राजपथ - जनपथ
कोरोना की दहशत का दोहन
कोरोना महामारी के प्रकोप से जो बचे हुए हैं उनके मन में दहशत बनी हुई है कि कभी उन पर भी वायरस का हमला हो गया तो क्या होगा? कोरोना आने के साथ-साथ बाजार में इस डर को भुनाने का खेल शुरू हो गया था। विशेषज्ञों ने बताया कि नियमित व्यायाम के साथ शरीर का इम्यून सिस्टम दुरुस्त होना चाहिये, कुछ ही दिनों के भीतर इम्युनिटी बढ़ाने का दावा करने वाली दर्जनों दवाईयां बाजार में आ गई। अख़बारों, टीवी चैनलों पर इनके विज्ञापन पटे रहते हैं। जब बाबा रामदेव के इस दावे को आईसीएमआर से खारिज किया कि कोरोनिल दवा कोरोना को ठीक करती है तब बाकी कम्पनियां सावधान हो गईं और वे कोरोना ठीक करने का दावा सीधे-सीधे नहीं करते पर लेना जरूरी बताती हैं। कोरोनिल का कोरोना की दवा के रूप में बेचना मना है, मालूम है लोगों को कि यह कोरोना की दवा नहीं है पर डर ऐसा कि बाजार में इसकी जबरदस्त मांग है। ये सब मार्केटिंग रणनीति है जिसे अब चुनाव में भी अपनाया जा रहा है। वैसे भी पिछले कुछ चुनावों में मार्केटिंग गुरुओं की भूमिका बढ़ी है। बिहार में कोरोना की वैक्सीन मुफ्त देने का वादा चुनावी घोषणा पत्र में हुआ। उसके बाद मध्यप्रदेश में भी हुआ। इसके बाद तमिलनाडु सरकार ने भी मुफ्त वैक्सीन की घोषणा कर दी। अब तक होता यही रहा है कि महामारी व संक्रामक बीमारियों पर नियंत्रण के लिये दवायें या तो मुफ्त मिलती रही हैं या मामूली शुल्क पर। ऐसे में कोरोना वैक्सीन का मुफ्त देना किसी भी सरकार के लिये बोझ नहीं हो सकता। इसे चुनाव घोषणा पत्र में शामिल कर एक डर से बचाने का सौदा किया जा रहा है। अब आयें मरवाही पर, जहां स्वास्थ्य सुविधाओं की दशा बेहद दयनीय है। गंभीर मरीजों को बिलासपुर रेफर करना पड़ता है। कई बिलासपुर नहीं ला पाते। जो रवाना होते हैं वे सब के सब जिंदा नहीं पहुंचते। पर इस बार वहां दो सफल डॉक्टरों के बीच मुकाबला है। कोरोना वैक्सीन न सही, क्षेत्र के मतदाताओं को दोनों डॉक्टरों से इतना आश्वासन जरूर ले लेना चाहिये कि उन्हें मरवाही और अपने जिले में एक बेहतरीन अस्पताल, विशेषज्ञों की टीम के साथ मिलेगा। जीते कोई भी, इस आदिवासी बाहुल्य इलाके का भला हो।
ट्रंप के भक्त
राष्ट्रपति का चुनाव अमरीका में हो रहा है, लेकिन बहुत से हिन्दुस्तानी ट्रंप समर्थक दिखाई पड़ रहे हैं। लोगों को याद होगा कि पिछले बरसों में कई हिन्दूवादी संगठनों ने ट्रंप की फोटो लगाकर हवन और यज्ञ किए थे। ट्रंप के कल्याण के लिए पूजा की थी। अभी पिछले पखवाड़े ही एक खबर आई कि ट्रंप के एक प्रशंसक ने भारत में उनका एक मंदिर बना रखा था, जहां वह रोज पूजा करता था। उसकी तस्वीर भी आई थी जिसमें वह ट्रंप की प्रतिमा का गाल चूम रहा है। ट्रंप को जब कोरोना की वजह से अस्पताल में भर्ती किया गया तो इस आदमी ने ट्रंप के ठीक होने की मनौती मानकर उपवास शुरू कर दिया। और उपवास में वह मर गया।
ट्रंप के कुछ समर्थक तो इस किस्म के हैं, और कुछ दूसरे समर्थक वे हैं जो मास्क से ट्रंप के परहेज को धार्मिक भावना के मानते हैं। चूंकि ट्रंप भगवान मास्क नहीं लगाते, इसलिए हिन्दुस्तान में भी करोड़ों लोग बिना मास्क घूमते हैं। लोगों ने कोरोना से डरना छोड़ दिया है। हिन्दुस्तान में मरीजों की गिनती थोड़ी सी घटी है, तो लोग बेफिक्र हो गए हैं। यह बेफिक्री उन्हें ट्रंप का मंदिर बनवाने वाले के पास ले जा सकती है। फिलहाल उनकी जिंदगी में इस खतरे के अलावा एक नुकसान यह भी है कि ट्रंप का भक्त होने के बावजूद उनके पास ट्रंप को वोट देने का अधिकार नहीं है।
चुनाव और प्याज के भाव
लोगों ने एक लोकसभा चुनाव वह भी देखा है जब अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार ‘शाइनिंग इंडिया’ के नाम पर अनेक उपलब्धियां गिनाती रह गई और प्याज की कीमतों ने उनकी सरकार दुबारा नहीं बनने दी। इस समय चुनाव भी हो रहे हैं और प्याज की कीमतें भी हर दिन बढ़ती जा रही हैं। पर है ये विधानसभा का चुनाव जबकि कीमतों का बढऩा, रोकना केन्द्र सरकार के बूते की बात है। नये कृषि कानून ने स्टॉक लिमिट पर रोक हटा दी है। अब व्यापारी जितना चाहे माल रोककर रख लें। माल जितना जाम रख पायेंगे कीमत उतनी ही वसूल सकेंगे। छत्तीसगढ़ में इस समय प्याज 70 रुपये किलो बिक रहा है। बाजार के जानकार कहते हैं कि महाराष्ट्र में बेमौसम बारिश के कारण प्याज की फसल बर्बाद हुई है जिसके चलते इसके दाम 100 रुपये तक पहुंच सकते हैं। आलू भी कमजोर नहीं, 50 रुपये किलो बिक रहा है। बताया जा रहा है त्यौहारों के कारण आलू की खपत ज्यादा है, आवक कम है। वैसे हर बार महंगाई बढऩे पर इसी तरह की ख़बरें आती हैं कि फसल कमजोर है, सप्लाई कम हो रही है। छत्तीसगढ़ में कलेक्टरों को निर्देश तो है कि मांग और खपत पर निगरानी रखें। व्यापारियों को अपना स्टाक प्रदर्शित करने के लिये भी कहा गया है लेकिन अब नये कानून के कारण वह जब्ती-सख्ती नहीं रह गई। महंगे आलू और प्याज को आने वाले कई-कई दिनों तक बर्दाश्त करने के लिये तैयार रहिये। कोई लोकसभा चुनाव निकट भविष्य में नहीं है।