सारंगढ़-बिलाईगढ़
कृषि विभाग ने सुझाए बचाव के उपाय
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
सारंगढ़, 5 अक्टूबर। जिले में लगातार हो रही बारिश से किसानों में अच्छे फसल की आस बनी है, वहीं वर्तमान में हो रही अधिक वर्षा वातावरण में नमी को बढ़ाती है एवं बारिश के बाद तेज धूप से उमस की स्थिति बनती है।
उमस के कारण धान की फसल में कीट और रोग लगने की संभावनाएं बढ़ रही है। अधिक नमी और मध्यम तापमान कीटों और रोग कारक फफूंदों के फैलाव के लिए अनुकूल परिस्थितियां बनाते हैं। ऐसे में रोग एवं कीटों का हमला किसानों की चिंता बढ़ा सकती है। सामन्यत: इस स्थिति में धान की फसलों में भूरा माहू ,पेनिकल माइट और गंधी बग जैसे कीट देखने को मिलते है तथा इसके अलावा धान की फसल पर मुख्य रूप से शीथ ब्लाइट (चरपा) जैसे रोग लगने की संभावना बनती है । आशुतोष श्रीवास्तव, उप संचालक कृषि सारंगढ़ ने किसान बंधुओं को इस विषम परिस्थिति में अपने धान की फसल को इन कीट एवं रोग से बचाव के लिए आवश्यक सुझाव साझा किया है।
मुख्य कीट एवं बचाव के उपाय
1. भूरा माहू- गभोट एवं बाली की अवस्था में यह कीट धान की फसल में दिखाई देते है 7 यह पौधों से पोषक रस चूस कर पौधों को कमजोर कर देता है। इस कीट के अधिक प्रकोप से उत्पादन की कमी देखने को मिलती है। इस कीट से फसल को बचाव हेतु ब्युपरोफेजीन 25 प्रतिशत एस.सी. 800 मि.ली. / हेक्टेयर का प्रयोग करें । इसके अलावा आवश्यकता अनुसार पाइमट्रोजिन 50 डब्ल्यू.जी. 300 ग्राम या ट्राईफ्लूमिथोपाइरम 10 प्रतिशत एस.सी. 235 मि.ली./हे. का छिडक़ाव करें। धान के खेत में 2 दिन पानी भरकर पानी निकासी 2 से 3 अंतराल पर करने में कीटो की बढ़वार को कम कर सकते है।
2. पेनिकल माइट (लाल मकड़ी) - धान में बाली निकलने से लेकर मिल्किंग अवस्था में रस चूसता है। इसके प्रकोप से बालियों में दाने नहीं बनते हैं।
इथियोन 50त्न ईजी 400-500 मि.ली.प्रति एकड़ या इमामेक्टिन बेंजोएट 80-100 ग्राम प्रति एकड़ दवा का छिडकाव पेनिकल माइट के नियंत्रण में कारगार है।
3. गंधी बग- यह कीट धान की बालियों में दूध भरते समय बालियों से रस चूस लेता है, जिससे दाने काले पड़ जाते हैं। इस कीट से फसल को बचाव हेतु कीटनाशी दवा - इमिडाक्लोपिरिड 6 प्रतिशत + लैम्डासाइहेलोथ्रिन 4 प्रतिशत (एस.एल.) 300 मि.ली.प्रति हेक्टेयर का उपयोग करें।
मुख्य रोग एवं बचाव के उपाय
1. शीथ ब्लाइट (चरपा) - यह रोग धान में कंसे निकलने की अवस्था से गभोट की अवस्था तक देखा जा सकता है । रोग प्रकोपित खेत में पानी की सतह से आरम्भ होकर पर्णच्छद पर ऊपर की ओर फैलता है और अंतत: पौधा रोगग्रस्त होकर झुलस जाता है । रोग लक्षण पर्णच्छद व पत्तियों पर दिखाई देते हैं । पर्णच्छद पर 2-3 से.मी. लम्बे, 0.5 से.मी. चौड़े भूरे से बदरंगे धब्बे बनते हैं । प्रारंभ में धब्बे का रंग हरा-मटमैला या ताम्र रंग का होता है । बाद में बीच का भाग मटमैला हो जाता है 7 इस रोग के नियंत्रण हेतु हेक्साकोनाजोल कवकनाशी (2 मि.ली. / ली.) या थायोफ्लूजामाइड का छिडक़ाव 10-12 दिन के अन्तर से करें ।


