विचार / लेख

सच्ची, चैनल, और शंकराचार्य
01-Jul-2025 10:18 PM
सच्ची, चैनल, और शंकराचार्य

-सुजाता

हाल ही में अहमदाबाद विमान दुर्घटना की एक ख़बर ने पूरे देश का दिल दहला दिया। इस हादसे में कई मासूम लोग, जिनमें बच्चे भी शामिल थे, अपनी जान गंवा बैठे।

अचानक इस त्रासदी के बीच खबरें आने लगीं कि विमान में रखी भगवद गीता का एक प्रतिलिपि जलने से बच गई जिसे कोई पैसेंजर अपने साथ ले गया? होगा।

न्यूज चैनलों ने इस बात को चमत्कार बता कर बार-बार दिखाया। लोगों ने भी इसे ‘ईश्वर की महिमा’ बताकर सोशल मीडिया पर फैलाना शुरू कर दिया।

लोगों की तो बात खैर रहने ही दीजिए लेकिन इन जिम्मेदार न्यूज़ चैनल्स को तो इस दुर्घटना पर अतिवादी होने से बचना चाहिए था।

लेकिन अब इस पूरे प्रकरण पर जब देश के प्रमुख धर्मगुरु शंकराचार्य ने प्रतिक्रिया दी तो उन्होंने एक सच्चाई की ओर ध्यान खींचा। उन्होंने कहा —‘इतने मासूम लोग जलकर मर गए, फूल से बच्चे मर गए और एक गीता बच गई और ये लोग इस बात का बखान कर रहे हैं।

बात तो तब होती कि जब गीता जल जाती लेकिन लोग और फूल से बच्चे बच? जाते।’

शंकराचार्य का यह कथन न केवल तार्किक है, बल्कि सनातन धर्म और अध्यात्म की सच्ची भावना से ओत-प्रोत है। क्या सचमुच कोई भी ईश्वर, चाहे वह सनातन धर्म का हो या किसी भी मत का, यह चाहेगा कि उसकी किताब तो सुरक्षित रहे लेकिन उसके ही बनाए जीव नष्ट हो जाएं?

आप और हम सब जानते हैं कि गीता क्या सिखाती है।

गीता स्वयं कहती है कि आत्मा अमर है। शरीर का नाश होना प्रकृति का नियम है। गीता तो ज्ञान का स्रोत है, और उसका सच्चा पालन तभी है जब हम उसके संदेश को जीवन में उतारें , यानी करुणा, धर्म, और जीव रक्षा को महत्व दें। अगर किसी दुर्घटना में किसी ग्रंथ की पुस्तक बच जाए तो यह केवल भौतिक घटना है, इसे चमत्कार कहना हमारी समझ का अपमान है।

हम सभी जानते हैं कि गीता का उपदेश देने वाले श्रीकृष्ण ने स्वयं कितने लोगों की रक्षा की है!

उन्होंने अर्जुन को धर्म युद्ध का मर्म समझाया,

द्रौपदी की लाज बचाई, गोकुल में पूतना, कालिया नाग, कंस जैसे अत्याचारियों से निर्दोषों को बचाया,

हर युग में संकट में पड़े जन को अपनी लीला से उबारा।

श्रीकृष्ण का जीवन स्वयं यह बताता है कि ईश्वर की कृपा केवल किताबों में नहीं,

बल्कि हर जीव की रक्षा में है।

जो कृष्ण ने सिखाया- ‘सबसे पहले जीवन की रक्षा करो, धर्म उसकी सेवा में है।’

यही गीता का सार है, यही हमारा कर्तव्य भी है।

मीडिया और अंधविश्वास-

अक्सर हम मीडिया की सनसनी में उलझ जाते हैं। किताब बच गई, मंदिर बच गया, मूर्ति पर खरोंच नहीं आई — ऐसे शीर्षक हमें तसल्ली जरूर देते हैं लेकिन क्या इससे उन परिवारों का दु:ख कम होता है जिन्होंने अपने लोग खो दिए? नहीं। असली चमत्कार तो तब होता जब कोई हादसा ही न होता, या हादसे के बावजूद हर मानव जीवन बचा लिया जाता।

ईश्वर की मर्जी क्या है?

यदि हम वास्तव में धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से देखें तो ईश्वर को किसी वस्तु की रक्षा की कोई जरूरत नहीं होती। ईश्वर को हमारे प्रेम और आस्था की जरूरत है, किताब की नहीं। कोई भी पवित्र ग्रंथ केवल प्रतीक है, उसका ज्ञान सच्चा खजाना है। वह किताब चाहे मिट्टी में मिल जाए, लेकिन जब तक उसका ज्ञान जीवित है, तब तक वह ग्रंथ अमर है।

आज जब शंकराचार्य जैसे विद्वान यह कहते हैं कि बेहतर होता गीता जल जाती और लोग बच जाते, तो वह हमें हमारी प्राथमिकता याद दिला रहे हैं-इंसानियत सबसे पहले। धर्म, आस्था और ग्रंथ तभी सार्थक हैं जब उनके नाम पर हम मनुष्य को बचाएं, मानवता को बचाएं।

गीता का संदेश यही है-कर्म करो, प्राणी मात्र का कल्याण करो।

आइए, इसी भाव से जिएं कि कोई हादसा हो तो खबर बने लोग बच गए, न कि किताब बच गई। यही सच्चा धर्म है, यही सच्ची श्रद्धा है।


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