राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : हौसले से जीत कोरोना पर...
15-Apr-2021 5:51 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : हौसले से जीत कोरोना पर...

हौसले से जीत कोरोना पर...

चिकित्सक मानते हैं कि इच्छा शक्ति मजबूत हो, तो कोरोना पर आसानी से काबू पाया जा सकता है। कई गंभीर मरीज अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति के बूते पर कोरोना के खिलाफ जंग जीतने में कामयाब रहे। सीकॉस्ट के चेयरमैन और सीनियर पीसीसीएफ मुदित कुमार सिंह 35 दिनों तक एक निजी अस्पताल में कोरोना से जंग लड़ते रहे, और आखिरकार कोरोना को हराने में कामयाब रहे।  मुदित कुमार सिंह तो 24 दिन तक आईसीसीयू में रहे। उनकी हालत चिंताजनक बनी रही, लेकिन धीरे-धीरे वे इससे उबर गए।

 भरपाई संभव नहीं

कोरोना की दूसरी लहर के आगे प्रशासनिक तंत्र भी बेबस नजर आ रहा है। पहले जैसी मुस्तैदी गायब है। प्रभारी मंत्री तो कोरोना लहर से बचने के लिए अपने बंगलों के कपाट बंद कर रखे हैं। प्रभारी सचिव को अपने प्रभार वाले जिलों में जाकर प्रशासन का मार्गदर्शन करते नहीं सुना गया। सीएम भूपेश बघेल असम से लौटे, तो थोड़ी बहुत हलचल हुई। अब सीएम-स्वास्थ्य मंत्री जरूर काफी कुछ करते दिख रहे हैं, लेकिन हालात अभी भी काबू में नहीं है। अलबत्ता, कोरोना-मौतों में थोड़ी कमी जरूर आई है। उम्मीद की जा रही है कि अप्रैल के आखिरी तक स्थिति कुछ हद तक काबू में आ जाएगी। मगर अब तक जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई संभव नहीं है।

बयानबाजी तक ही सीमित

 प्रदेश के ज्यादातर विधायक कोरोना की चपेट में आए हैं। दो-तीन विधायकों को छोड़ दें, तो तकरीबन पूरा विपक्ष कोरोना से प्रभावित रहा है। नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक, पूर्व सीएम रमन सिंह, बृजमोहन अग्रवाल, नारायण चंदेल, पुन्नूलाल मोहिले, अजय चंद्राकर, शिवरतन शर्मा, डमरूधर पुजारी, सौरभ सिंह और ननकीराम कंवर भी कोरोना की चपेट में आ चुके हैं।

इसी तरह डॉ. रेणु जोगी को छोड़ दें, तो जोगी पार्टी के प्रमुख धर्मजीत सिंह, प्रमोद शर्मा और देवव्रत सिंह भी कोरोना पॉजिटिव हो चुके हैं। हालांकि ये सभी कोरोना से उबर चुके हैं। बावजूद इसके विपक्ष ने कोरोना से सचेत करने की दिशा में कोई ठोस पहल नहीं की। विपक्ष सिर्फ बयानबाजी तक ही सीमित रहा।

ऐसा नहीं है कि सिर्फ विपक्ष ही कोरोना की चपेट में आया था, बल्कि सत्तापक्ष के भी कई मंत्री विधायक कोरोना पॉजिटिव रहे हैं। विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत भी पॉजिटिव हो गए थे। इसके अलावा स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव, जयसिंह अग्रवाल, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम, मोहम्मद अकबर, हाउसिंग बोर्ड के अध्यक्ष कुलदीप जुनेजा भी कोरोना संक्रमित रहे। बड़ी संख्या में जनप्रतिनिधि भी कोरोना संक्रमित हुए। भाजपा-कांग्रेस के कई संगठन के पदाधिकारियों की मृत्यु भी हुई है। कुल मिलाकर कोरोना का कहर हर किसी पर बरपा है।

सकारात्मक या नकारात्मक?

जब हवा में चारों तरफ महज बीमारी और मौत की चर्चा हो और लोग दहशत में जी रहे हो तो बहुत से लोग यह नसीहत देते हैं कि नकारात्मक बातें बंद कर देना चाहिए, केवल सकारात्मक बातें करनी चाहिए। लेकिन सवाल यह है कि आसपास जब हर कुछ घंटों में किसी परिचित की मौत की खबर आती हो और मीडिया या सोशल मीडिया में हर मिनट यह खबर रहती हो कि अस्पताल किस तरह बदहाल हो गए हैं और वहां अब लाशों के लिए भी जगह नहीं रह गई है तो सकारात्मक कैसे हुआ जाए? और एक सवाल यह भी उठता है कि ऐसे माहौल में सकारात्मक होने की बात कौन कर सकते हैं? क्या सरकारों की दिलचस्पी इसमें हो सकती है कि लोगों को ऐसे नकारात्मक हालात में भी सकारात्मक रहने की नसीहत दी जाए ताकि बदइंतजामी के खिलाफ उनके मन में कोई गुबार इक_ा ना हो सके? यह सवाल बहुत मुश्किल है क्योंकि अगर महज सकारात्मक हुआ जाए तो लोगों के मन में बद बदइंतजामी के खिलाफ गुस्सा इक_ा कैसे होगा ? और अगर गुस्सा इक_ा नहीं होगा तो हालात कैसे बदलेंगे? वक्त खराब तो चल रहा है, लेकिन अपने-आपको दिमागी रूप से खुश रखने के लिए ऐसे खराब वक्त को भी अनदेखा करना कितना जायज होगा यह पता नहीं। हो सकता है कि ऐसी हालत में एक मनोचिकित्सक और एक सामाजिक आंदोलनकारी की प्राथमिकताएं बिल्कुल अलग-अलग हों, मनोचिकित्सक को लगता हो कि नकारात्मक बातों को अनदेखा करना बेहतर है और सामाजिक आंदोलनकारी को लगता हो कि बदलाव का मौका ऐसी ही बदइंतजामी के बीच होता है।

