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बच्चों को यौन शोषण से सुरक्षित रखने संबंधी सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला
08-Oct-2024 1:51 PM
बच्चों को यौन शोषण से सुरक्षित रखने संबंधी सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला

-आर.के.विज

सेवानिवृत पुलिस महानिदेशक

‘बाल यौन शोषण और दुव्र्यवहार सामग्री’

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में मद्रास हाई कोर्ट के एक निर्णय को पलटते हुए स्पष्ट निर्णय दिया है कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी को डाउनलोड करना सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (आई.टी. एक्ट) और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम के तहत एक गंभीर अपराध है। सुप्रीम कोर्ट ने पोक्सो की धारा 15की व्याख्या करते हुए कहा कि इसके तीनों खंड पृथक-पृथक स्वतंत्र तीन अपराध है। यदि कोई व्यक्ति चाइल्ड पोर्नोग्राफी डाउनलोड करता है और उसे तत्काल नष्ट नहीं करता और न ही पुलिस को उसकी रिपोर्ट करता है तो उसे धारा 15(1)के तहत अपराध माना जाएगा। इसी प्रकार, यदि ऐसी आपत्तिजनक सामग्री डाउनलोड करने के बाद व्यक्ति उसे दूसरों के साथ साझा करने के लिए या ट्रांसमिट करने के लिए कुछ कदम उठाता है तो वह धारा 15(2)के तहत तुलनात्मक रूप से पहले से गंभीर अपराध के लिए जिम्मेदार होगा। इसी प्रकार, यदि आपत्तिजनक सामग्री डाउनलोड करने के बाद वह उसे मुनाफे के लिए लोगों से साझा करने के लिए कोई कदम उठाता है वह धारा 15(3)के तहत एक पृथक एवं स्वतंत्र अपराध का भागी होगा।

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि धारा 15की तीनों उप-धाराओं में चाइल्ड पोर्नोग्राफी को दूसरों से साझा करना जरूरी नहीं है। यदि व्यक्ति द्वारा डाउनलोडेड सामग्री नष्ट नहीं की जाती है तो अपराध के लिए आवश्यक मंशा की अवधारणा की जा सकती है। पोक्सो की धारा 30के तहत इस अवधारणा का आरोपी द्वारा विरोध किया जा सकता है, परंतु उसे यह संदेह से परे सिद्ध करना होगा कि उसकी मंशा धारा 15के तहत अपराध करने की नहीं थी। सुप्रीम कोर्ट ने धारा 15के अपराधों को इनकोहैट अर्थात अपूर्ण या अपरिपक्क अपराध, अर्थात गंभीर अपराध घटित करने से पहले की तैयारी वाले अपराध की संज्ञा दी। परंतु इन अपराधों में पुलिस और अभियोजन को आपत्तिजनक सामग्री पर आरोपी का भौतिक या रचनात्मक (कंस्ट्रक्टिव) कब्जा सिद्ध करना जरूरी होगा। ऐसा कब्जा सिद्ध करने पर ही अपराध के लिए आवश्यक मंशा की अवधारणा की जा सकेगी।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना कि आई.टी. एक्ट की धारा 67(बी) चाइल्ड पॉर्नोग्राफी अपराध संबंधी एक पूर्ण कोड है जिसकी उप-धारा (बी) के अंतर्गत चाइल्ड पोर्नोग्राफी को ढूंढना, ब्राउजिंग करना, या डाउनलोड करना एक दंडनीय अपराध है। कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट को केवल प्राथमिक सूचना प्रतिवेदन के आधार पर नहीं बल्कि आरोप-पत्र सहित विवेचना में जुटाई गई समस्त सामग्री का संज्ञान लेने के बाद ही कोई आदेश जारी करना चाहिए था। जब पुलिस द्वारा आरोप-पत्र पोक्सो की धारा 15के तहत दर्ज किया गया था तो कोर्ट केवल प्राथमिक सूचना प्रतिवेदन के समय लगाई गई धारा 14के तहत अंतर्गत निर्णय नहीं कर सकती। फलस्वरुप, सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट के आदेश को गलत ठहराते हुए कहा कि ट्रायल कोर्ट मुकदमे की सुनवाई कर मेरिट पर उसका निराकरण करें।

सुप्रीम कोर्ट ने इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर्स/ मध्यवर्ती संस्थाएं (इंटरमेडयरीज) की भूमिका पर भी सवाल उठाए। वर्तमान में गृह मंत्रालय के तहत एन.सी.आर.बी. द्वारा अमेरिका की एक संस्था ‘नेशनल सेंटर फॉर मिसिंग एवं एक्सप्लोइटेड चिल्ड्रन’ से एक अनुबंध के तहत इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर्स द्वारा चाइल्ड पोर्नोग्राफी संबंधी सामग्री उपरोक्त संस्था से साझा की जाती है, परंतु पोक्सो के तहत ऐसी आपत्तिजनक सामग्री के संबंध में स्थानीय पुलिस को इसकी सूचना नहीं दी जाती। पोक्सो नियम का नियम 11, इंटरमेडयरीज पर बंधनकारी है जो यह प्रावधान करता है कि पोक्सो के तहत अपराधों की सूचना अनिवार्य रूप से पुलिस को देना एवं आपत्तिजनक सामग्री को एविडेंस हेतू सुरक्षित रखना जरूरी है। यदि इंटरनेट संस्थाएं ड्यू डिलिजेंस के तहत ऐसा करने में विफल रहती हैं तो उन्हें आई.टी. एक्ट की धारा 79के तहत ‘सेफ हार्बर’ की छूट नहीं दी जा सकती।

सुप्रीम कोर्ट ने कानून में उपयोग की जाने वाली शब्दावली ‘चाइल्ड पोर्नोग्राफी’ के उपयोग पर भी आपत्ति जताई। चाइल्ड पोर्नोग्राफी शब्द बच्चों के शोषण के सही रूप एवं अर्थ को नहीं दर्शाता, बल्कि कहीं न कहीं सहमति की ओर इंगित करता है। इसलिए कोर्ट ने केंद्र सरकार को पोक्सो में एक संशोधन लाकर चाइल्ड पोर्नोग्राफी के स्थान पर ‘बाल यौन शोषण और दुव्र्यवहार सामग्री’ (चाइल्ड सेक्सुअल एक्सप्लोइटेटिव एंड एब्यूज मटेरियल /सी.एस.इ.ए.एम.) को प्रतिस्थापित करने के लिए भी निर्देश दिए। कोर्ट ने कहा कि निचली अदालत्ते भविष्य में चाइल्ड पोर्नोग्राफी शब्द का उपयोग नहीं करेंगी

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बच्चों को यौन शोषण से सुरक्षित करने के उद्देश्य से लोगों को जागरूक करने बाबत पोक्सो में सरकार और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग को महती जिम्मेदारी दी गई है। इसलिए वे पोक्सो कानून के प्रावधानों की जानकारी लोगों तक पहुंचाएं। सुप्रीम कोर्ट ने महिला एवं बाल विकास विभाग को यह निर्देश दिए कि बालकों को उनकी उम्र के अनुसार यौन शिक्षा देने और पीडि़त बच्चों के लिए सपोर्ट सर्विस एवं पुनर्वास की दिशा में आवश्यक कदम उठाने के भी निर्देश दिए।

समग्र रूप से देखा जाए तो सुप्रीम कोर्ट का उक्त आदेश बच्चों को यौन शोषण से सुरक्षित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण फैसला है जिसका पालन समाज, इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर, एवं पुलिस सहित संबंधित सरकारी विभागों को ईमानदारी से करना होगा।


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