसभा सीटों पर कब्जा किया था।
ऐसे में अगर बीएसपी को मिले करीब 10 फीसदी वोटों की बात करें और वो ‘इंडिया गठबंधन’ का हिस्सा होतीं तो सामान्य गणित के हिसाब से विपक्ष के इस गठबंधन के पास पचास फीसदी से ज़्यादा वोट होते।
सीटों के लिहाज से बात करें तो साल 2024 के लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश की करीब 17 सीटों पर बीएसपी के उम्मीदवारों ने हार के बाद भी इतने वोट ज़रूर हासिल किए, जो इंडिया ब्लॉक के उम्मीदवारों के मिल जाते तो इन सीटों के नतीजे बिल्कुल अलग होते। इन सीटों में से ज़्यादातर बीजेपी के खाते में गईं जबकि कुछ सीटों पर एनडीए के अन्य घटक दलों की जीत हुई।
इनमें बिजनौर, अमरोहा, मेरठ, अलीगढ़, फतेहपुर, शाहजहांपुर, हरदोई, मिसरीख, उन्नाव, फर्रुखाबाद, अकबरपुर, फुलपुर, डुमरियागंज, दवरिया, बांसगांव, भदोही और मिर्जापुर लोकसभा सीट शामिल हैं।
लेकिन क्या चुनावी राजनीति में दो और दो चार का यह गणित लागू होता है? क्या मायावती के इंडिया गठबंधन में होने से इन सीटों के अलावा भी अन्य सीटों पर कुछ असर हो सकता था?
राहुल गांधी के दावे में कितना दम
चुनाव समीक्षक और सीएसडीए के प्रोफेसर संजय कुमार कहते हैं, ‘मायावती विपक्ष के गठबंधन में होतीं तो फायदा ही होता नुकसान तो नहीं हो होता और हो सकता है कि इससे बीजेपी यूपी में 10-12 सीटें और हार जाती। लेकिन सवाल यह भी है कि क्या इससे बीजेपी को केंद्र में सरकार बनाने से रोका जा सकता था।’
राहुल गांधी के दावों के बाद बीजेपी नेता और यूपी के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने भी इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया दी है।
उनका कहना है, ‘हमारी नजऱ में एसपी, कांग्रेस और बीएसपी सभी एक जैसे हैं। बीजेपी जीतेगी और इससे कोई फर्क़ नहीं पड़ता है कि वो साथ मिलकर चुनाव लड़ें या अलग-अलग।’
संजय कुमार का मानना है कि लोकसभा चुनाव हो चुके हैं और अब उसपर कोई फर्क़ नहीं पडऩे वाला है।
उनके मुताबिक राहुल गांधी इसकी शिकायत कम कर रहे हैं और यूपी के करीब 18 फीसदी दलित वोटरों को आगे के लिए संदेश दे रहे हैं कि मायावती सकारात्मक राजनीति नहीं करती हैं।
दरअसल पिछले कुछ चुनावों में और खासकर बीते दस साल में बहुजन समाज पार्टी का चुनावी प्रदर्शन लगातार काफी कमजोर दिख रहा है और उत्तर प्रदेश में चंद्रशेखर दलितों के नेता के तौर पर उभरने की कोशिश कर रहे हैं।
इसके अलावा दलित वोटों पर बीजेपी, कांग्रेस, एसपी और अन्य दलों की भी नजऱ रहती है।
संजय कुमार कहते हैं, ‘राहुल गांधी ने एक तीर से दो निशाने लगाने की कोशिश की है। पिछले कुछ साल के चुनावों पर नजर डालें, चाहे वो लोकसभा के चुनाव हों या राज्यों के विधानसभा के बीएसपी लगातार ढलान पर है और उसकी वापसी की कोई उम्मीद या संभावना भी नहीं दिखती है क्योंकि उसके नेता जमीन पर सक्रिय नजर नहीं आते हैं।’
उत्तर प्रदेश की राजनीति पर नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार बृजेश शुक्ला भी इस बात से सहमत दिखते हैं कि यह लड़ाई उत्तर प्रदेश के दलित वोटों की है, हालांकि उनका मानना है कि मायावती के साथ उनके जातीय वोट अभी भी बने हुए हैं।
हालांकि वो ताजा विवाद को एक अलग नज़रिए से देखते हैं।
बृजेश शुक्ला कहते हैं, ‘राहुल गांधी की नजऱ दलित वोटों पर है। वो संविधान की कॉपी लेकर घूमते हैं। लेकिन पता नहीं उन्हें किसने कह दिया है कि मायावती को लेकर नरम रहें। जबकि बीएसी के संस्थापक कांशीराम ने पहला हमला कांग्रेस पर ही किया था।’
‘अभी भी आप यूपी के गांवों में जाएंगे और दलितों से पूछेंगे तो पता चलेगा कि बीएसपी और मायावती ने गांव-गांव में अभियान चलाया था कि कांग्रेस ने बाबा साहब आंबेडकर का अपमान किया था। राहुल गांधी अभी भी इस बात को नहीं समझ पा रहे हैं और मायावती को लेकर नरम दिखते हैं।’
कांग्रेस की उत्तर प्रदेश में कमजोर हालत
कांग्रेस पार्टी लोकसभा सीटों के लिहाज के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में लगातार कमजोर होती चली गई है।
भले ही पिछले साल के लोकसभा चुनावों में उसे राज्य में छह सीटों पर जीत मिली है, लेकिन अपने दम पर उसके वोट प्रतिशत में बहुत सुधार नहीं माना जाता है।
इसकी एक तस्वीर साल 2022 में हुए राज्य विधानसभा चुनावों के नतीजों में भी दिखती है। उन चुनावों में कांग्रेस ने 399 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए और केवल दो की जीत हो सकी।
कांग्रेस पार्टी की हालत का अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि उसे पिछले विधानसभा चुनाव में दो फ़ीसदी से थोड़ा ही ज़्यादा वोट मिल सका और उसके 387 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई।
वरिष्ठ पत्रकार शरद गुप्ता कहते हैं, ‘कांग्रेस के पास उत्तर प्रदेश में 35 फ़ीसदी से ज्यादा वोट था और राज्य के दलित वोट कांग्रेस के खाते में जाते थे। लेकिन साल 1989 में केंद्र में चंद्रशेखर और यूपी में समाजवादी पार्टी को समर्थन देने से उसे भी समाजवादी पार्टी की ‘बी’ टीम माना जाने लगा और इसका बड़ा नुकसान कांग्रेस पार्टी को हुआ है।’
शरद गुप्ता मानते हैं, ‘ये पूरी लड़ाई दलित वोटों को लेकर है। राहुल गांधी दलितों को ये बताना चाहते हैं कि मायावती को उनकी परवाह नहीं है और वो ब्राह्मण, बनियों की पार्टी बीजेपी के साथ खड़ी हो जाती हैं। इससे दलित वोट वापस कांग्रेस के पास लौटने की उम्मीद है।’
शरद गुप्ता मानते हैं कि मायावती ने अपना भरोसा लगातार खोया है और जिन मुद्दों पर बीजेपी का विरोध करना चाहिए, उसपर भी समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के खिलाफ नजर आती हैं, उनका रुख स्पष्ट नहीं होता है, जिससे वो अपना वोट बैंक भी खो रही है। ((bbc.com/hindi)