तारीफ काम आती है

वक्त इतना खराब चल रहा है कि अखबारों के दफ्तरों में भी कई कोरोना पॉजिटिव निकल गए हैं या कई लोगों के घरों में दूसरे लोग पॉजिटिव आ गए हैं। नतीजा यह है कि काम करने के लिए लोग कम बचे हैं। और ऐसे में गलतियां भी तरह-तरह की हो रही हैं। एक अखबार के संपादक से जब एक पाठक ने शिकायत की कि अखबार में शीर्षकों भी गलतियां हो रही हैं, तो संपादक ने पाठक को खुश करते हुए कहा-हमें आपकी समझदारी पर पूरा भरोसा है कि आप ऐसी छोटी मोटी चूक के बीच भी सही बात को एकदम सही समझ जाते होंगे।

वक्त से पहले करें इंतजाम

एक जानकार तजुर्बेकार ने अपने आसपास के लोगों से कहा कि अगर तबीयत बिल्कुल ठीक हो तो घर में फल सब्जी इक_ी करके रखो, जाने कब लॉक डाउन कितना लंबा हो जाये,  और अगर तबीयत जरा सी गड़बड़ लगे तो बाजार का सबसे महंगे वाला इंजेक्शन जुटा कर रखो। तबीयत थोड़ी सी और गड़बड़ लगे तो किसी पहचान के अस्पताल में बिस्तर जुटाकर रखो, और अगर अस्पताल दाखिल होना ही पड़ा तो समय रहते शव वाहन का इंतजाम कर लें शमशान में जगह और लकडिय़ों का भी। किस मरघट पर जगह मिलेगी यह भी देखें, यह पहचान भी निकाल कर रखें कि अस्पताल से शव जल्दी कैसे मिल जाएगा। अगर जान ना बच सके तो कम से कम शव का सम्मान तो बचाया जाए। समय रहते, वक्त आने के पहले किया गया इंतजाम ही आज काम आ रहा है।

लॉकडाउन का हिसाब दो..

नागपुर, महाराष्ट्र के व्यापारी लॉकडाउन के खिलाफ़ आंदोलन पर उतर आये। बर्डी बाजार, इतवारी बाजार जैसे दर्जन भर बड़े इलाकों के दुकानदारों का बड़ा जायज सवाल था। कहा- एक साल पहले भी हमने लॉकडाउन किया। तब कहा गया कि संक्रमण को फैलने से तो रोकेंगे ही, व्यवस्था भी दुरुस्त करेंगे। अब आप दुबारा लॉकडाउन कर रहे हैं तो, बताइये इतने 12 महीनों में आपने क्या किया? अस्पतालों में कितने बिस्तर बढ़ाये, कितने आइसोलेशन सेंटर बनाये, ऑक्सीजन सिलेंडर का उत्पादन कितना बढ़ा। सरकार तो जैसे ही कोरोना प्रकोप कम हुआ, फीता काटने में लग गई। मौका था, इंतजाम  बढ़ाया क्यों नहीं?

नागपुर के सर्वाधिक प्रसारित साप्ताहिक ‘राष्ट्र पत्रिका’ के सम्पादक कृष्ण नागपाल बता रहे हैं कि यहां एक माह से ज्यादा लम्बे लॉकडाउन के चलते हजारों लोगों की रोजी-रोटी मारी गई है। जब पहले लॉकडाउन कराया, तब क्या व्यवस्था बढ़ाई। हम बिना डिग्री देखे एक-एक दुकान में दस-दस  युवकों को नौकरी देते हैं। हमारी दुकान खुलती है तो उनका परिवार चलता है। दरअसल, वे हमारे परिवार का हिस्सा है। दुकान बंद कर देंगे तो हम कैसे उनको पालेंगे? हम तो दुकान  के मालिक हैं, चलो दो चार महीने गाड़ी खींच लेंगे, पर कर्मचारियों के घर की क्या हालत होगी?

आपको क्या लगता है? ये सवाल सिर्फ नागपुर से है या छत्तीसगढ़ के व्यापारियों का भी है?

वादा राम मंदिर का था..

सोशल मीडिया पर हर किसी को छूट है कि संसदीय भाषा में कुछ भी राय जाहिर कर दे। एक यूजऱ ने यह तस्वीर यह बताते हुए पोस्ट की है कि- वादा राम मंदिर का था। अस्पताल और वेंटिलेटर मांग कर शर्मिंदा न करें।

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