अफसर कौन, कहां, क्यों ?
नए साल में आईएएस अफसरों के प्रमोशन, और ट्रांसफर भी हुए। इनमें नारायणपुर कलेक्टर विपिन मांझी के सचिव पद पर प्रमोट होने के बाद लोक आयोग में सचिव बनाया गया। उनकी जगह सुश्री प्रतिष्ठा ममगाईं को नारायणपुर कलेक्टर बनाया गया है। खास बात ये है कि नारायणपुर जिला गठन के बाद पहली बार महिला कलेक्टर की पोस्टिंग हुई है।
हमने इसी कॉलम में लिखा था कि बस्तर संभाग के तीन जिले नारायणपुर, और सुकमा व बीजापुर में महिला कलेक्टर की पोस्टिंग नहीं हुई है। नारायणपुर में तो महिला कलेक्टर आ गई, लेकिन सुकमा व बीजापुर में महिला कलेक्टर की पोस्टिंग होना बाकी है। इससे परे बिलासपुर कलेक्टर अवनीश शरण भी सचिव के पद पर प्रमोट हो गए हैं, लेकिन उन्हें यथावत रखा गया है। चर्चा है कि निकाय, और पंचायत चुनाव निपटने के बाद उनका तबादला हो सकता है।
फेरबदल नीलम नामदेव एक्का को सूचना आयोग में सचिव के पद पर पदस्थ किया गया है। सचिव स्तर के अफसर एक्का पिछले तीन महीने से बिना विभाग के मंत्रालय में अटैच थे। अब जाकर नए साल में उन्हें काम दिया गया है।
खाली हाथों को कुछ तो काम
पीएचक्यू में आईपीएस अफसरों के प्रभार भी बदले गए हैं। कुछ अफसर 8-9 महीने से खाली थे, उन्हें कुछ काम दिया गया है। मसलन, चुनाव आयोग ने विधानसभा चुनाव के दौरान राजनांदगांव एसपी अभिषेक मीणा को हटा दिया था। तब से वो पीएचक्यू में अटैच थे। अब जाकर पीएचक्यू में दूरसंचार का प्रभार दिया गया है।
इसी तरह केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति से लौटने के बाद अभिषेक शांडिल्य को पीएचक्यू में डीआईजी (कानून व्यवस्था) विशेष शाखा का प्रभार दिया गया है। इससे परे कवर्धा एसपी रहे राजेश अग्रवाल अवकाश पर चले गए थे। पहले उन्हें कवर्धा एसपी के दायित्व से मुक्त किया गया। और उन्हें सेनानी वीआईपी सुरक्षा वाहिनी की जिम्मेदारी दी गई है।
इसके अलावा कवर्धा में ही कानून व्यवस्था की स्थिति बिगडऩे के बाद हटाए गए एसपी अभिषेक पल्लव को अब जाकर एसपी राज्य पुलिस अकादमी चंदखुरी का दायित्व सौंपा गया है। कुल मिलाकर नए साल में खाली बैठे अफसरों को काम दिया गया है। देखना है ये आगे क्या कुछ कर पाते हैं।
युवाओं से अफसरों का खिलवाड़
कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में रुके दो फैसलों पर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का आदेश भाजपा सरकार के लिए सिरदर्द बना। एक तो पुलिस सब इंस्पेक्टर की भर्ती का मामला और दूसरा बीएड अभ्यर्थियों को प्रायमरी शिक्षक पद में मौका देने का। वैसे पुलिस भर्ती का मामला पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के समय का है लेकिन उस समय चुनाव आ जाने के कारण प्रकिया पूरी नहीं हो पाई थी। कांग्रेस शासनकाल में पूरे पांच साल पात्र अभ्यर्थी अदालतों में संघर्ष करते रहे। फैसला आने पर भी सरकार टालमटोल करती रही, मगर जब हाईकोर्ट ने अल्टीमेटम दे दिया तो आखिरकार नियुक्ति पत्र जारी करना पड़ा। हालांकि इसके लिए उन्हें गृह मंत्री के बंगले को घेर कर बैठना भी पड़ा। उपरोक्त भर्तियों को रोकने की वजह यह बताई जा रही थी कि चयन में भारी लेन-देन हुआ था। पर सरकार के पास कोई सबूत नहीं था। इस तरह के मामलों में सबूत मिलते भी नहीं। हाईकोर्ट में इसीलिए सरकार की हार हुई।
