राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : चैम्बर का चुनाव या जात का?
08-Nov-2020 5:53 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : चैम्बर का चुनाव या जात का?

चैम्बर का चुनाव या जात का?

चेम्बर चुनाव जातिगत रंग ले रहा है। एकता पैनल से योगेश अग्रवाल का नाम अध्यक्ष के लिए तय होने के बाद लड़ाई मारवाड़ी वर्सेस सिंधी बन सकती है। योगेश का सीधा मुकाबला पूर्व चेम्बर अध्यक्ष अमर पारवानी से होने के आसार हैं। चेम्बर में कुछ साल पहले तक मारवाड़ी व्यापारियों का दबदबा रहा है। पहले महावीर प्रसाद अग्रवाल और फिर पूरनलाल अग्रवाल की चेम्बर में तूती बोलती थी, दोनों चेम्बर अध्यक्ष रहे। चेम्बर की राजनीति इन दोनों नेताओं के इर्द-गिर्द घूमती रही है। बाद में श्रीचंद सुंदरानी ने मारवाडिय़ों के दबदबे को खत्म किया, और पूरनलाल को हराकर अध्यक्ष निर्वाचित हुए।

बाद में श्रीचंद व्यापारियों के सबसे बड़े नेता बनकर उभरे। इसी बूते पर विधायक भी बने। अमर पारवानी को चेम्बर अध्यक्ष बनवाने में श्रीचंद की भूमिका रही है। उन्होंने  यूएन अग्रवाल को हराया था। तब  मारवाड़ी समाज के ज्यादातर व्यापारी यूएन के समर्थन में थे। मगर अमर को नहीं रोक पाए। इस बार श्रीचंद ने योगेश अग्रवाल पर दांव लगाया है। ऐसे में निगाहें सिंधी समाज के वोटरों पर हैं, जो कि सबसे ज्यादा संख्या में हैं। अमर की सक्रियता किसी से छिपी नहीं है।

उन्होंने दीगर समाज के वोटरों को अपने पाले में करने की भरसक कोशिश की है। इस बार जातिगत समीकरण को ध्यान में रखकर प्रत्याशी तय किए जा रहे हैं। एकता पैनल ने योगेश को अध्यक्ष का उम्मीदवार बनाया है, तो महामंत्री उम्मीदवार सिंधी समाज से हो सकते हैं। कुछ इसी तरह की रणनीति अमर की भी है, वे जैन अथवा अग्रवाल को अपने पैनल से उतारने की कोशिश में हैं। दोनों ही पैनल बड़े समाज के व्यापारियों को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रहे हैं। कुल मिलाकर व्यापारियों के सबसे बड़े संगठन का चुनाव में भी जात-पात देखा जाने लगा है। मगर मतदाता क्या सोचते हैं, यह तो चुनाव परिणाम  आने के बाद ही पता चलेगा।

हाथियों को दूसरी तरफ धकेलना...

हाथियों से होने वाले नुकसान से बचाव के कई तरीके अब तक आजमाये गए हैं, पर अब एक नया प्रयास हो रहा है। एक खास तरह का केमिकल उन्हें पसंद नहीं है। ये केमिकल खेतों में छिडक़ा जाए तो वे उससे दूर भागते है। ये नीम, करेला और पांच गव्य का मिश्रण है। रायगढ़ जिले के धरमजयगढ़ में इस तकनीक का इस्तेमाल शुरू किया गया है। रायगढ़ जिला हाथियों से सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्रों में शामिल है। प्रदेश के अलग-अलग  स्थानों से आये दिन हाथियों की मौत की खबर आती रहती है। वे कई बार बिजली की बिछाई गई नंगी तारों की चपेट में आकर जान गवां चुके हैं। यदि इस तरीके का प्रयोग छत्तीसगढ़ के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है।

अब सवाल यह भी उठता है कि यह जो कोई भी मिश्रण है, यह कुछ दाम पर ही आएगा, और जो अपने खेत या गांव में इसे छिडक़ सकेंगे, वे हाथियों को दूसरी तरफ धकेल सकेंगे। लेकिन सवाल यह है कि हाथी जाएंगे कहां? जिस तरह खेतों से फसल के कीड़ों को भगाने के लिए दवा का छिडक़ाव होता है, और जब चारों तरफ के अधिक संपन्न या बेहतर-सक्षम किसान अपने खेतों पर छिडक़ाव कर देते हैं, तो कीड़े उन खेतों पर धावा बोल देते हैं जहां दवा छिडक़ी नहीं गई है। क्या हाथी को दवा से भगा-भगाकर उन्हें दूसरे गांवों पर थोपा जाएगा? हाथी इतनी बड़ी हकीकत हैं कि उन्हें अनदेखा करना ठीक नहीं। इसलिए बिजली के तार हों, या ऐसी दवा का छिडक़ाव हो, इनसे हाथियों को एक जगह ही टाला जा सकता है, वे किसी दूसरी जगह पहुंचकर वहां खतरा बन जाएंगे।

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