सरगुजा

छत्तीसगढ़ के पूर्व उपमुख्यमंत्री सिंहदेव भी हुए शामिल
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
अंबिकापुर,6 सितंबर। देशभर से ब्रह्माकुमारीज़ के मुख्यालय पहुंचे शाही परिवार के सदस्य, राजा- महाराजा ध्यान में मग्न नजर आए। सुबह 7.30 से 8.30 बजे तक मनमोहिनी वन के ग्लोबल ऑडिटोरियम में आयोजित राजयोग ध्यान सत्र में सभी ने उत्साह के साथ भाग लिया। इसके बाद सुबह 9.30 बजे माउंट आबू के भ्रमण पर निकले। वहां ब्रह्माकुमारीज संस्थान के खूबसूरत ज्ञान सरोवर परिसर, पांडव भवन और कलात्मक दिलवाड़ा मंदिर के दर्शन किए।
शाही परिवार के सदस्यों ने कहा कि माउंट आबू की प्राकृतिक छटा सुन्दर और अद्भुत है। पांडव भवन में उन्हें बहुत ही शांति की अनुभूति हुई। इसके बाद ज्ञान सरोवर एकेडमी में सभी शाही परिवारों का स्नेह मिलन हुआ, जिसमें सभी ने अपने-अपने अनुभव भी सांझा किए। समापन पर अतिरिक्त महासचिव बीके डॉ. मृत्युंजय भाई और ज्ञान सरोवर की निदेशिका ब्रह्माकुमारी प्रभा दीदी ने मोमेंटो प्रदान कर सभी को सम्मानित किया।
राजयोग ध्यान सत्र में अतिरिक्त मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी बीके जयंती दीदी ने कहा कि हर आत्मा जीवन में खुशी चाहती है। सभी को खुशी से रहना पसंद होता है। क्योंकि खुशी हमारा नेचुरल स्वभाव है। हमारे कर्म ऐसे हों जिनसे दूसरों को भी खुशी मिले।
हर आत्मा अपने आप में अनोखी और अलग है। आत्मा को भूलने के कारण हम आत्मा के गुणों को भूल गए हैं। बीके डेविड भाई ने म्यूजिक की मनमोहक धुन बजाई। इस बीच ब्रह्माकुमारी जयंती दीदी ने सभी को राजयोग मेडिटेशन से गहन शांति की अनुभूति कराई।
सुबह राजयोग ध्यान सत्र में अंतरराष्ट्रीय मोटिवेशनल स्पीकर राजयोगिनी बीके ऊषा दीदी ने कहा कि जीवन में मुख्य तीन महत्वपूर्ण क्रियाएं हैं- सोचना, बोलना और कर्म करना। लेकिन आज यह तीनों अलग-अलग दिशा में हो गए हैं इसलिए जीवन में शांति नहीं है। जब हमारे अपने मन के विचार, वाणी और कर्म तीनों में सामंजस्य, तारतम्यता और एकता होती है तब शांति की अनुभूति होती है। तीनों में सामंजस्य नहीं होने के कारण जीवन में आनंद का अभाव हो जाता है। राजयोग मेडिटेशन के अभ्यास से हमारे जीवन में आत्म जागृति आती है। इससे हमारे विचार, वाणी और कर्मों में एकरुपता, सामंजस्य आता है। राजयोग मेडिटेशन में हम आत्म विश्लेषण करते हैं, इससे हमें अपनी कमी- कमजोरियों का पता चलता है।
आत्मा के हैं सात मूलभूत संस्कार
उन्होंने कहा कि आत्मा के सात मूलभूत गुण व संस्कार हैं- शांति, पवित्रता, प्रेम, शक्ति, ज्ञान और आनंद। इसलिए हर एक आत्मा इन सात गुणों की ओर आकर्षित होती है। आज आत्म बल खत्म हो गया है। इससे आत्मा कमजोर हो गई है। राजयोग के अभ्यास से आत्मा में इन सातों गुणों का विकास होता है। आत्मा अपने मूल स्वभाव, संस्कार की ओर बढ़ती है। इस सृष्टि चक्र में भारत में ही एक समय स्वर्णिम दुनिया, नवयुग था। आत्मा सतोप्रधान थी। हर आत्मा दैवी गुणों से संपन्न और भरपूर थी। लेकिन जन्म-मरण में आते-आते आत्माओं की कला कम होती गई। कलियुग में मनुष्यात्माएं कलाहीन हो गईं हैं। ऐसे समय में कलियुग में परमपिता शिव परमात्मा आकर पुन: हम मनुष्यात्माओं को राजयोग मेडिटेशन की शिक्षा देकर सतोप्रधान बनने की कला सिखा रहे हैं।
इस मौके पर राजस्थान के मारवाड़ राजघराने के महाराजा गज सिंह जोधपुर, मारवाड़ राजघराने की महारानी हेमलता राजे, उदयपुर के महाराजा विश्वराज सिंह बहादुर, छग सरगुजा-अंबिकापुर के महाराजा व छग के पूर्व उपमुख्यमंत्री त्रिभुनानेश्वर शरण सिंह देव, महाराष्ट्र सरकार के कैबिनेट मंत्री व डोंडाइचा के शाही परिवार के जयकुमार रावल ने अपने विचार व्यक्त किए। इस दौरान बूंदी के महाराव राजा वंशवर्धन सिंह, राजस्थान के भरतपुर की महारानी दिव्या सिंह और युवराज अनिरुद्ध सिंह, भरतपुर हेरिटेज होटल व लक्ष्मी विलास पैलेस के निदेशक राव राजा रघुराज सिंह, राजस्थान सिरोही के शाही परिवार के महाराज देवव्रत सिंह बहादुर, राजस्थान किशनगढ़ की महारानी मीनाक्षी देवी, राजस्थान झालावाड़ के राजा राजेंद्र सिंह राजावत और कुवरानी मरुधर कुंवर, जालिम-विलास परिवार जोधपुर की कुंवर रानी मीरा देवी, अभिजीत सिंह राठौड़ सहित अन्य राजघरानों के शाही सदस्य मौजूद रहे।