राजपथ - जनपथ
अभी प्रदेश का एक बड़ा समारोह, युवा उत्सव, हुआ तो उसमें गांधी के एक बड़े से पोस्टर के सामने एक गरीब नौजवान श्रद्धा से प्रणाम करते हुए दिखा। अब यह तो गनीमत है कि यह छत्तीसगढ़ है, कोई और प्रदेश होता तो हो सकता है कि इस नौजवान की कहीं पिटाई हो जाती कि देश में सविनय अवज्ञा आंदोलन छेड़ रहा है। गांधी पर केंद्रित इस आयोजन में यह फोटो अजीम पे्रमजी फाउंडेशन के अवधूत ने खींची।
चाचा-भतीजे की जोड़ी
बीजेपी में राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के बाद प्रदेश संगठन में चुनाव होंगे। छत्तीसगढ़ बीजेपी को नया प्रदेश अध्यक्ष मिल सकता है। ऐसे में अध्यक्ष के नामों की चर्चा और लांबिग भी तेज हो गई है। जातीय समीकरण के अलावा सियासी पहलुओं के आधार पर भी नाम सुनने को मिल रहे हैं। कुछ लोगों की दलील है कि प्रदेश अध्यक्ष पिछड़ा वर्ग से होना चाहिए, तो कई आदिवासी अध्यक्ष की वकालत कर रहे हैं। कांग्रेस ने आदिवासी को अध्यक्ष बनाया है और मुख्यमंत्री पिछड़ा वर्ग से आते हैं। ऐसे में बीजेपी में भी इसी फार्मूले को अजमाने के आसार हैं। पार्टी के भीतर कुछ लोगों को कहना है कि नेता प्रतिपक्ष का पद कुर्मी यानी पिछड़े वर्ग को दिया गया है, तो अध्यक्ष पिछड़े वर्ग से नहीं होना चाहिए। इसके बावजूद दुर्ग जिले के एक पिछड़े वर्ग के नेता अध्यक्ष बनने के लिए खूब मेहनत कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि सरकार के खिलाफ पूरी ताकत से हमला बोलने के लिए दुर्ग जिले से ही अध्यक्ष बनाया जाना चाहिए। मुख्यमंत्री भी इसी जिले से आते हैं और सरकार के कई भारी भरकम मंत्री भी इसी जिले के हैं। सरकार को गृह क्षेत्र से ही घेरने के हिसाब से इसे महत्वपूर्ण एंगल माना जा रहा है। अगर, ऐसा हुआ तो सियासत में नए समीकरण बनकर उभरेंगे और दोनों पार्टियों के लिए केंद्र बिंदु दुर्ग जिला होगा, लेकिन इस जोड़तोड़ में रिश्तेदारी रोडा बनकर सामने आ रही है। दरअसल, प्रदेश के मुखिया और दुर्ग जिले के ये भाजपा नेता चाचा-भतीजे हैं। अगर रिश्तेदारी का अंडगा दूर गया तो चाचा-भतीजे के बीच सियासत रोचक हो सकती है।
आईएएस और आईपीएस का फर्क
राज्य के दो आईएएस अफसरों को अभी प्रिंसिपल सेक्रेटरी सेे पदोन्नत करके अतिरिक्त मुख्य सचिव बनाया गया। यह कुर्सी प्रदेश के प्रशासनिक मुखिया, मुख्य सचिव, की कुर्सी से बस एक ही कदम पीछे रहती है। ऐसे में जाहिर है कि यह एक बड़ा प्रमोशन है। इस आदेश के आखिर में लिखा गया है कि इन प्रमोशन के लिए 11 दिसंबर को भारत सरकार को पत्र भेजा गया था, लेकिन वहां से 30 दिनों में कोई जानकारी न आने से, और मुख्य सचिव वेतनमान में रिक्तियां उपलब्ध होने से ये पदोन्नति की जा रही हैं।
इस आदेश को देखकर पुलिस विभाग के वो अफसर तो हैरान-परेशान हैं हीं जिनके प्रमोशन के लिए केंद्र सरकार से 9 दिसंबर को ही मंजूरी आ गई थी, लेकिन तबसे अब तक सवा महीने में भी दो आईपीएस के प्रमोशन के लिए डीपीसी नहीं की गई। दूसरी तरफ 11 दिसंबर को भेजी चि_ी के 30 दिन पूरे होते ही दो आईएएस के प्रमोशन कर दिए गए। पुलिस विभाग का यह मानना रहता है कि सत्ता पर बैठे नेता और आईएएस अफसर मिलकर पुलिस को मातहत ही बनाए रखते हैं, और बराबरी से उनका हक कभी नहीं मिलता। इन दो मामलों को देखकर तो ऐेसा लगता ही है। दूसरी तरफ नया रायपुर में आईएएस अफसरों के बैठने के सचिवालय को देखें तो वह 5 मंजिला इमारत है। दूसरी तरफ पुलिस मुख्यालय कुल दो मंजिला है जो कि पुलिस को उसका कद दिखाने का एक तरीका भी है।