सरगुजा

हसदेव अरण्य के जंगल और रामगढ़ की पहाड़ी बचाने नागरिक हुए लामबंद
25-Aug-2025 8:34 PM
हसदेव अरण्य के जंगल और रामगढ़ की पहाड़ी बचाने नागरिक हुए लामबंद

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

अंबिकापुर, 25 अगस्त। रविवार को हसदेव जंगल और रामगढ़ की पहाड़ी को बचाने के लिए एक बैठक की गई । बैठक में न केवल सरगुजा संभाग के नागरिकों , आदिवासियों, समाज सेवी संस्थाओं ने भाग लिया बल्कि झारखंड से भी लोगों ने भाग लिया।

आंदोलन से जुड़े आलोक शुक्ला ने बताया -हसदेव अरण्य के जंगलों के विनाश की शुरुआत राजस्थान सरकार की कोयला जरूरतों के नाम पर हुई थी। वर्ष 2013 में परसा ईस्ट केते बासन कोयला खदान शुरू की गई। जिसमें कुल 5 लाख से अधिक पेड़ों को काटा जाना था । 2024 में आदिवासियों का दमन करके, दूसरे कोल ब्लॉक, परसा को शुरू किया गया, जिसमें एक लाख से अधिक पेड़ों को काटा जा रहा है । और हाल फिलहाल में ही तीसरी खदान, केते एक्सटेंशन को भी मंजूरी दे दी गई है । जिसमें 6 लाख से अधिक पेड़ों की कटाई होगी । इन तीनों कोयला खदानों के लिए सरगुजा और सूरजपुर जिले की 114760 एकड़ जमीन, राजस्थान सरकार के नाम पर, अदानी कंपनी को सौंप दी गई है । जिसमें 12 लाख से अधिक पेड़ों को काटा जा रहा है ।

बैठक की अध्यक्षता पूर्व सूरजपुर विधायक भानु प्रताप सिंह ने की । उन्होंने बताया  संविधान और वन कानून मजाक बन गए हैं । मानव अधिकारों की धज्जियां उड़ा दी गई है । फर्जी ग्राम सभाओं से स्वीकृति दिखाकर जंगल काटे जाने लगे हैं । आदिवासियों का दमन होने लगा है, उनकी जल जंगल और जमीन जबरिया छीने जाने लगी है । स्क्रॉल की रिपोर्ट के अनुसार कोयले की बड़ी मात्रा पूंजीपति ने अपने थर्मल पावर प्लांट पर भेजना चालू कर दिया है, कम गुणवत्ता बता कर। छत्तीसगढ़ की पूंजी सरेआम लूटी जा रही है । 2024 में छत्तीसगढ़ राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग छत्तीसगढ़ शासन ने अपने पत्र क्रमांक 4360 दिनांक 4 नवंबर 2024 में लिखा - जांच के बाद पाया गया है कि वन अधिकार की प्रक्रिया अपूर्ण है और ग्राम सभाओं की प्रक्रिया भी फर्जी और कूटरचित है। इसीलिए परसा कॉल ब्लॉक को जारी की गई वन स्वीकृति शून्य की जाए । फिर भी पेड़ों की कटाई जारी है और इसका परिणाम हमें भुगतना पड़ेगा ।

समाजसेवी गिरीश ने कहा कि हसदेव अरण्य ने अंबिकापुर सहित पूरे संभाग के तापमान को संतुलित बनाए रखा है। वैज्ञानिक अध्ययन बताते हैं कि लाखों की संख्या में वृक्षों की कटाई से ऑक्सीजन की स्थानीय स्तर में कमी, वाष्पोत्सर्जन, छाया व स्थानीय नमी प्रभावित होगी । जिससे क्षेत्र के तापमान में 2 से 4 डिग्री तक वृद्धि हो जाएगी। सोचिए जब पारा 48 से 50 डिग्री पहुंचेगा, शरीर झुलस उठेगा, पक्षी मर जाएंगे, जल स्रोत सूख जाएंगे । कोयला खनन से आगामी वर्षों में प्राकृतिक जल आपूर्ति भयंकर रूप से प्रभावित होगी। पीने के पानी के लिए त्राहि - त्राहि होगी। स्वच्छ पानी के लिए हम तरस जाएंगे। वहीं स्थानीय लोगों को खाद्यान, ईंधन की कमी होगी एवं कृषि भूमि हमेशा के लिए बंजर हो जाएगी। पशुपालन, कृषि एवं वनोपज आधारित अर्थव्यवस्था हमेशा के लिए नष्ट होगी तथा पूरे खनन क्षेत्रों से स्थायी पलायन व विस्थापन की गंभीर समस्या उत्पन्न होगी। वहीं पलायन से ग्रामीण अर्थव्यवस्था तबाह होगी, जिसका सीधा प्रभाव अंबिकापुर शहर के व्यवसाय की मांग व आपूर्ति पर पड़ेगा ।

पेड़ों की कटाई से तापमान में वृद्धि होने से लू के प्रकोप में इजाफा होगा। ब्लास्टिंग व डस्ट के प्रदूषण से अस्थमा, चर्मरोग, हृदयरोग आदि गम्भीर बीमारियों से आम लोगों का जीवन दूभर हो जाएगा। त्रिभुवन सिंह ने कहा विस्थापन व पलायन से स्थानीय ग्रामीण सामाजिक सांस्कृतिक परंपरा, पूर्वजों द्वारा स्थापित देवी देवताओं के निवास स्थल व समस्त प्रकार की सांस्कृतिक धरोहरें जैसे सरगुजा के उदयपुर में स्थित रामगढ़ की पहाड़ी में बने विश्व की प्राचीन नाट्यशाला, ऐतिहासिक व पुरातात्विक महत्व की मौर्य व गुप्तकालीन ब्राम्ही लिपि में लिखे शिलालेख आदि मानव द्वारा बनाई गई भित्ति चित्रकारी, सीता बेंगरा गुफा की अमूल्य धरोहरें व आदिवासियों की अपनी सांस्कृतिक पहचान सदा के लिए समाप्त हो जाएगी। जमीन के बिना आदिवासियों को जाति और निवास प्रमाण पत्र बनवाना भी मुश्किल हो जाएगा ।

अनंत सिंह, सीपी शुक्ला और आनंद प्रकाश  शुक्ला ने कहा इसके पहले पहले हमारी आजीविका के संसाधन समाप्त हो जाएं, समय रहते जंगल काटना नहीं रोका गया, तो यह पूरी मानव सभ्यता व प्रकृति के लिए एक गंभीर संकट को जन्म देगा।आनेवाली पीढ़ी के बेहतर व सुरक्षित भविष्य के लिए अडानी की मनमानी को रोकना हमारी नैतिक व सामूहिक जिम्मेदारी भी है। उन्होंने कहा, हम मिलकर इसके विरोध में संघर्ष करें ताकि हसदेव के जंगलों को इन पूंजीपति से बचा सके।


अन्य पोस्ट