विचार / लेख
-आर.के.जैन
उधर चीन का एआई मॉडल डीपसीक दुनिया भर में कोहराम मचा रहा है, इधर भारत को लोग ताने मार रहे हैं । भारत की हालत उस लडक़े की तरह हो गई है जिसके पड़ोस में ‘शर्माजी का बेटा’ 98 फीसदी नंबर ले आया है।
लेकिन क्या आपको पता है हम भी एआई के क्षेत्र में तोप होते बस ‘अब्बा नहीं माने’
ये ‘अब्बा’ और कोई नहीं इन्फोसिस कंपनी के सह संस्थापक नारायणमूर्तिजी थे, जो अब युवाओं को सप्ताह में 70 घंटे काम करने की सलाह दे रहे हैं।
इन्फोसिस कंपनी के पूर्व सीईओ विशाल सिक्का जिन्होंने 2014-2015 में ही एआई की दुनिया में ओपनएआई पर दांव लगा चुके थे, लेकिन उनका एआई विजन इन्फोसिस कंपनी के सह संस्थापक नारायणमूर्ति के साथ टकराहट और कंपनी के अन्य डायरेक्टरों के साथ अंदरूनी संघर्ष के कारण दब गया।
पहले सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म बनाने के युग में भारत पिछड़ा। और अब एआई युग में भी पहले अमेरिका और अब चीन भी आगे निकलता जा रहा है।
क्या भारत सिर्फ एआई का उपभोक्ता बनकर रह जाएगा?
2014 में, विशाल सिक्का,इंफोसिस के पहले गैर-संस्थापक सीईओ बने उस वक्त कंपनी के हिसाब से एक साहसिक कदम था। विशाल सिक्का एकदम विशुद्ध इंजीनियरिंग पृष्ठभूमि से आते हैं. उनका ध्यान इनोवेशन पर था. उन्होंने इंफोसिस को पारंपरिक आईटी सर्विस कंपनी से बदलकर ऑटोमेशन और यूएआई-ड्रिवन सॉल्यूशंस की लीडर बनाने का सपना देखा।
लेकिन उनका यह विजन कंपनी के बांकी के नेतृत्व, जिनमें नारायणमूर्तिजी भी थे, उन्हें पसंद नहीं आया।
उसी समय, ओपनएआई बना ही था। इसका उद्देश्य था आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में गहन शोध करना और क्रांतिकारी बदलाव लाना। विशाल सिक्का ने इसका समर्थन किया और यूएआई की शक्ति को भांप लिया था उन्होंने उस समय ही इसे भविष्य की तकनीक मान लिया था ।
उन्होंने इंफोसिस में एनआईए जैसे एआई प्रोजेक्ट्स पर भारी निवेश करने की योजना बनाई।
विशाल सिक्का के इन प्रोजेक्ट्स को इंफोसिस के पारंपरिक बिजनेस मॉडल से जोडऩा आसान नहीं था। संस्थापक नारायण मूर्ति, जो सक्रिय नेतृत्व से अलग हो चुके थे, एआई जैसी महंगी योजनाओं पर सवाल उठाने लगे ।
नारायण मूर्ति मानना था कि इंफोसिस को अपनी कोर स्ट्रेंथ, आईटी सर्विसेज, पर ही फोकस करना चाहिए।
2016 से 2017 के बीच, विशाल सिक्का और नारायण मूर्ति के बीच मतभेद बढऩे लगे। नारायण मूर्ति इनफोसिस के उस समय के सीईओ यानी विशाल सिक्का के महंगे प्रोजेक्ट्स और कंपनी की दिशा पर सार्वजनिक रूप से सवाल उठाने लगे।
बोर्ड मीटिंग्स में बहसें बढऩे लगीं।विशाल सिक्का का लॉन्ग-टर्म इनोवेशन पर जोर इनफ़ोसिस के संस्थापकों के शॉर्ट-टर्म प्रॉफिट फोकस से मेल नहीं खा रहा था।
2017 में यह विवाद चरम पर पहुंच गया। नारायण मूर्ति ने कॉरपोरेट गवर्नेंस और सिक्का के नेतृत्व पर सवाल उठाए। मीडिया में यह मुद्दा उछलने लगा। (इस बारे में आपको बहुत सी ऑनलाइन स्टोरी मिल जाएगी)
नारायण मूर्ति सार्वजनकि तौर पर कह डाले थे कि, ‘डॉ. सिक्का सीईओ मैटेरियल नहीं बल्कि सीटीओ मैटेरियल हैं।’
अंत में विशाल सिक्का ने अगस्त 2017 को इनफ़ोसिस के सीईओ पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने अपने इस्तीफे का कारण ‘व्यक्तिगत हमले’ बताया।
उनके जाने के बाद इंफोसिस के एआई प्रोजेक्ट्स को ठंडे बस्ते में फेंक दिया गया।
उसके बाद तो आपको पता ही है दुनिया एआई युग में प्रवेश कर चुकी है, ओपनएआई माईक्रोसॉफ्ट गूगल और अब चीन के एआई मॉडल डीपसीक की धूम दुनियाभर में है।