राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : नामों में बहुत कुछ रक्खा है...
12-Jan-2020
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : नामों में बहुत कुछ रक्खा है...

नामों में बहुत कुछ रक्खा है...
हिन्दुस्तान, और बाकी दुनिया का भी, शहरी मीडिया आदिवासियों या मूल निवासियों को लेकर मोटेतौर पर अनजान ही बने रहता है, या ये तबके शहरी आंखों के लिए पारदर्शी से रहते हैं। ऐसे में पिछले दिनों छत्तीसगढ़ में जब एक राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव हुआ और जिसमें देश के बाहर के कुछ देशों से भी आदिवासी लोकनर्तक पहुंचे, तो वह छत्तीसगढ़ के इतिहास का एक किस्म से सबसे बड़ा जलसा बन गया। अब इस कार्यक्रम में पहुंचे आदिवासी-कलाकारों या उनके दल के मुखिया लोगों के नाम देखें तो कुछ दिलचस्प बातें दिखती हैं जो वहां के समाज और लोगों की जाति, उनके नाम को लेकर हैं।

अब ओडिशा से एक नृत्य ग्रुप आया तो उसमें ग्रुप लीडर का नाम तो प्रतिमा रथ था, लेकिन उनके अलावा जो सत्रह लोग ग्रुप में शामिल थे उनमें से हर एक का जाति नाम 'दुरुआ' था। मध्यप्रदेश से आए एक ग्रुप के मुखिया तो सतीश श्रीवास्तव थे लेकिन नर्तक दल के बाकी तमाम नौ लोगों के जातिनाम 'कोलÓ थे। राजस्थान से आए एक दल में कुछ राम, पूजा, जमुना जैसे हिन्दू नाम थे, और इतने ही मुस्लिम नाम भी थे। 

महाराष्ट्र से आए एक दल में आधा दर्जन लोगों में से पांच लोग ऐसे थे जिनके नाम में भास्कर और भोसले दोनों ही शब्द थे। 

चूंकि ये आदिवासी नृत्य दल थे, इसलिए बहुत से प्रदेशों से ये एक-एक जाति से ही निकले हुए दल थे, और उनमें सभी या अधिकतर लोगों के सरनेम या उपनाम एक जैसे थे। अरूणाचल प्रदेश के एक दल के पन्द्रह लोगों में से पांच के सरनेम पलेंग थे, और बहुत से लोगों के पहले नाम भी ईसाई जैसे थे। अरूणाचल प्रदेश के एक दूसरे दल में एक दिलचस्प बात यह थी कि एक दर्जन से अधिक लोगों में से किन्हीं भी दो लोगों के सरनेम एक सरीखे नहीं थे। 

झारखंड के एक दल के डेढ़ दर्जन लोगों में दर्जन भर महतो थे। झारखंड के ही एक दूसरे दल में भी महतो और मुंडा इन दो सरनेम की भरमार थी।

राजस्थान के एक दल में आधे लोगों का जातिनाम गमेती था। उत्तराखंड के एक दल में बहुत ही कम लोगों के जातिनाम लिखे थे, लेकिन जिनके लिखे थे उनमें तकरीबन सारे ही हिन्दवाल थे। केरल के नर्तक दल में किसी की भी जाति नहीं लिखी गई थी, और सारे के सारे नाम बस पहले नाम थे। कुछ ऐसा ही उत्तरप्रदेश के एक दल के साथ था जिसमें किसी के जाति नाम नहीं लिखे गए थे। 

गुजरात के एक दल के बीस लोगों में से उन्नीस के नाम के अंत में भाई शब्द था और एक महिला कलाकार के नाम में आखिर में बाई जुड़ा हुआ था। यह पूरी की पूरी टीम राठवा शब्द से शुरू होने वाले नामों की थी, और तमाम बीस नामों में स्त्री या पुरूष कलाकारों के साथ पिता के नाम भी जुड़े हुए थे, जैसे राठवा दीपिका बेन रंगू भाई। गुजरात की ही एक दूसरी टीम में हर किसी का नाम वासव, या वासवा से शुरू हुआ, और लगभग हर नाम में भाई शब्द था ही। 

लद्दाख की टीम के उन्नीस नामों में से हर एक का सरनेम अलग था, और कोई भी दो सरनेम एक सरीखे नहीं थे। 

चूंकि ये नाम अलग-अलग प्रदेशों से आए थे इसलिए लोगों ने उनमें से किसी लिस्ट में शादीशुदा होने या न होने की बात लिखी थी, किसी में नहीं लिखी थी, लेकिन तमिलनाडु की एक टीम के तमाम उन्नीस सदस्यों के नाम के साथ श्रीमती लिखा हुआ था जो कि हर सदस्य के शादीशुदा होने का संकेत था। 

अपने मुख्य आदिवासी इलाके झारखंड से अलग होने के बाद बाकी बचे बिहार को लेकर आदिवासी समुदाय की चर्चा कम होती है। लेकिन बिहार के जो नृत्य कलाकार यहां पहुंचे उस टीम के नाम देखें तो सारे के सारे नाम झारखंड के आदिवासी समुदाय के लगते हैं- एक्का, लकरा, तिग्गा, उरांव, टोप्पो, कुजूर, मिंज, बारा, केरकेट्टा वगैरह। 

गुजरात में बसे हुए अफ्रीकी मूल के एक सिद्दी समुदाय के आदिवासी कलाकारों के नाम देखें तो वे सारे के सारे मुस्लिम भी दिखते हैं, इमरान, बादशाह, बिलालभाई, साजिद सुल्तान, बाबूभाई, तौसीफभाई, हुमायूं, शब्बीर, शेख मूसा, रसीदभाई, गुलाम असलम, नसीरभाई, और मोहम्मद सलीम।

हिमाचल के एक नर्तक दल के नाम देखें तो वे लाल या चंद पर खत्म होने वाले थे, और महिलाओं और लड़कियों के नाम देवी और कुमारी पर खत्म हो रहे थे। इनके साथ जातिसूचक नाम नहीं थे। जम्मू से आई हुई टीम के दो दर्जन लोगों में से तकरीबन सारे ही मुस्लिम थे, लेकिन उनके बीच दो हिन्दू नाम भी दिख रहे थे। 

त्रिपुरा से आई हुई टीम शायद एक ही जाति की थी, और दर्जन भर से अधिक लोगों में से हर एक का जातिनाम देबबर्मा था। मध्यप्रदेश की एक और टीम एक ही जनजाति की थी, और उसमें टीम लीडर सलमान खान को छोड़ दें तो हर कलाकार का जातिनाम भील था। पश्चिम बंगाल के नृत्य दल के लोगों के नाम देखें तो उनमें आधे नाम झारखंड के आदिवासी समुदायों के दिखते थे, टुडू, मुरमू, सोरेन, हंसदा, किस्कू, और शायद इनका झारखंड और बंगाल का पड़ोसी प्रदेश होने से कुछ लेना-देना था। 

सिक्किम के एक दल के दस नामों में से नौ नौ नामों के साथ एक ही जातिनाम, लिम्बू का जिक्र था। 

लोगों के नाम कैसे रखे जाते हैं, उनके उपनाम कैसे रहते हैं, उनके नाम के साथ परिवार या पिता, या माता के नाम का जिक्र किस तरह होता है, यह एक बड़ा दिलचस्प समाजशास्त्रीय अध्ययन है, छत्तीसगढ़ आए देश भर के कलाकारों के नामों से यह एक झलक मिली है। ([email protected])

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