इधर, प्रायमरी स्कूलों में डीएलएड के साथ बीएड अभ्यर्थियों को मौका देने का आदेश पूर्व की कांग्रेस सरकार था। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट तक से आदेश आ चुका। दोबारा मानहानि का मुकदमा दायर होने पर सरकार ने आखिरकार बीएड अभ्यर्थियों को बाहर करने का आदेश निकाल दिया है। 11 माह नौकरी करके बीएड अभ्यर्थी बाहर होने जा रहे हैं। उन्होंने कल राजधानी में भाजपा मुख्यालय के सामने रो-रोकर प्रदर्शन किया। बीएड अभ्यर्थियों को उम्मीदवारी का मौका नहीं दिया जाता तो उनकी भर्ती ही नहीं होती। यह मुंह से निवाला छीन लेने जैसी बात हुई। सरकार को हाईकोर्ट में केस हारना नहीं पड़ता। पहले भी कभी बीएड अभ्यर्थियों को प्रायमरी स्कूलों में नहीं लिया गया है। अचानक कांग्रेस शासनकाल में नियम बदल दिए गए, किसे फायदा पहुंचाने की मंशा थी यह पता लगाना जरूरी है। नियम बदलने का आदेश जारी करने वाले अफसर पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है। कोई विभागीय जांच उसके खिलाफ होनी चाहिए या नहीं??
याद दिला दें कि ऊंचे स्तर पर ऐसे मनमाने फैसले की एक घटना और अभी हुई है। उसमें भी सरकार को मुंह की खानी पड़ी। यह था पुलिस की भर्ती में विभाग में कार्यरत जवानों, कर्मचारियों के बच्चों को विशेष छूट देना। हाईकोर्ट ने माना कि डीजीपी को भर्ती नियमों को शिथिल करने की छूट है, पर ऐसी मनमानी नहीं हो सकती कि परिवार के बच्चों को रियायत मिले। अब हाईकोर्ट के आदेश पर यह प्रावधान हटाकर पुलिस भर्ती की जा रही है। हालांकि पुलिस भर्ती दूसरे कारणों से चर्चा में हैं, जिसमें इंवेट कंपनियों से साठगांठ कर काबिल युवाओं को बाहर कर अयोग्य अभ्यर्थियों को मौका दिया जा रहा था। मुख्यमंत्री साय ने सीजीपीएससी की नई सूची पर खुशी जतात हुए एक पोस्ट की थी। उन्होंने कहा था कि जो भी सफल हुए, अपने परिश्रम से चुने गए। राजनांदगांव के मामले में भी सरकार ने तगड़ा एक्शन लिया है। इवेंट कंपनी के अलावा, पुलिस विभाग के भी लोग गिरफ्तार हुए हैं। सरकार कोशिश करती दिख रही है कि प्रतिभा के साथ अन्याय न हो।
बीएड के सफल 2900 उम्मीदवारों को अगर सरकार नौकरी पर रखना चाहती है तो उसे चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट में दायर पुनर्विचार याचिका के फैसले का इंतजार मत करे। शिक्षकों के 57 हजार पद प्रदेश में खाली हैं। इन्हें दोबारा किसी परीक्षा में बिठाए बिना खाली पदों पर नियुक्त कर देना चाहिए। उलूल जुलूल फैसला लेने वाले अफसरों की मनमानी पर कोई रोक लगेगी?
एक खुश करने वाली तस्वीर...
यह प्रसन्नता यह दर्शाती है कि खुशी का धन-दौलत से कोई सीधा संबंध नहीं है। सादगीपूर्ण जीवन में भी व्यक्ति संतुष्टि और सुख पा सकता है। यह मुस्कान दिखाती है कि सच्चा आनंद आत्मा की गहराइयों में बसता है, न कि भौतिक सुख-सुविधाओं में। अमीरी-गरीबी तो बाहरी परिभाषाएं हैं, लेकिन खुशी अपने भीतर तलाश करने की चीज है। साधारण जीवन और प्राकृतिक परिवेश में भी सच्ची प्रसन्नता का अनुभव किया जा सकता है। नए साल की यह तस्वीर हमें जीवन के छोटे-छोटे पलों का आनंद लेने की प्रेरणा देती है। यह तस्वीर अचानकमार टाइगर रिजर्व में स्थित एक गांव से जाने-माने वन्यजीव प्रेमी प्राण चड्ढा ने ली है।