सरगुजा

अम्बिकापुर, 12 फरवरी। भक्तिकालीन कवि और संत शिरोमणि गुरु रविदास की जयंती पर तुलसी साहित्य समिति के द्वारा केशरवानी भवन में शायर-ए-शहर यादव विकास की अध्यक्षता में सरस काव्यगोष्ठी का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम का शुभारंभ विद्या एवं ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी मां सरस्वती के सामूहिक पूजन से हुआ। तुलसीकृत रामचरितमानस और कविवर एसपी जायसवाल द्वारा लिखित सरगुजिहा रामायण का संक्षिप्त पाठ संस्था के अध्यक्ष दोहाकार व शायर मुकुंदलाल साहू ने किया।
कवयित्री व अभिनेत्री अर्चना पाठक ने कहा कि हिन्दी साहित्य के भक्तिकाल के प्रतिष्ठित कवि और संत शिरोमणि रविदास यानी रैदास बचपन से परोपकारी और दयालु स्वभाव के थे। दूसरों की सहायता करना उन्हें बहुत अच्छा लगता था। खासकर संतो की सेवा और प्रभुस्मरण में वे विशेष ध्यान लगाते थे। उनका जन्म काशी में हुआ था। इनकी माता करमा देवी और पिता का नाम संतोख दास था। चर्मकार कुल के होने के कारण जूते बनाने का अपना पैतृक व्यवसाय उन्होंने हृदय से अपनाया था। वे पूरी लगन और परिश्रम से अपना कार्य करते थे। गुरु रामानंद के शिष्य बनकर उन्होंने आध्यात्मिक ज्ञान अर्जित किया था। संत रैदास ने लोगों को कर्म की प्रमुखता और आंतरिक पवित्रता का संदेश दिया। उनकी समयानुपालन की प्रवृति और मधुर व्यवहार के कारण उनके संपर्क में आनेवाले लोग बहुत प्रसन्न रहते थे। रैदास जी भारत के उन चुनिंदा महापुरुषों में से एक हैं जिन्होंने अपने वचनों से सारे संसार की एकता और समरसता पर विशेष ज़ोर दिया। असमानता की भावना और समाज में जातिपंथ एवं सम्प्रदाय की मुश्किल परिस्थितियों में अपने अनुयायियों और समाज बंधुओं को हिंदू बनाए रखना उनके लिए बड़ी चुनौती थी। कवयित्री अर्चना ने गुरु रैदास की महानता पर एक शानदार दोहा भी सुनाया- संत शिरोमणि नाम से, जग में हैं विख्यात। गुरु रैदास महान् हैं, भजें उन्हें दिन-रात।
वरिष्ठ व्याख्याता सच्चिदानंद पांडेय का कहना था कि रैदास ने अपने गुरु रामानंद से प्रेरणा व आशीर्वाद प्राप्त कर समाज में समरसता की बहार लाने का काम बखूबी किया। उन्होंने समाज में फैली कुरीतियों, जैसे- जात-पांत के अंत के लिए जीवन भर काम किया। उनका विचार था कि मनुष्य अपने जन्म और व्यवसाय के आधार पर महान् नहीं होता अपितु विचारों की श्रेष्णता, सामाजिक हित की भावना से प्रेरित कार्य तथा सद्व्यवहार ही मनुष्य को महान बनाने में सहायक होते हैं।
सामाजिक कार्यकर्ता पं. अरविंद मिश्र ने संत रैदास के विषय में कहा कि उन्होंने ईश्वर को पाने के लिए भक्तिमार्ग पर बल दिया। इस संबंध में उनका एक मुहावरा अत्यंत प्रसिद्ध है- ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’। भक्ति और ध्यान में गुरु रैदास का जीवन समर्पित रहा। उन्होंने कई गीत, दोहे और भजनों की रचना की। उनकी एकतालीस कविताओं को सिखों के पांचवें गुरु अर्जुनदेव ने पवित्र गुरुग्रंथ साहिब में शामिल कराया। आत्मनिर्भरता, सहिष्णुता और एकता का उन्होंने संदेश दिया। भक्तिकाल की प्रसिद्ध संत कवयित्री मीराबाई संत रैदास को अपना आध्यात्मिक गुरु मानती थी। रैदास के वचनों का लोगों के मन पर गहरा प्रभाव पड़ता था। उनके भजनों और उपदेशों से लोगों की शंकाओं का सहज ही समाधान हो जाता था और लोग स्वत: उनके अनुयायी बन जाते थे।
काव्यगोष्ठी में कवयित्री माधुरी जायसवाल ने भी प्रकाश डाला। इस अवसर पर लीला यादव, प्रमोद आदि काव्यप्रेमी उपस्थित रहे।